सरगुजा: पोल्ट्री व्यवसाय भारत में एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में विकसित हो चुकी है. बड़े-बड़े फार्म से लेकर छोटे-छोटे ग्रामीण किसान तक इससे जुड़कर मुनाफा कमा रहे हैं. बॉयलर, कॉकरेल और देसी नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों की बिक्री और पालन का काम ज्यादातर देखा जाता है, लेकिन एक ऐसी नस्ल है जिसके फायदे कई गुना अधिक हैं. इस नस्ल के मुर्गी पालन से कई गुना अधिक मुनाफा भी कमाया जा सकता है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं कड़कनाथ नस्ल के मुर्गे की. ये बॉयलर मुर्गे की तुलना में स्वास्थ्य के लिए कहीं अधिक फायदेमंद भी है.
कड़कनाथ बनाएगा मालामाल: जहां बाजार में बॉयलर मुर्गे की फुटकर कीमत 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक होती है. वहीं, कड़कनाथ मुर्गे की कीमत सीधे 800 से 1000 रुपये किलो है. मतलब साफ है कि कमाई का प्रतिशत 4 गुना अधिक है. इस नस्ल के मुर्गे बाजार में आसानी से नहीं मिलते हैं, इसलिए इसकी डिमांड भी काफी अधिक है. इसकी न्यूट्रिशन वैल्यू के कारण भी इसकी डिमांड अधिक रहती है. लिहाजा मुर्गी पालक अगर इस नस्ल के मुर्गी का पालन करते हैं तो अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
एमपी का लोकल ब्रीड है कड़कनाथ: इस बारे में सरगुजा के वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. चंद्र कुमार मिश्रा कहते हैं, " मध्यप्रदेश के झाबुआ का लोकल ब्रीड है कड़कनाथ. वहीं से इसकी ब्रीड पूरे देश में पहुंची है. इसका मांस सख्त होता है, हल्के काले रंग का होता है, इसमे आयरन की मात्रा अधिक होती है, जिस कारण से इसका खून भी काला दिखता है. सामान्य रूप से बॉयलर मुर्गा 1 किलो का 2 महीने में तैयार हो जाता है, लेकिन कड़कनाथ को 1 किलो का होने में करीब 5 से 6 महीने लग जाते हैं."
"कड़कनाथ मुर्गे की डिमांड अधिक है. लोग इसे खाना चाहते हैं और आसानी से उपलब्ध नहीं होने के कारण इसकी कीमत काफी अधिक है. ये 7 से 8 सौ रुपये प्रति किलो मिल रहा है, जिससे पालकों को अधिक लाभ हो सकता है. जो एनीमिक मरीज हैं या जो गर्भवती माता हैं, उनके लिए ये मुर्गा फायदेमंद हैं क्योंकि खून में आयरन की कमी को ये दूर कर देता है." -डॉ चंद्र कुमार मिश्रा, पशु चिकित्सक
बहरहाल, भले ही कड़कनाथ मुर्गे को बड़ा होने में 5 से 6 महीने लगता है, लेकिन इसकी कीमत इतनी अधिक है कि किसान मालामाल हो सकते हैं. इस मुर्गे का मांस लाभकारी होता है, जिसे खाने वाले को भी इसका लाभ मिलता है. साथ ही इसे रोजगार का साधन बनाकर बेहतर मुनाफा भी कमाया जा सकता है.