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हिमाचल में अडानी को 280 करोड़ का झटका, 19 साल में विदेशी कंपनी ब्रेकल, रिलायंस व देश की मिनी नवरत्न कंपनी के बीच झूलता 960 मेगावाट का प्रोजेक्ट - Jangi Thopan Power Project verdict

Adani group Upfront premium case: हाईकोर्ट ने हिमाचल सरकार को बड़ी राहत दी है. हाईकोर्ट की डबल बेंच ने गुरूवार को जारी फैसले में कहा कि राज्य सरकार जंगी-थोपन-पोवारी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए जमा 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी को अडानी पावर लिमिटेड को वापिस करने के लिए बाध्य नहीं है. आईए जानते हैं कि 19 सालों में इस प्रोजेक्ट को लेकर क्या-क्या घटनाक्रम हुए.

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 19, 2024, 5:32 PM IST

Updated : Jul 19, 2024, 5:51 PM IST

कान्सेप्ट इमेज
कान्सेप्ट इमेज (ईटीवी भारत)

शिमला: एशिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल अडानी समूह को हिमाचल में एक हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट में 280 करोड़ रुपए से अधिक का झटका लगा है. हिमाचल के किन्नौर जिला में एक हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट से जुड़े इस मामले में 19 साल में चार सरकारें बदलीं और अब पांचवीं सरकार के समय 760 मेगावाट के प्रोजेक्ट पर निर्णायक फैसला आया है.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरूवार को जारी फैसले में कहा कि राज्य सरकार जंगी-थोपन-पोवारी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए जमा 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी को अडानी पावर लिमिटेड को वापिस करने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि इस प्रोजेक्ट का करार अडानी समूह व हिमाचल सरकार के मध्य नहीं हुआ था.इस बीच, 19 साल में ये मामला नीदरलैंड की विदेशी कंपनी ब्रेकल से लेकर अडानी, रिलायंस व देश की मिनी नवरत्न कंपनी सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड के बीच झूलता रहा.आइए, जानते हैं वर्ष 2005 से लेकर अब तक इस मामले में क्या-क्या घटनाक्रम हुए. कैसे एक विदेशी कंपनी ने सबसे पहले हिमाचल सरकार के एक हाइड्रो पावर को लेकर करार किया और फिर 19 साल में भी ये प्रोजेक्ट बनकर तैयार नहीं हुआ.

