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झारखंड विधानसभा में अवैध नियुक्ति मामला, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब, 20 मार्च को होगी सुनवाई

Jharkhand Assembly illegal appointment case. झारखंड विधानसभा में अवैध नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है. 20 मार्च को अगली सुनवाई होगी.

Jharkhand Assembly illegal appointment case
Jharkhand Assembly illegal appointment case
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 5, 2024, 8:07 PM IST

Updated : Mar 5, 2024, 8:18 PM IST

जानकारी देते अधिवक्ता धीरज कुमार

रांची: झारखंड विधानसभा में वर्ष 2005 से 2007 के बीच हुई अवैध नियुक्ति मामले में दायर शिव शंकर शर्मा की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि जांच रिपोर्ट कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया है. अभी तक कैबिनेट ने इसपर कोई निर्णय नहीं लिया है. इसपर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 20 मार्च से पहले विस्तृत और बिंदुवार जवाब शपथ पत्र के माध्यम से दाखिल करने को कहा है.

मामले की विस्तृत सुनवाई 20 मार्च को होगी. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पूछा कि इस मामले में जब एक कमीशन गठित कर दी गयी थी और कमीशन की रिपोर्ट पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई के लिए कहा था, फिर एक और कमीशन क्यों गठित की गई. किस आधार पर ऐसा किया गया.

आपको बता दें कि यह मामला साल 2005 से 2007 के बीच हुई अलग-अलग पदों पर विधानसभा में हुई नियुक्तियों से जुड़ा है. इसके खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में शिवशंकर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी. उन्होंने नियुक्ति में गड़बड़ी का आरोप लगाया था. इसके बाद मामले की जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद कमीशन का गठन हुआ था. साल 2018 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी थी. इस आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई करने को कहा था. लेकिन अबतक कुछ नहीं हुआ.

यही नहीं कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट 1952 के तहत जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट कभी सदन में रखी ही नहीं गई. अगर ऐसा होता तो नियम के मुताबिक सरकार को छह माह के भीतर सदन में एक्शन टेकेन रिपोर्ट सदन में पेश करना पड़ता. जबकि इसकी जगह सरकार ने सेवानिवृत्त जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता ने नया कमीशन गठित कर दिया. उनके जांच का दायरा भी सीमित कर दिया गया. इससे पहले 2013 में सेवानिवृत्त जस्टिस लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में भी कमीशन गठित की गई थी लेकिन उन्होंने जांच पूरी करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.

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जानकारी देते अधिवक्ता धीरज कुमार

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मामले की विस्तृत सुनवाई 20 मार्च को होगी. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पूछा कि इस मामले में जब एक कमीशन गठित कर दी गयी थी और कमीशन की रिपोर्ट पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई के लिए कहा था, फिर एक और कमीशन क्यों गठित की गई. किस आधार पर ऐसा किया गया.

आपको बता दें कि यह मामला साल 2005 से 2007 के बीच हुई अलग-अलग पदों पर विधानसभा में हुई नियुक्तियों से जुड़ा है. इसके खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में शिवशंकर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी. उन्होंने नियुक्ति में गड़बड़ी का आरोप लगाया था. इसके बाद मामले की जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद कमीशन का गठन हुआ था. साल 2018 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी थी. इस आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई करने को कहा था. लेकिन अबतक कुछ नहीं हुआ.

यही नहीं कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट 1952 के तहत जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट कभी सदन में रखी ही नहीं गई. अगर ऐसा होता तो नियम के मुताबिक सरकार को छह माह के भीतर सदन में एक्शन टेकेन रिपोर्ट सदन में पेश करना पड़ता. जबकि इसकी जगह सरकार ने सेवानिवृत्त जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता ने नया कमीशन गठित कर दिया. उनके जांच का दायरा भी सीमित कर दिया गया. इससे पहले 2013 में सेवानिवृत्त जस्टिस लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में भी कमीशन गठित की गई थी लेकिन उन्होंने जांच पूरी करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.

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Last Updated : Mar 5, 2024, 8:18 PM IST
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