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लोकतंत्र में हर एक वोट का है विशेष महत्व, धड़कनें रोकने वाला था 1998 का राजमहल का परिणाम, 9 मत से हारे थे थॉमस हांसदा - 1998 Lok Sabha elections - 1998 LOK SABHA ELECTIONS

1998 Lok Sabha elections. लोकतंत्र की अहम प्रक्रिया है वोटिंग. यहां हर एक वोट का विशेष महत्व है. कई बार ऐसा हुआ कि हार जीत का फैसला काफी कम अंतर से हुआ है. कुछ ऐसा ही फैसला आया था 1998 में, जब पूरे देश की नजर संथाल की धरती तरफ मुड़ गई थी. लोगों की धड़कनें थोड़ी देर के लिए थम गए थे. महज 9 वोटों के अंतर से एक दिग्गज नेता की हार हो गई थी.

In 1998 Lok Sabha elections margin of victory and defeat of candidates on Rajmahal seat was 9 votes
In 1998 Lok Sabha elections margin of victory and defeat of candidates on Rajmahal seat was 9 votes
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 26, 2024, 1:19 PM IST

गोड्डाः लोकसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा हो चुकी है. सभी दल अपने-अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर रहे हैं. वहीं चुनाव आयोग लोगों को जागरूक करने में लगा है. आयोग की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान करने जाए और लोकतंत्र के इस महापर्व में शामिल हो. क्योंकि एक-एक वोट का काफी महत्व होता है. एक वोट से कभी सरकार गिर जाती है, तो चंद वोटों की वजह किसी प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ था राजमहल संसदीय सीट पर, जिसने भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अलग आयाम ही स्थापित कर दिया.

बता दें कि देश में सबसे कम अंतर से जीत का रिकॉर्ड संथाल परगना के राजमहल लोकसभा सीट का है. यहां जीत और हार का अंतर महज 9 मतों का रहा है. ऐसा 1998 के चुनाव में हुआ था. तब संयुक्त बिहार के दिग्गज नेता कांग्रेस के थॉमस हांसदा को एक नए युवा नेता भाजपा के सोम मराण्डी ने हराया था. उस वक्त थॉमस हांसदा सांसद थे. हलाकि इसके अलावा 1989 में आंध्र प्रदेश के अनकापल्ली संसदीय सीट से कांग्रेस के कोथाला रामकृष्ण ने भी 9 मतों से ही विजय पाई थी.

1998 का राजमहल लोकसभा चुनाव बड़ा ही दिलचस्प और धड़कनें रोक देने वाला था. मतगणना लगभग पूरी हो चुकी थी, लगभग एक हजार मतों से भाजपा के सोम मरांडी बढ़त बनाये हुए थे. कुछ कारणों से रिकाउंटिंग हुई. उसके बाद जो हुआ उससे दोनों उम्मीदवारों की धड़कनें तेज हो गई थी. काफी हद तक थॉमस हांसदा ने वापसी कर ली थी. पूरे देश का ध्यान राजमहल के परिणाम पर था. आखिर में 9 मत से सोम मरांडी चुनाव जीत गए. ये लोकतंत्र के इतिहास सबसे कम मतों के अंतर से जीत हार के रिकॉड के बराबर था.

1998 चुनाव में संथाल परगना में पहला मौका था कि तीनों ही सीट पर बीजेपी की जीत हुई थी. दुमका से बाबूलाल मरांडी, गोड्डा से जगदंबी यादव और सोम मरांडी ने गोड्डा से जीत दर्ज की थी. इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार पप्पू बताते हैं कि ये चुनाव धड़कनें रोक देने वाला था. क्योंकि थॉमस हांसदा राजनीत में उस वक्त बड़ा नाम था और वो एक नए उम्मीदवार से हार गए थे. हालांकि एक साल बाद ही 1999 में थॉमस हांसदा फिर से चुनाव जीत गए और झरखंड गठन होने के बाद प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

बता दें कि थॉमस हांसदा राजमहल से वर्तमान झामुमो सांसद विजय हांसदा के पिता हैं. 1998 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी सोम मरांडी को 198889 वोट मिले थे. कांग्रेस के थॉमस हांसदा को 198880 वोट, झामुमो के साइमन मरांडी को 150104 वोट और सीपीआईएम के ज्योतिन सोरेन को 22359 वोट मिले थे. इस चुनाव ने यह साबित कर दिया था कि एक एक मत की कितनी कीमत होती है. जिसे आज भी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में याद किया जाता है.