वीरभद्र सरकार के समय जारी हुआ टेंडर

  • हिमाचल में वीरभद्र सिंह सरकार के समय नवंबर 2005 में जंगी-थोपन-पोवारी हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए निविदा जारी की गई थी. प्रोजेक्ट के लिए दस्तावेज जमा करने की अंतिम तारीख 16 मार्च 2006 थी. फिर 5 सितंबर 2006 को निविदा के दस्तावेज खोले गए. इसमें नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन सबसे ऊंची बोली वाली कंपनी पाई गई.
  • इस प्रक्रिया में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड यानी आरआईएल भी शामिल थी. आरआईएल ने प्रस्ताव दिया कि वो ब्रेकल कंपनी की बिड के अनुसार काम करने के लिए तैयार है.
  • फिर पहली दिसंबर 2006 को हिमाचल सरकार के ऊर्जा विभाग ने सबसे ऊंची बोली लगाने वाले ब्रेकल कारपोरेशन के पक्ष में एलओआई यानी लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया. ब्रेकल कंपनी को 9 दिसंबर 2006 को प्री-इम्प्लीमेंटेशन एग्रीमेंट साइन करने के साथ ही अपफ्रंट प्रीमियम मनी जमा करवाने के लिए कहा गया.
  • ब्रेकल ने सरकार से कहा कि वो प्री-इम्प्लीमेंटेशन अग्रीमेंट का अध्ययन करेगी.ऐसे में 11 दिसंबर 2006 को तत्कालीन सरकार ने एचपी हाईड्रो पावर पॉलिसी नोटिफाई कर दी।-ब्रेकल की तरफ से अपफ्रंट प्रीमियम रकम जमा नहीं की गई. इस पर रिलायंस ने राज्य सरकार को 20 अगस्त 2007 को पत्र लिखकर कहा कि वो ब्रेकल की बिड के साथ मैच करने के लिए राजी है. रिलायंस ने कहा कि ब्रेकल ने प्रीमियम की रकम जमा नहीं की तो प्रोजेक्ट आरआईएल को दिया जाए.आरआईएल ने ऐसे ही पत्र 25 सितंबर व पहली नवंबर को भी लिखे. जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो रिलायंस समूह ने सिविल रिट याचिका डाली
  • फिर 13 दिसंबर 2007 को सक्षम अदालत की तरफ से राज्य सरकार को नोटिस जारी हुआ. राज्य ने 7 जनवरी 2008 को अपना जवाब कोर्ट में दाखिल करने से पहले ब्रेकल को नोटिस जारी कर पूछा कि अपफ्रंट प्रीमियम जमा न करने पर क्यों न जंगी-थोपन-पोवारी के प्रोजेक्ट को कैंसिल किया जाए?
  • इस पर ब्रेकल कारपोरेशन की भारतीय सबसिडरी कंपनी ब्रेकल किन्नौर प्राइवेट लिमिटेड ने 173.43 करोड़ रुपए जमा करने की हामी भरी, लेकिन रिलायंस को ये स्वीकार नहीं हुआ.मामला फिर कानूनी पेच में फंस गया।-वर्ष 2008 में प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार आई.धूमल सरकार ने मामला कैबिनेट में लाया. इसी बीच, ब्रेकल ने प्रस्ताव किया कि वो 49 फीसदी इक्विटी अडानी पावर समूह को हस्तांतरित करने को राजी है. इसी प्रस्ताव पर कैबिनेट में चर्चा की गई.
  • राज्य सरकार की कैबिनेट ने फिर 7 जुलाई 2008 को फिर से ब्रेकल को कारण बताओ नोटिस जारी करने का फैसला लिया. नोटिस में कहा गया कि तकनीकी व वित्तीय स्थिति के संदर्भ में गलत जानकारी देने के लिए क्यों न अपफ्रंट मनी को फोरफिट किया जाए?
  • इस बीच, ब्रेकल ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया तो वहीं, रिलायंस कंपनी फिर से ताजी निविदा आमंत्रित करने के फैसले के खिलाफ कोर्ट का रुख किया।-हाईकोर्ट ने इन मामलों को निपटाते हुए राज्य सरकार को ब्रेकल की तरफ से कारण बताओ नोटिस पर फैसला लेने के निर्देश दिए.
  • मामला अदालत में चलता रहा और इसी बीच 29 जनवरी 2008 को अडानी समूह ने ब्रेकल को 173.43 करोड़ रुपए अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर जमा करने के लिए दिए. वहीं, कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि कंसोर्टियम मेंबरशिप को चेंज नहीं किया जा सकता. बिना सरकार की मंजूरी के ऐसा नहीं किया जा सकता. कारण ये था कि अडानी समूह कंसोर्टियम पार्टनर हो गया था. कोर्ट ने कहा कि इसके लिए सरकार से मंजूरी नहीं ली गई. साथ ही ये भी कहा कि तकनीकी दक्षता व वित्तीय संसाधनों के बिना कोई प्रोजेक्ट हासिल करना उचित नहीं कहा जा सकता. इससे गलत परंपरा स्थापित हो जाएगी.
  • इन सारे विवादों के बीच अडानी समूह ने अपफ्रंट मनी वापिस हासिल करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया. तभी 4 सितंबर 2015 को वीरभद्र सिंह सरकार के समय कैबिनेट में एक फैसला लिया जाता है कि अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम की रकम वापिस की जाए. ये फैसला 10 सितंबर 2015 को सार्वजनिक किया गया. वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल को जारी कारण बताओ नोटिस वापिस लेने का फैसला लिया. साथ ही राज्य सरकार ने कहा कि ब्रेकल को अपफ्रंट प्रीमियम की रकम हिमाचल सरकार वापिस करेगी, लेकिन ये रकम तब वापिस होगी, जब उतना पैसा रिलांयस जमा करेगा. यानी रिलायंस से लेकर पैसा ब्रेकल को देने की बात कही गई.
  • कुल मिलाकर इस प्रोजेक्ट में ब्रेकल, रिलायंस व अडानी समूह केंद्र में थे।-इसी दौरान 10 सितंबर 2015 को राज्य सरकार ने ये प्रोजेक्ट रिलायंस को आवंटित करने का फैसला लिया.
  • यहां गौर करने वाली बात है कि 9 सितंबर 2015 को राज्य सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (ऊर्जा) ने ऊर्जा निदेशक को एक पत्र लिखा और ब्रेकल को कारण बताओ नोटिस वापिस लेने के पीछे की वजह दर्ज की.एसीएस ने कहा कि चूंकि 2007 से ये प्रोजेक्ट कानूनी विवाद में उलझा हुआ है, लिहाजा दूसरे सबसे ऊंचे बोलीदाता रिलायंस को इसे दिया जा रहा है. रिलायंस को ये परियोजना उन्हीं शर्तों पर आवंटित की गई जो ब्रेकल के लिए थी.
  • दिलचस्प बात ये हुई कि रिलायंस ने भी परियोजना लेने से इनकार कर दिया. अब परियोजना सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड, एनएचपीसी व एनटीपीसी को देने का फैसला लिया गया.
  • 24 अगस्त 2013 को ब्रेकल कारपोरेशन ने सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि कंसोर्टियम पार्टनर होने के नाते अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ की रकम लौटाई जाए. हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने भी राज्य सरकार को अडानी समूह को ये पैसा लौटाने के आदेश दिए थे, जिसे गुरूवार को डबल बेंच ने पलट दिया.इस प्रकार अडानी समूह के 280 करोड़ रुपए पाने के प्रयास कामयाब नहीं हो पाए हैं.
  • मौजूदा परिस्थिति ये है कि सुखविंदर सिंह सरकार ने पिछले साल 18 नवंबर को कैबिनेट मीटिंग में 960 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट को जो एसजेवीएनएल को दिया गया था, का आवंटन रद्द कर दिया है. उधर, किन्नौर की स्थानीय जनता भी इस परियोजना के पक्ष में नहीं है. हाईकोर्ट के फैसले में भी उल्लेख है कि इस परियोजना के निर्माण न होने से वर्ष 2014 तक हिमाचल को 2770 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है. अनुमान लगाएं तो ये नुकसान 9000 करोड़ से अधिक था. यदि परियोजना समय पर पूरी होती तो अब तक बिजली वितरण के साथ-साथ राजस्व आना शुरू हो जाता. इससे पहले 22 अक्टूबर 2018 को जयराम सरकार ने इस परियोजना को एसजेवीएनएल को देने का फैसला लिया था.
  • अपफ्रंट मनी वो पैसा होता है जो कंपनी प्रति मेगावाट की तय दर से सरकार को देती है. वैसे तो ये पैसा नॉन रिफंडेबल होता है, लेकिन सरकार अपने स्तर पर कुछ कारण देकर इस पैसे को वापिस भी कर सकती है. हाईकोर्ट ने अपने गुरुवार के फैसले में कहा कि अडानी समूह ने ऐसी कंपनी के माध्यम से निवेश किया, जिसका आधार ही गलत था. ऐसे में उसे अपफ्रंट मनी वापिस नहीं की जा सकती
  • आरंभिक रूप से ये परियोजना 960 मेगावाट की ही थी. बाद में ये 804 मेगावाट व 760 मेगावाट की भी मानी गई. ये तकनीकी पहलू है, लेकिन ये परियोजना जंगी-थोपन व थोपन-पोवारी के तौर पर है. दोनों परियोजनाएं आरंभिक रूप से 480-480 मेगावाट की थी.

