देवघर: बाबाधाम यानी एक धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यहां पर आदिकाल से भगवान भोलेनाथ के मनोकामना ज्योतिर्लिंग की पूजा करने की परंपरा चलती आ रही है. भगवान भोलेनाथ से जुड़े हर भगवान और उनसे जुड़े पशुओं की भी पूजा होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ के सबसे अहम सदस्यों में से एक नंदी को माना जाता है. नंदी को आम भाषा में सांड भी कहा जाता है.
आदिकाल से चली आ रही सांड की पूजा करने की प्रथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ से यदि कोई भक्त अपनी मनोकामना को पूर्ण करवाना चाहते हैं तो उन्हें पहले नंदी के कानों में अपनी इच्छा बतानी पड़ती है. उसके बाद यह मान लिया जाता है कि भगवान भोलेनाथ तक भक्तों की इच्छा पहुंच गई. इसलिए देवघर के विभिन्न चौक चौराहों और मंदिर परिसर में सांडों की अत्यधिक संख्या देखने को मिलती है. मंदिर परिसर में मिलने वाले सांड को लोग भगवान की तरह ही पूजते हैं. मंदिर परिसर में बैठे काले सांड (नंदी) की पूजा कर रहे लोगों ने कहा कि शुरू से यह परंपरा बनी हुई है कि भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने के बाद सांड के कानों में अपनी इच्छाओं को जरूर बताएं. वहीं, सांड के कानों में इच्छा बताने वाले लोगों ने कहा कि यह परंपरा आदिकाल से चलती आ रही है. इसलिए परंपरा के तहत लोग सांड के कान में अपनी इच्छा बताते हैं और उन्हें उम्मीद होती है कि भगवान तक उनकी इच्छा पहुंच जाएगी और पूरी भी होगी.
सांडों को गौशाला में बंद करने से लोगों में नाराजगी
वहीं, मंदिर के वरिष्ठ पुजारी बाबा झलक बताते हैं कि भगवान भोलेनाथ के वकील के रूप में नंदी को माना जाता है. नंदी महाराज के पैरवी से ही भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं. इन दिनों शहर में भटक रहे सांडों को नगर निगम द्वारा पकड़कर गौशाला में बंद किया जा रहा है, जिसे लेकर स्थानीय लोगों ने कहा कि यदि मंदिर परिसर और सड़कों से सांड हट जाएंगे तो लोग अपनी मनोकामना को बाबा तक कैसे पहुंचाएंगे. कई लोगों ने नगर निगम के इस कार्रवाई की निंदा की तो कुछ लोगों ने इसकी सराहना भी की. लोग अपने-अपने विश्वास के हिसाब से सांडों के प्रति अपनी आस्था रखते हैं, लेकिन जिस तरह से मंदिर परिसर में घूम रहे सांडों के कानों में लोग अपनी मनोकामना बताते हैं, इससे ये जरूर सिद्ध होता है कि आज भी बाबा धाम में नंदी के बगैर भोलेनाथ का पूजा पूरा नहीं हो सकता.
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