गोड्डाः झारखंड की राजनीति में इन दिनों चंपाई सोरेन की काफी चर्चा हो रही है.उनकी हर गतिविधि पर राजनीतिक पंडितों की नजर है. चंपाई सोरेन ने पिछले दिनों अपना दर्द सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा भी किया था. जिसमें उन्होंने तीन विकल्प की बात कही थी. जिसमें उन्होंने कहा था कि पहला विकल्प राजनीति से संन्यास, दूसरा विकल्प अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा विकल्प राह में अगर कोई साथी मिले तो उसके साथ आगे का सफर तय करना.
क्या चंपाई बचा पाएंगे अपना राजनीतिक वजूद
लेकिन इस बीच चंपाई के भाजपा में शामिल होने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया.हालांकि मामला फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है. इसके अलावा उन्होंने राह में अगर कोई साथी मिले तो उसके साथ आगे का सफर तय करने की बात कही थी, लेकिन इसकी संभावना भी कम ही लग रही है. क्योंकि जिन नामों की चर्चा उनके साथ जाने की थी उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि उन्हें किसी के साथ नहीं जाना है. ऐसे में चंपाई के पास सिर्फ एक विकल्प बचता है कि वे अपना नया संगठन बना कर किसी तरह राजनीति वजूद बचाएं. संभवतः चंपाई इस ओर आगे भी बढ़ रहे हैं और लगातार अपने क्षेत्र कोल्हान में लोगों का मन टटोल रहे हैं.
नया संगठन का फंडा झारखंड में कारगर नहीं
वहीं चंपाई ने अपना अलग संगठन खड़ा करने की भी बात कही थी. इस संबंध में झारखंड की राजनीति पर पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार देवन कुमार पिंटू कहते हैं कि झारखंड में नया संगठन का फंडा आज तक कारगर नहीं हुआ है. उन्होंने मधु कोड़ा, जोबा मांझी, बाबूलाल मरांडी, सूरज मंडल और सरयू राय जैसे कई दिग्गज नेताओं का उदाहरण दिया है.
मधु कोड़ा की जय भारत समानता पार्टी का मिटा अस्तित्व
कोल्हान का ही उदाहरण लें तो भाजपा से राजनीति की शुरुआत करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने जय भारत समानता पार्टी 2009 में बनाई थी. मधु कोड़ा खुद पार्टी के अध्यक्ष थे. इस पार्टी ने 2009 के चुनाव में 9 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन सिर्फ गीता कोड़ा ने जन्ननाथपुर सीट से जीत दर्ज की. बाद के दिनों में गीता कोड़ा पार्टी की अध्यक्ष भी बनी थीं, लेकिन 2018 में गीता कांग्रेस में शामिल हो गईं. फिर कांग्रेस पार्टी से सिंहभूम सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बन गईं. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गीता ने भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन दाव उल्टा पड़ा गया और गीता कोड़ा झामुमो प्रत्याशी जोबा मांझी से हार गईं. इस तरह कोड़ा को जय भारत समानता पार्टी का वजूद खत्म हो गया.
यूजीडीपी का भी कोल्हान से मिट गया वजूद
इतना ही नहीं कोल्हान की सिंहभूम सीट से वर्तमान सांसद जोबा मांझी भी वर्ष 2000 में झामुमो से टिकट कट जाने के बाद यूजीडीपी (यूनाइटेड गोअंस डेमोक्रेटिक पार्टी ) से जुड़ गयी थीं और उन्होंने जोड़ा पत्ता छाप सिंबल से चुनाव लड़कर चुनाव जीता था. फिर 2005 के चुनाव भी इस पार्टी के हाथ दो सीटें लगीं. लेकिन 2009 के चुनाव में फिर जोबा को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2014 में झामुमो में यूजीडीपी का विलय हो गया. इसके बाद जोबा 2014 और 2019 के चुनाव में झामुमो से विधायक बनीं और 2024 के लोकसभा चुनाव में सिंहभूम सीट से झामुमो की टिकट पर सांसद बनी. इस तरह यूजीडीपी का भी कोल्हान से वजूद मिट गया और अंततः जोबा फिर से झामुमो में शामिल हो गईं.
सूरज मंडल का झारखंड विकास दल भी कारगर नहीं
इसी तरह राजनीति के दिग्गज माने जाने वाले सूरज मंडल कभी झामुमो में बड़ी हैसियत रखते थे. पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन के बाद नंबर दो की उनकी हैसियत थी, लेकिन उन्हें जब झामुमो से बाहर निकाला गया तो उन्होंने अपनी पार्टी बनाई. पार्टी का नाम दिया झारखंड विकास दल, लेकिन अपनी नई पार्टी से सूरज मंडल कभी चुनावी जीत का स्वाद नहीं चख पाए. आज राजनीतिक रूप से हाशिए पर हैं. सूरज मंडल गोड्डा लोकसभा सीट से सांसद और पोड़ैयाहाट से विधायक भी रह चुके हैं. फिलहाल सूरज मंडल भाजपा में हैं.
झारखंड विकास मोर्चा का भी भाजपा में हो गया विलय
वहीं बाबूलाल मरांडी ने भी एक समय भाजपा से अलग होकर झाविमो का गठन किया था. हालांकि नई पार्टी बनाने के बाद उन्हें आंशिक सफलता भी मिली थी, लेकिन बाद में पार्टी के विधायक टूटे और आखिरकार पिछले विधानसभा चुनाव में तीन में से दो विधायकों ने साथ छोड़ा सो फिर से बाबूलाल मरांडी ने भाजपा में जाना उचित समझा.
सरयू के भारतीय जन मोर्चा के भविष्य पर भी सवाल
वहीं भाजपा की रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय ने टिकट कटने पर रघुवर दास को उनके विधानसभा पूर्वी जमशेदपुर से हरा कर उनके राजनीतिक करियर पर ही सवाल खड़ा कर दिया था. इसके बाद सरयू राय ने अपनी पार्टी भारतीय जन मोर्चा बनाई. लेकिन 2024 में वे जदयू में शामिल हो गए.
नई पार्टी बनाकर कोई नेता नहीं सफल हो पाया
इस संबंध में कोल्हान की राजनीति पर पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार देवन कुमार पिंटू कहते हैं कि झारखंड में नई पार्टी बनाकर कोई स्थापित नेता सफल नहीं हो पाया है. उनकी कहानी लौट के बुद्धू घर को आये वाली हो जाती है. पहले भी मुख्यमंत्री और मंत्री अपनी ताकत आजमा चुके हैं. अब चंपाई कुछ ऐसा ही करने की बात कह रहे हैं, तो लोबिन हेंब्रम ने भी झारखंड बचाओ मोर्चा नामक पार्टी बना रखी है. लेकिन बताया जाता है कि लोबिन भी भाजपा में जाने की जुगत भिड़ा रहे हैं. वहीं पत्रकार नागमणि कहते हैं कि ऐसे प्रयोग झारखंड के संथाल परगना और कोल्हान में ज्यादा हुए हैं, लेकिन सब की आखिर कर भद्द पिट गई है.
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