ये भी पढ़ें: हिमाचल सरकार को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, नहीं देने होंगे अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम के 280 करोड़ रुपये

शिमला: एशिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल अडानी समूह को हिमाचल में एक हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट में 280 करोड़ रुपए से अधिक का झटका लगा है. हिमाचल के किन्नौर जिला में एक हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट से जुड़े इस मामले में 19 साल में चार सरकारें बदलीं और अब पांचवीं सरकार के समय 760 मेगावाट के प्रोजेक्ट पर निर्णायक फैसला आया है.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरूवार को जारी फैसले में कहा कि राज्य सरकार जंगी-थोपन-पोवारी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए जमा 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी को अडानी पावर लिमिटेड को वापिस करने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि इस प्रोजेक्ट का करार अडानी समूह व हिमाचल सरकार के मध्य नहीं हुआ था.इस बीच, 19 साल में ये मामला नीदरलैंड की विदेशी कंपनी ब्रेकल से लेकर अडानी, रिलायंस व देश की मिनी नवरत्न कंपनी सतलुज जलविद्युत निगम लिमिटेड के बीच झूलता रहा.आइए, जानते हैं वर्ष 2005 से लेकर अब तक इस मामले में क्या-क्या घटनाक्रम हुए. कैसे एक विदेशी कंपनी ने सबसे पहले हिमाचल सरकार के एक हाइड्रो पावर को लेकर करार किया और फिर 19 साल में भी ये प्रोजेक्ट बनकर तैयार नहीं हुआ.

