कांकेर: ईटीवी भारत खबर का बड़ा असर हुआ है. सिस्टम से नाराज ग्रामीणों ने श्रम दान से बांस बल्ली का पुल बनाया था. ईटीवी भारत में 28 अगस्त को खबर दिखाई थी. खबर दिखाए जाने के बाद कांकेर कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर की पहल से पुल मंजूर हुआ है. जो टेंडर की प्रक्रिया में है. लगभग 6 करोड़ की लागत से पक्के पुल की ग्रामीणों को सौगात मिलेगी.
ग्रामीणों ने बनाया था इको फ्रेंडली पुल : आपको बता दें कि कांकेर मुख्यालय से 70 किमी दूर ग्रामीणों ने देसी जुगाड़ से, एक पुल तैयार किया था. जिसके बनाने का तरीका देख इंजीनियर भी हैरान रह जाए. 4 पिलहर वाले इस इकोफ्रेंडली पुल को 3 गांव के ग्रामीणों ने मिल कर तैयार किया है. ये देशी जुगाड़ का पुल ग्रामीणों ने प्रशासन के उदासीन रवैये और जिम्मेदारों से नाराज होकर बनाया था. तब से यह पुल चर्चा का विषय बना हुआ था.कांकेर कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने बताया कि कांकेर क्षेत्र के सुदूर अंचल में पीएमजीएसवाई के सड़क तो बने हैं. कुछ जगहों पर आवश्यक पुलिया थी. वो नहीं बने थे.
"खडाका नाला में ग्रामीणों ने कच्चा पुलिया निर्माण किया है.जिसे संज्ञान में लिया गया था. हमने तत्काल वहां पुल निर्माण के लिए राशि सेंक्शन कर दिया है. इसके साथ- साथ अंतागढ़ के तीन पुल जो नारायणपुर को जोड़ते हैं वो भी सेंक्शन किए गए हैं.इसके साथ ही हमने जिले में लगातार समीक्षा बैठक में 60 से अधिक जगह चिन्हांकित किए हैं जहां पुल की आवश्यकता है. वो भी 6 महीने में सेंक्शन हो जाएंगे.''- नीलेश क्षीरसागर, कलेक्टर
दो सीएम बदले लेकिन नहीं बना पुल : आपको बता दें कि परवी और खड़का. इन दोनों गांवों के बीच मंघर्रा नाला पड़ता है. ग्रामीण 15 साल से इस नाले पर पुल की मांग करते आ रहे हैं. साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर रमन सिंह से ग्रामीणों ने पुल निर्माण की मांग की थी. आश्वासन दिया गया लेकिन पुल नहीं बना था. साल 2019 में सरकार बदल गई. कांग्रेस शासन काल में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुल निर्माण की घोषणा भी की. फिर भी पुल नहीं बन सका था.
देसी इंजीनियरिंग से बनाया पुल : 15 साल की मांग के बाद भी जब किसी ने नहीं सुना तो ग्रामीणों ने खुद ही जिम्मेदारी उठा ली. तीन गांव खड़का, भुरका और जलहुर के ग्रामीणों ने ठाना कि वो खुद के लिए पुल तैयार करेंगे. सभी ने मिलकर बांस-बल्लियों का इंतजाम किया और श्रमदान कर कच्चा पुल तैयार किया. इस कच्चे पुल को बनाने में दो दिनो का वक्त लगा. पहले दिन पुल की मजबूती के लिए 4 पिल्हर तैयार किये. लकड़ियों को अंदर तक मजबूती से बांस का घेरा बनाया गया. इसमें काफी संख्या में बड़े-छोटे पत्थरों को डालकर मजबूत किया गया. फिर ऊपर मोटी लकड़ियां, बांस के टुकड़ों से पुल बनाकर तैयार किया. ताकि बाइक सहित लोग आना जाना कर सके.