गोड्डाः लोकसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा हो चुकी है. सभी दल अपने-अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर रहे हैं. वहीं चुनाव आयोग लोगों को जागरूक करने में लगा है. आयोग की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान करने जाए और लोकतंत्र के इस महापर्व में शामिल हो. क्योंकि एक-एक वोट का काफी महत्व होता है. एक वोट से कभी सरकार गिर जाती है, तो चंद वोटों की वजह किसी प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ था राजमहल संसदीय सीट पर, जिसने भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अलग आयाम ही स्थापित कर दिया.

बता दें कि देश में सबसे कम अंतर से जीत का रिकॉर्ड संथाल परगना के राजमहल लोकसभा सीट का है. यहां जीत और हार का अंतर महज 9 मतों का रहा है. ऐसा 1998 के चुनाव में हुआ था. तब संयुक्त बिहार के दिग्गज नेता कांग्रेस के थॉमस हांसदा को एक नए युवा नेता भाजपा के सोम मराण्डी ने हराया था. उस वक्त थॉमस हांसदा सांसद थे. हलाकि इसके अलावा 1989 में आंध्र प्रदेश के अनकापल्ली संसदीय सीट से कांग्रेस के कोथाला रामकृष्ण ने भी 9 मतों से ही विजय पाई थी.

1998 का राजमहल लोकसभा चुनाव बड़ा ही दिलचस्प और धड़कनें रोक देने वाला था. मतगणना लगभग पूरी हो चुकी थी, लगभग एक हजार मतों से भाजपा के सोम मरांडी बढ़त बनाये हुए थे. कुछ कारणों से रिकाउंटिंग हुई. उसके बाद जो हुआ उससे दोनों उम्मीदवारों की धड़कनें तेज हो गई थी. काफी हद तक थॉमस हांसदा ने वापसी कर ली थी. पूरे देश का ध्यान राजमहल के परिणाम पर था. आखिर में 9 मत से सोम मरांडी चुनाव जीत गए. ये लोकतंत्र के इतिहास सबसे कम मतों के अंतर से जीत हार के रिकॉड के बराबर था.

1998 चुनाव में संथाल परगना में पहला मौका था कि तीनों ही सीट पर बीजेपी की जीत हुई थी. दुमका से बाबूलाल मरांडी, गोड्डा से जगदंबी यादव और सोम मरांडी ने गोड्डा से जीत दर्ज की थी. इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार पप्पू बताते हैं कि ये चुनाव धड़कनें रोक देने वाला था. क्योंकि थॉमस हांसदा राजनीत में उस वक्त बड़ा नाम था और वो एक नए उम्मीदवार से हार गए थे. हालांकि एक साल बाद ही 1999 में थॉमस हांसदा फिर से चुनाव जीत गए और झरखंड गठन होने के बाद प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

बता दें कि थॉमस हांसदा राजमहल से वर्तमान झामुमो सांसद विजय हांसदा के पिता हैं. 1998 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी सोम मरांडी को 198889 वोट मिले थे. कांग्रेस के थॉमस हांसदा को 198880 वोट, झामुमो के साइमन मरांडी को 150104 वोट और सीपीआईएम के ज्योतिन सोरेन को 22359 वोट मिले थे. इस चुनाव ने यह साबित कर दिया था कि एक एक मत की कितनी कीमत होती है. जिसे आज भी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में याद किया जाता है.

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