जामताड़ा: सोहराय पर्व को लेकर पूरे संथाल क्षेत्र में उत्साह का माहौल है. संथाल मांदर की थाप से गूंज रहा है. 5 दिनों तक मनाया जाने वाला सोहराय पर्व आदिवासी संथाल समाज का सबसे बड़ा पर्व कहा जाता है. 5 दिनों तक इस आदिवासी समाज के लोग अपने देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. कृषि उपकरण और मवेशियों की पूजा करते हैं. नाचते-गाते हैं. पांच दिनों तक माहौल उत्साह से भरा रहता है.
पौष माह में मनाए जाने वाले आदिवासी संथाल समाज के सोहराय पर्व को लेकर पूरे संथाल क्षेत्र में धूम है. सोहराय पर्व के मौके पर संथाल गांव मांदर की थाप से गूंज रहा है. उत्साह का माहौल है. आदिवासी संथाल समाज के लोग नाच-गा रहे हैं. आदिवासी संथाल समाज 5 दिनों तक सोहराय पर्व मनाता है. इसे प्रकृति का पर्व कहा जाता है.
आदिवासी संथाल समाज में सोहराय पर्व मनाने की बहुत ही अनोखी परंपरा है. आदिवासी संथाल समाज इस पर्व को बहुत ही अनोखे तरीके से मनाता है. आदिवासी समाज 10 जनवरी मकर संक्रांति से 14 जनवरी तक सोहराय पर्व मनाता है. ऐसा कहा जाता है कि पौष माह में जब फसल तैयार हो जाती है. आदिवासी समाज खेतों से फसल काटकर खलिहान में लाता है. उसके बाद सोहराय पर्व की तैयारी शुरू कर देते हैं.
हर दिन का अपना महत्व
आदिवासी संथाल समुदाय के साहित्यकार और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सुनील कुमार बास्की के अनुसार, सोहराय पर्व में पहले दिन को उम कहा जाता है, जिसमें संथाल आदिवासी कृषि से जुड़े उपकरणों की सफाई करने के साथ घर की भी साफ-सफाई करते हैं, रंग-रोगन करते हैं और स्नान करते हैं. मवेशियों को भी नहलाते हैं. इस पर्व में दूसरे दिन को बोगान कहा जाता है. इस दिन आदिवासी संथाल समाज अपने कुल देवता की पूजा करता है.
तीसरे दिन को खुंटौ कहा जाता है. चौथे दिन एक दूसरे के घर जाकर मिलते हैं. पांचवां और आखिरी दिन हकूकटकम कहलाता है. जिसमें शिकार करने की परंपरा है. कहा जाता है कि इस दिन लोग मछली और केंकड़े का शिकार करते हैं और इसी के साथ 5 दिनों तक मनाया जाने वाला आदिवासी संथाल समुदाय का सोहराय पर्व समाप्त हो जाता है.
सुनील कुमार बास्की कहते हैं कि सोहराय पर्व प्रकृति से जुड़ा पर्व है और आदिवासी संथाल समुदाय का सबसे बड़ा पर्व है. यह पौष माह में मनाया जाता है. संथाल समुदाय इस पर्व को 5 दिनों तक मनाता है. मकर संक्रांति के दिन इसका समापन होता है.
भाई-बहन के प्रेम को दर्शाता है ये पर्व
सोहराय पर्व न सिर्फ प्रकृति से जुड़ा है, आदिवासी संथाल समुदाय कृषि और देवी-देवताओं की पूजा भी करता है. यह पर्व भाई-बहन के अटूट बंधन के प्रेम को भी दर्शाता है. कहा जाता है कि इस सोहराय पर्व में भाई अपनी बहन के घर जाता है और उसे ससुराल आने का निमंत्रण देता है. निमंत्रण स्वीकार करने के बाद बहन अपने मायके आकर सोहराय पर्व मनाती है. मान्यता है कि अगर भाई बहन को ससुराल नहीं बुलाता है तो बहन नहीं आती है.
आदिवासी समाज की सामाजिक कार्यकर्ता दीपिका बेसरा ने बताया कि सोहराय पर्व आदिवासी संथाल समाज का सबसे बड़ा पर्व है और इसमें भाई अपनी बहन को निमंत्रण देने जाता है और बहन निमंत्रण पर आती है. अगर भाई नहीं बुलाता है तो बहन नहीं आती है.
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