वीरभद्र सरकार के समय जारी हुआ टेंडर

  • हिमाचल में वीरभद्र सिंह सरकार के समय नवंबर 2005 में जंगी-थोपन-पोवारी हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए निविदा जारी की गई थी. प्रोजेक्ट के लिए दस्तावेज जमा करने की अंतिम तारीख 16 मार्च 2006 थी. फिर 5 सितंबर 2006 को निविदा के दस्तावेज खोले गए. इसमें नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन सबसे ऊंची बोली वाली कंपनी पाई गई.
  • इस प्रक्रिया में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड यानी आरआईएल भी शामिल थी. आरआईएल ने प्रस्ताव दिया कि वो ब्रेकल कंपनी की बिड के अनुसार काम करने के लिए तैयार है.
  • फिर पहली दिसंबर 2006 को हिमाचल सरकार के ऊर्जा विभाग ने सबसे ऊंची बोली लगाने वाले ब्रेकल कारपोरेशन के पक्ष में एलओआई यानी लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया. ब्रेकल कंपनी को 9 दिसंबर 2006 को प्री-इम्प्लीमेंटेशन एग्रीमेंट साइन करने के साथ ही अपफ्रंट प्रीमियम मनी जमा करवाने के लिए कहा गया.
  • ब्रेकल ने सरकार से कहा कि वो प्री-इम्प्लीमेंटेशन अग्रीमेंट का अध्ययन करेगी.ऐसे में 11 दिसंबर 2006 को तत्कालीन सरकार ने एचपी हाईड्रो पावर पॉलिसी नोटिफाई कर दी।-ब्रेकल की तरफ से अपफ्रंट प्रीमियम रकम जमा नहीं की गई. इस पर रिलायंस ने राज्य सरकार को 20 अगस्त 2007 को पत्र लिखकर कहा कि वो ब्रेकल की बिड के साथ मैच करने के लिए राजी है. रिलायंस ने कहा कि ब्रेकल ने प्रीमियम की रकम जमा नहीं की तो प्रोजेक्ट आरआईएल को दिया जाए.आरआईएल ने ऐसे ही पत्र 25 सितंबर व पहली नवंबर को भी लिखे. जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो रिलायंस समूह ने सिविल रिट याचिका डाली
  • फिर 13 दिसंबर 2007 को सक्षम अदालत की तरफ से राज्य सरकार को नोटिस जारी हुआ. राज्य ने 7 जनवरी 2008 को अपना जवाब कोर्ट में दाखिल करने से पहले ब्रेकल को नोटिस जारी कर पूछा कि अपफ्रंट प्रीमियम जमा न करने पर क्यों न जंगी-थोपन-पोवारी के प्रोजेक्ट को कैंसिल किया जाए?
  • इस पर ब्रेकल कारपोरेशन की भारतीय सबसिडरी कंपनी ब्रेकल किन्नौर प्राइवेट लिमिटेड ने 173.43 करोड़ रुपए जमा करने की हामी भरी, लेकिन रिलायंस को ये स्वीकार नहीं हुआ.मामला फिर कानूनी पेच में फंस गया।-वर्ष 2008 में प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार आई.धूमल सरकार ने मामला कैबिनेट में लाया. इसी बीच, ब्रेकल ने प्रस्ताव किया कि वो 49 फीसदी इक्विटी अडानी पावर समूह को हस्तांतरित करने को राजी है. इसी प्रस्ताव पर कैबिनेट में चर्चा की गई.
  • राज्य सरकार की कैबिनेट ने फिर 7 जुलाई 2008 को फिर से ब्रेकल को कारण बताओ नोटिस जारी करने का फैसला लिया. नोटिस में कहा गया कि तकनीकी व वित्तीय स्थिति के संदर्भ में गलत जानकारी देने के लिए क्यों न अपफ्रंट मनी को फोरफिट किया जाए?
  • इस बीच, ब्रेकल ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया तो वहीं, रिलायंस कंपनी फिर से ताजी निविदा आमंत्रित करने के फैसले के खिलाफ कोर्ट का रुख किया।-हाईकोर्ट ने इन मामलों को निपटाते हुए राज्य सरकार को ब्रेकल की तरफ से कारण बताओ नोटिस पर फैसला लेने के निर्देश दिए.
  • मामला अदालत में चलता रहा और इसी बीच 29 जनवरी 2008 को अडानी समूह ने ब्रेकल को 173.43 करोड़ रुपए अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर जमा करने के लिए दिए. वहीं, कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि कंसोर्टियम मेंबरशिप को चेंज नहीं किया जा सकता. बिना सरकार की मंजूरी के ऐसा नहीं किया जा सकता. कारण ये था कि अडानी समूह कंसोर्टियम पार्टनर हो गया था. कोर्ट ने कहा कि इसके लिए सरकार से मंजूरी नहीं ली गई. साथ ही ये भी कहा कि तकनीकी दक्षता व वित्तीय संसाधनों के बिना कोई प्रोजेक्ट हासिल करना उचित नहीं कहा जा सकता. इससे गलत परंपरा स्थापित हो जाएगी.
