मेरठ : सावन का महीना बेहद पवित्र माना जाता है. श्रावण मास शंकर भगवान को समर्पित होता है. भक्त भगवान शिव की आराधना करते हैं. ऐसे में हम आपको पश्चिमी यूपी के मेरठ में विश्वामित्र की तपोभूमि प्रांगण में स्थापित सैंकड़ों शिवलिंगों के बारे में बताने जा रहे हैं, हालांकि मेरठ को महाभारत कालीन धरा भी कहा जाता है, जबकि यहां के गगोल तीर्थ का धर्मग्रन्थों में भी जिक्र है. गगोल में सैंकड़ों की संख्या एक ही स्थान पर शिवलिंग स्थापित किये गए हैं. दावा तो यह भी किया जाता है कि जिस तरह से यहां पर ये शिवलिंग स्थापित किये गए हैं इस प्रकार देश में कहीं और नहीं हैं. आइये जानते हैं इनके बारे में.
सावन के महीने में हर तरफ भगवान शिव की आराधना की जा रही है. ऐसे में महाभारत कालीन धरा मेरठ में गगोल तीर्थ में स्थापित सैंकड़ों शिवलिंग हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं. गगोल तीर्थ की अपनी ही मान्यता है. यहां मोक्ष धाम की स्थापना की गई है. इस मोक्ष धाम की खासियत यह है कि स्वास्तिक के आकार पर सैंकड़ों शिवलिंग स्थापित यहां किये गए हैं.
गगोल तीर्थ के महंत शिवदास बताते हैं कि कई बार स्वप्न आया, जिसके बाद विशेष शिवलिंग स्थापित किए गए हैं. शिवदास धर्मग्रन्थों का जिक्र करते हुए बताते हैं कि जिस तरह से शिवलिंग गगोल तीर्थ में हैं, इनका धार्मिक पुस्तकों में भी वर्णन है. वह बताते हैं कि यह सभी शिवलिंग इस तरह से स्थापित किये गए हैं कि अगर कोई भी भक्त यहां आकर इस शिवलिंग क्षेत्र में एक बार परिक्रमा कर लेगा तो उसको इसका धार्मिक लाभ होगा. वह बताते हैं कि पूर्व दिशा से इस विशेष शिवलिंग क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद जब बाहर निकलेंगे तो उसकी 21 परिक्रमा पूर्ण हो जाएंगी.
महंत शिवदास यहां की अलग-अलग दिशाओं में स्थापित शिवलिंगों के बारे में विस्तार से बताते हैं. वह बताते हैं कि किस दिशा में स्थापित शिवलिंगों का क्या कुछ महत्व है. बता दें कि गगोल तीर्थ वह पावन भूमि है, जहां विश्वामित्र के धार्मिक अनुष्ठान में राक्षस जब बार-बार विघ्न पैदा कर रहे थे तो वह प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को लेकर यहां आए थे. उसके बाद भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण ने असुरों का वध किया था, तब जाकर विश्वामित्र का धार्मिक अनुष्ठान सम्पन हुआ था. फिलहाल गगोल तीर्थ में स्थापित सैंकड़ों शिवलिंग की परिक्रमा करने लोग आते हैं.
(डिस्क्लेमर: यह खबर धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है)
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