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संदेह से परे आरोप साबित नहीं होने पर आरोपी को सम्मानजनक दोषमुक्ति का अधिकार: राजस्थान हाईकोर्ट - Rajasthan High Court

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 21, 2024, 8:33 PM IST

झूठे आपराधिक प्रकरणों से पीड़ित नागरिकों की गरिमा की रक्षा की दिशा में राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने फैसला दिया कि संदेह से परे आरोप साबित नहीं होने पर आरोपी को सम्मानजनक दोषमुक्ति का अधिकार है.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट (ETV Bharat Jodhpur)

जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए अभिनिर्धारित किया है कि संदेह से परे आरोप साबित नहीं होने पर आरोपी को सम्मानजनक दोषमुक्ति का अधिकार है. जस्टिस अरुण मोंगा की एकलपीठ ने फैसले में कहा कि विचारण न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के फैसले को गलत तरीके से वर्गीकृत करने से याचिकाकर्ता के लिए महत्वपूर्ण कानूनी और प्रतिष्ठा सम्बन्धी नतीजे हो सकते हैं, जिससे यह कहकर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया जा सकता है कि आरोपों में कुछ योग्यता थी, जबकि वे दोषी ठहराने के लिए अपर्याप्त थे. इसलिए किसी भी अभियोजन पक्ष के साक्ष्य की अनुपस्थिति में याचिकाकर्ता की बरी को स्पष्ट रूप से 'स्वच्छ बरी' के रूप में मान्यता देने का निर्देश दिया जाता है.

नागौर जिले के निवासी याचिकाकर्ता घनश्याम की ओर से अधिवक्ता रजाक खान हैदर ने आपराधिक विविध याचिका दायर कर कहा कि वर्ष 2004 में दर्ज हुए बलवा (धारा 147), स्वेच्छया उपहति (धारा 323) एवं रिष्टि (धारा 427), मानव जीवन को संकट में डालने का कार्य (धारा 336) के आपराधिक प्रकरण में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नागौर ने उसे संदेह का लाभ देकर जरिए राजीनामा और साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया था, लेकिन सम्मानजनक दोषमुक्ति नहीं होने के कारण याचिकाकर्ता के जीवन में विशेष रूप से सार्वजनिक रोजगार के मामले में उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.

पढ़ें: बेनीवाल हत्याकांड में पांच आरोपियों को उम्र कैद, तीन आरोपियों को मिला संदेह का लाभ - life imprisonment to murder accused

उन्होंने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष को पर्याप्त अवसर देने के बाद भी यदि आरोप संदेह से परे साबित नहीं होते हैं, तो आरोपी को सम्मानजनक दोषमुक्ति का अधिकार है, ताकि निर्दोष नागरिक को भविष्य में उसका दुष्प्रभाव नहीं झेलना पड़े. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त गरिमा के साथ जीने के अधिकार का हनन है. विचारण न्यायालय ने संदेह का लाभ देकर दोषमुक्त किया है, ऐसे में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अन्तर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा आक्षेपित आदेश को इस हद तक संशोधित किया जाए कि विचारण न्यायालय द्वारा संदेह का लाभ देते हुए की गई दोषमुक्ति को 'सम्मानजनक दोषमुक्ति' समझा जाए.

पढ़ें: खाद्य सुरक्षा कानून में पुलिस को कार्रवाई का अधिकार नहीं, आरोपी को अग्रिम जमानत - Rajasthan High Court

दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्य की अनुपस्थिति में याचिकाकर्ता की बरी को स्पष्ट रूप से स्वच्छ बरी के रूप में मान्यता देने के निर्देश के साथ याचिका निस्तारित कर दी. आपराधिक प्रकरण में सम्मानजनक दोषमुक्ति के अभाव में माध्यमिक शिक्षा विभाग ने शारीरिक प्रशिक्षण अनुदेशक ग्रेड तृतीय भर्ती-2018 में चयनोपरांत याचिकाकर्ता की नियुक्ति निरस्त कर दी थी.

जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए अभिनिर्धारित किया है कि संदेह से परे आरोप साबित नहीं होने पर आरोपी को सम्मानजनक दोषमुक्ति का अधिकार है. जस्टिस अरुण मोंगा की एकलपीठ ने फैसले में कहा कि विचारण न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के फैसले को गलत तरीके से वर्गीकृत करने से याचिकाकर्ता के लिए महत्वपूर्ण कानूनी और प्रतिष्ठा सम्बन्धी नतीजे हो सकते हैं, जिससे यह कहकर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया जा सकता है कि आरोपों में कुछ योग्यता थी, जबकि वे दोषी ठहराने के लिए अपर्याप्त थे. इसलिए किसी भी अभियोजन पक्ष के साक्ष्य की अनुपस्थिति में याचिकाकर्ता की बरी को स्पष्ट रूप से 'स्वच्छ बरी' के रूप में मान्यता देने का निर्देश दिया जाता है.

नागौर जिले के निवासी याचिकाकर्ता घनश्याम की ओर से अधिवक्ता रजाक खान हैदर ने आपराधिक विविध याचिका दायर कर कहा कि वर्ष 2004 में दर्ज हुए बलवा (धारा 147), स्वेच्छया उपहति (धारा 323) एवं रिष्टि (धारा 427), मानव जीवन को संकट में डालने का कार्य (धारा 336) के आपराधिक प्रकरण में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नागौर ने उसे संदेह का लाभ देकर जरिए राजीनामा और साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया था, लेकिन सम्मानजनक दोषमुक्ति नहीं होने के कारण याचिकाकर्ता के जीवन में विशेष रूप से सार्वजनिक रोजगार के मामले में उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.

पढ़ें: बेनीवाल हत्याकांड में पांच आरोपियों को उम्र कैद, तीन आरोपियों को मिला संदेह का लाभ - life imprisonment to murder accused

उन्होंने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष को पर्याप्त अवसर देने के बाद भी यदि आरोप संदेह से परे साबित नहीं होते हैं, तो आरोपी को सम्मानजनक दोषमुक्ति का अधिकार है, ताकि निर्दोष नागरिक को भविष्य में उसका दुष्प्रभाव नहीं झेलना पड़े. यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त गरिमा के साथ जीने के अधिकार का हनन है. विचारण न्यायालय ने संदेह का लाभ देकर दोषमुक्त किया है, ऐसे में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अन्तर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा आक्षेपित आदेश को इस हद तक संशोधित किया जाए कि विचारण न्यायालय द्वारा संदेह का लाभ देते हुए की गई दोषमुक्ति को 'सम्मानजनक दोषमुक्ति' समझा जाए.

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दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्य की अनुपस्थिति में याचिकाकर्ता की बरी को स्पष्ट रूप से स्वच्छ बरी के रूप में मान्यता देने के निर्देश के साथ याचिका निस्तारित कर दी. आपराधिक प्रकरण में सम्मानजनक दोषमुक्ति के अभाव में माध्यमिक शिक्षा विभाग ने शारीरिक प्रशिक्षण अनुदेशक ग्रेड तृतीय भर्ती-2018 में चयनोपरांत याचिकाकर्ता की नियुक्ति निरस्त कर दी थी.

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