आगरा : आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे पर होने वाले हादसों को अब मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है. उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने शिकायत की थी. जिस पर आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बालकृष्ण नारायण ने आदेश पारित किया है. जिसमें आवेदक की ओर से जनहित सम्बंधी प्रकरण आयोग के समक्ष लाया गया है.
शिकायत में ये तथ्य भी संज्ञान में लाए गए हैं कि, आपात सेवाएं शीघ्र घटना स्थल पर पहुंचने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल स्थापित हों. कार्रवाई में देरी करने पर जिम्मेदारी निर्धारित हो. इसके साथ ही जागरूकता अभियान चलाए जाएं, जिसमें आपात सम्पर्क जानकारी प्रचारित की जाए. आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे पर पेट्रोलिंग और निगरानी बढ़ाई जाए. इसके साथ ही इसमें सामुदायिक सहभागिता बढ़ाई जाए.
बता दें कि, यूपीडा की ओर से उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग को अपनी जांच आख्या 22 मई 2024 को भेजी थी. जिसकी प्रति शिकायतकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता जैन को मिली है. यूपीडा ने अपनी जांच आख्या में आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे पर 15 जनवरी 2024 से 4 मार्च 2024 तक हुई सड़क दुर्घटनाओं की जांच कराना लिखा है. यूपीडा की दुर्घटना स्थल पर सेफ्टी टीम पहले से मौजूद थी. तत्काल सेफ्टी टीम की ओर से शव को सम्मानपूर्वक संरक्षित किया गया है. 3 मार्च 2024 को होने वाले दुर्घटना स्थल पर यूपीडा की टीम मौजूद थी.
आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे पर सड़क हादसे क्यों? : वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने यूपीडा की जांच आख्या को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि यदि पेट्रोलिंग टीम दुर्घटना स्थल पर पहले से ही मौजूद थी तो फिर पाड़ित के शव को अनेकों वाहनों ने कैसे कुचल दिया. 4 मार्च 2024 को हुए हादसे को लेकर आखिर यह बात क्यों लिखी कि आधा किलोमीटर के लम्बे भाग से पीड़ित के शव के हिस्सों को एकत्र करना पड़ा. यूपीडा ने रिपोर्ट में सड़क सुरक्षा के अपनाये जाने वाले अनेक उपायों की लम्बी सूची दी है. लेकिन, मेरा ये प्रश्न है कि, यदि सभी सुरक्षा उपाय अपनाए जा रहे हैं तो आखिर इतने सड़क हादसे आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे पर क्यों हो रहे हैं.
यूपीडा के पास हादसों की संख्या का कोई रिकॉर्ड नहीं : वरिष्ठ अधिवक्ता जैन ने बताया कि, सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जब यूपीडा से आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे पर होने वाले सड़क हादसों की संख्या और हादसे में मृतकों और घायलों की संख्या पूछी गई थी तो यूपीडा ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे. सूचना में ये जवाब दिया था कि, हमारे पास इस बारे में कोई रिकॉर्ड नहीं है और न ही उन्होंने ई-चालानों की संख्या बताई. जबकि, यूपीडा एक जिम्मेदार रोड एजेंसी है. इसलिए उसे हादसों एवं ई-चालानों का भी ध्यान रखना चाहिए, ताकि वाहन चालकों के मध्य जागरूकता और संवेदनशीलता उत्पन्न की जा सके. जब सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीटयूट (सीआरआरआई) नई दिल्ली ने भी आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे पर किए गए रोड सेफ्टी ऑडिट की रिपोर्ट मांगी तो उसे भी देने से यूपीडा ने मना कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर : वरिष्ठ अधिवक्ता जैन ने बताया कि पहले ही आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे और यमुना एक्सप्रेस वे पर होने वाले हादसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की जा चुकी है. जिसकी 11 जुलाई 2024 को सुनवाई होगी. उम्मीद है कि, भविष्य में रोड एजेंसीज अपनी अधिक जिम्मेदारी और पारदर्शिता के साथ एक्सप्रेसवे व हाईवे का प्रबंधन सुनिश्चित करेंगी.
आयोग के समक्ष उठाएंगे यह मुद्दे : वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन बताया कि, मानवाधिकार आयोग के समक्ष अपने पक्ष को उठाने के लिए तैयार हैं. यमुना एक्सप्रेस वे और आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे पर हो रहे हादसों संबंधी सुरक्षा में पारदर्शिता होनी चाहिए. सुरक्षा उपाय केवल कागजी नहीं वास्तविक होने चाहिए. जिससे हादसों की संख्या में कमी आए. सड़क हादसों में पीड़ितों के शवों को भी यथोचित सम्मान मिले. यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने अभी अपना पक्ष आयोग के समक्ष नहीं रखा है.
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