  • इन सारे विवादों के बीच अडानी समूह ने अपफ्रंट मनी वापिस हासिल करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया. तभी 4 सितंबर 2015 को वीरभद्र सिंह सरकार के समय कैबिनेट में एक फैसला लिया जाता है कि अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम की रकम वापिस की जाए. ये फैसला 10 सितंबर 2015 को सार्वजनिक किया गया. वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल को जारी कारण बताओ नोटिस वापिस लेने का फैसला लिया. साथ ही राज्य सरकार ने कहा कि ब्रेकल को अपफ्रंट प्रीमियम की रकम हिमाचल सरकार वापिस करेगी, लेकिन ये रकम तब वापिस होगी, जब उतना पैसा रिलांयस जमा करेगा. यानी रिलायंस से लेकर पैसा ब्रेकल को देने की बात कही गई.
  • कुल मिलाकर इस प्रोजेक्ट में ब्रेकल, रिलायंस व अडानी समूह केंद्र में थे।-इसी दौरान 10 सितंबर 2015 को राज्य सरकार ने ये प्रोजेक्ट रिलायंस को आवंटित करने का फैसला लिया.
  • यहां गौर करने वाली बात है कि 9 सितंबर 2015 को राज्य सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (ऊर्जा) ने ऊर्जा निदेशक को एक पत्र लिखा और ब्रेकल को कारण बताओ नोटिस वापिस लेने के पीछे की वजह दर्ज की.एसीएस ने कहा कि चूंकि 2007 से ये प्रोजेक्ट कानूनी विवाद में उलझा हुआ है, लिहाजा दूसरे सबसे ऊंचे बोलीदाता रिलायंस को इसे दिया जा रहा है. रिलायंस को ये परियोजना उन्हीं शर्तों पर आवंटित की गई जो ब्रेकल के लिए थी.
  • दिलचस्प बात ये हुई कि रिलायंस ने भी परियोजना लेने से इनकार कर दिया. अब परियोजना सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड, एनएचपीसी व एनटीपीसी को देने का फैसला लिया गया.
  • 24 अगस्त 2013 को ब्रेकल कारपोरेशन ने सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि कंसोर्टियम पार्टनर होने के नाते अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ की रकम लौटाई जाए. हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने भी राज्य सरकार को अडानी समूह को ये पैसा लौटाने के आदेश दिए थे, जिसे गुरूवार को डबल बेंच ने पलट दिया.इस प्रकार अडानी समूह के 280 करोड़ रुपए पाने के प्रयास कामयाब नहीं हो पाए हैं.
  • मौजूदा परिस्थिति ये है कि सुखविंदर सिंह सरकार ने पिछले साल 18 नवंबर को कैबिनेट मीटिंग में 960 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट को जो एसजेवीएनएल को दिया गया था, का आवंटन रद्द कर दिया है. उधर, किन्नौर की स्थानीय जनता भी इस परियोजना के पक्ष में नहीं है. हाईकोर्ट के फैसले में भी उल्लेख है कि इस परियोजना के निर्माण न होने से वर्ष 2014 तक हिमाचल को 2770 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है. अनुमान लगाएं तो ये नुकसान 9000 करोड़ से अधिक था. यदि परियोजना समय पर पूरी होती तो अब तक बिजली वितरण के साथ-साथ राजस्व आना शुरू हो जाता. इससे पहले 22 अक्टूबर 2018 को जयराम सरकार ने इस परियोजना को एसजेवीएनएल को देने का फैसला लिया था.
  • अपफ्रंट मनी वो पैसा होता है जो कंपनी प्रति मेगावाट की तय दर से सरकार को देती है. वैसे तो ये पैसा नॉन रिफंडेबल होता है, लेकिन सरकार अपने स्तर पर कुछ कारण देकर इस पैसे को वापिस भी कर सकती है. हाईकोर्ट ने अपने गुरुवार के फैसले में कहा कि अडानी समूह ने ऐसी कंपनी के माध्यम से निवेश किया, जिसका आधार ही गलत था. ऐसे में उसे अपफ्रंट मनी वापिस नहीं की जा सकती
  • आरंभिक रूप से ये परियोजना 960 मेगावाट की ही थी. बाद में ये 804 मेगावाट व 760 मेगावाट की भी मानी गई. ये तकनीकी पहलू है, लेकिन ये परियोजना जंगी-थोपन व थोपन-पोवारी के तौर पर है. दोनों परियोजनाएं आरंभिक रूप से 480-480 मेगावाट की थी.

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Last Updated : Jul 19, 2024, 5:51 PM IST
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