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किसान परिवार ने मां को दी अनूठी श्रद्धांजलि, खेत में किया अस्थियों का विसर्जन, घर में हैं IAS-IRS अधिकारी

दौसा के मेहंदीपुर बालाजी में बेटों ने मां की मौत के बाद उनकी अस्थियों को अपने ही खेतों में विसर्जित कर दिया.

खेत में किया अस्थियों का विसर्जन
खेत में किया अस्थियों का विसर्जन (ETV Bharat Dausa)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 16 hours ago

दौसा : सनातन संस्कृति में आमतौर पर किसी व्यक्ति की मौत के बाद अस्थियों का विसर्जन गंगा नदी में किया जाता है, लेकिन मेहंदीपुर बालाजी क्षेत्र के ठीकरिया गांव में एक किसान परिवार ने अनोखी पहल की है. यहां के एक किसान परिवार ने अपनी मां की अस्थियों का विसर्जन पारंपरिक तरीके से नहीं, बल्कि खेतों में किया. इस कदम के पीछे की वजह मां का खेती-बाड़ी से गहरा लगाव था.

मृतक महिला के बेटों ने बताया कि उनकी मां हमेशा कहती थीं, "मरने के बाद मेरी अस्थियों को खेतों में पानी बहाकर विसर्जित कर देना." मां का पूरा जीवन खेती-बाड़ी के बीच ही बीता था और वह चाहती थीं कि उनका शरीर उस मिट्टी का हिस्सा बने, जिससे उन्होंने अपना जीवन यापन किया.

बेटा IRS और पोता IAS : परिवार के वरिष्ठ सदस्य धर्म सिंह ने बताया कि ठीकरिया गांव में बाग वाले किसान परिवार में किशोरी पटेल की पत्नी किशनी देवी ने 30 नवंबर को 85 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली. खेती-बाड़ी से उनका गहरा संबंध था और उन्होंने जीवनभर न केवल खेतों की देखभाल की, बल्कि कई फलदार और छायादार पेड़-पौधे भी लगाए. ग्रामीणों के अनुसार मृतक किशनी देवी एक दृढ़ इच्छाशक्ति और बहुत मेहनतकश महिला थीं.

उन्होंने खेतीबाड़ी में मेहनत कर अपने परिवार के सभी बच्चों को अच्छा पढ़ाया, जिसके चलते किशनी देवी के परिवार में कई बच्चे शिक्षक हैं. वहीं, उनका छोटा बेटा विमल कुमार भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के उच्च अधिकारी हैं और उनका पोता परीक्षित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का अधिकारी है.

इसे भी पढ़ें- लोगों की अंतिम यात्रा का सहारा बन रही है यह संस्था, लापता लोगों के लिए खोला मोक्ष का 'द्वार' - Pitru Paksha 2024

दिखावे को नहीं मानते : उनके बेटे जगनमोहन और विमल कुमार ने बताया कि मां की इच्छा के अनुरूप उनकी अस्थियों और राख का विसर्जन खेतों में पानी बहाकर किया गया. इस दौरान परिवार के सभी सदस्य और सगे-संबंधी मौजूद थे. इस अनूठी पहल को ग्रामीणों ने सराहा. बेटों ने बताया कि वे परंपरा के नाम पर दिखावे को नहीं मानते. बेटों ने कहा कि, "हम आडंबर के खिलाफ हैं और हमें दिखावे की संस्कृति पर कड़ी आपत्ति है. अगर खर्च करना है तो उसे किसी नेक काम में किया जाना चाहिए, जैसे कि बेटियों की शिक्षा में."

उनके बेटे विमल कुमार ने यह भी कहा कि मृत्यु भोज और अन्य अनावश्यक कर्मकांडों पर खर्च करने की बजाय वे बालिका शिक्षा और गांव में पुस्तकालय के विकास पर पैसा खर्च करना पसंद करेंगे. किशनी देवी की इस अनूठी इच्छा को पूरा करने के बाद, उनके परिवार ने न केवल अपनी मां की अंतिम इच्छा का सम्मान किया, बल्कि समाज में एक सकारात्मक संदेश भी दिया.

दौसा : सनातन संस्कृति में आमतौर पर किसी व्यक्ति की मौत के बाद अस्थियों का विसर्जन गंगा नदी में किया जाता है, लेकिन मेहंदीपुर बालाजी क्षेत्र के ठीकरिया गांव में एक किसान परिवार ने अनोखी पहल की है. यहां के एक किसान परिवार ने अपनी मां की अस्थियों का विसर्जन पारंपरिक तरीके से नहीं, बल्कि खेतों में किया. इस कदम के पीछे की वजह मां का खेती-बाड़ी से गहरा लगाव था.

मृतक महिला के बेटों ने बताया कि उनकी मां हमेशा कहती थीं, "मरने के बाद मेरी अस्थियों को खेतों में पानी बहाकर विसर्जित कर देना." मां का पूरा जीवन खेती-बाड़ी के बीच ही बीता था और वह चाहती थीं कि उनका शरीर उस मिट्टी का हिस्सा बने, जिससे उन्होंने अपना जीवन यापन किया.

बेटा IRS और पोता IAS : परिवार के वरिष्ठ सदस्य धर्म सिंह ने बताया कि ठीकरिया गांव में बाग वाले किसान परिवार में किशोरी पटेल की पत्नी किशनी देवी ने 30 नवंबर को 85 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली. खेती-बाड़ी से उनका गहरा संबंध था और उन्होंने जीवनभर न केवल खेतों की देखभाल की, बल्कि कई फलदार और छायादार पेड़-पौधे भी लगाए. ग्रामीणों के अनुसार मृतक किशनी देवी एक दृढ़ इच्छाशक्ति और बहुत मेहनतकश महिला थीं.

उन्होंने खेतीबाड़ी में मेहनत कर अपने परिवार के सभी बच्चों को अच्छा पढ़ाया, जिसके चलते किशनी देवी के परिवार में कई बच्चे शिक्षक हैं. वहीं, उनका छोटा बेटा विमल कुमार भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के उच्च अधिकारी हैं और उनका पोता परीक्षित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का अधिकारी है.

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दिखावे को नहीं मानते : उनके बेटे जगनमोहन और विमल कुमार ने बताया कि मां की इच्छा के अनुरूप उनकी अस्थियों और राख का विसर्जन खेतों में पानी बहाकर किया गया. इस दौरान परिवार के सभी सदस्य और सगे-संबंधी मौजूद थे. इस अनूठी पहल को ग्रामीणों ने सराहा. बेटों ने बताया कि वे परंपरा के नाम पर दिखावे को नहीं मानते. बेटों ने कहा कि, "हम आडंबर के खिलाफ हैं और हमें दिखावे की संस्कृति पर कड़ी आपत्ति है. अगर खर्च करना है तो उसे किसी नेक काम में किया जाना चाहिए, जैसे कि बेटियों की शिक्षा में."

उनके बेटे विमल कुमार ने यह भी कहा कि मृत्यु भोज और अन्य अनावश्यक कर्मकांडों पर खर्च करने की बजाय वे बालिका शिक्षा और गांव में पुस्तकालय के विकास पर पैसा खर्च करना पसंद करेंगे. किशनी देवी की इस अनूठी इच्छा को पूरा करने के बाद, उनके परिवार ने न केवल अपनी मां की अंतिम इच्छा का सम्मान किया, बल्कि समाज में एक सकारात्मक संदेश भी दिया.

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