बीकानेर. बदलता परिवेश, पर्यावरणीय असंतुलन और टेक्नोलॉजी यानी कि मोबाइल का ज्यादा उपयोग बच्चों के लिए ठीक नहीं है. अचानक से छोटे बच्चों के व्यवहार में दिखने वाला परिवर्तन का एक बड़ा कारण ऑटिज्म नाम की बीमारी का लक्षण है. बीकानेर के फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. अमित पुरोहित कहते हैं कि न्यूरोनिकल डिसऑर्डर इस बीमारी का मुख्य कारण है.
व्यवहार में हो बदलाव, तो हो जाएं सचेत : डॉ. अमित पुरोहित का कहना है कि 18 महीने के बाद बच्चों में यह लक्षण सामने आते हैं. यदि बच्चा सामान्य व्यवहार से अलग व्यवहार कर रहा है, तो अभिभावकों को सावधान होने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चों का मानसिक विकास अलग होता है और उनके व्यवहार बोलचाल में ऑटिज्म के लक्षण नजर आने लगते हैं.
ये हैं लक्षण : डॉ. अमित पुरोहित ने बताया कि बार-बार एक ही चीज को दोहराना. बोलचाल में दिक्कत और व्यवहार में बदलाव इसके शुरुआती लक्षण हैं, जो सामान्य तौर पर अभिभावकों को नजर आ जाते हैं. इसके अलावा किसी खिलौने की जिद करना या किसी भी रंग की वस्तु या कोई भी अलग तरह की प्रवृत्ति का बच्चा ऑटिज्म का शिकार होता है. ऐसे बच्चे सामान्य बच्चों के मुकाबले पढ़ने-लिखने या दूसरी चीजों में थोड़े कमजोर होते हैं, लेकिन ऐसा भी देखने में आया है कि इस बीमारी के शिकार कई बच्चे किसी एक चीज में दक्ष भी हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि 18 महीने से 3 साल के बच्चों में यह लक्षण कभी भी देखने को मिल सकते हैं और इसका समय से इलाज जरूरी है.
कोविड के बाद बढ़े मामले : डॉ. अमित पुरोहित ने बताया कि वैसे तो पूरे विश्व में ऑटिज्म के मामले देखने को मिल रहे हैं, लेकिन खासतौर से कोविड के बाद ऐसे मामले बढ़े हैं. उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के दौरान दवाइयों का सेवन भी एक कारण हो सकता है. वहीं, आजकल छोटे बच्चों द्वारा अधिक मोबाइल का उपयोग भी इसका कारण माना जा सकता है. उन्होंने बताया कि पहले ऐसे बच्चों के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास नहीं हुए, लेकिन 2014 के बाद इसे विकलांगता की श्रेणी में शामिल किया गया है और अब सरकारी स्तर पर भी इसको लेकर प्रयास देखने को मिल रहे हैं.
हाइपर होने लगा तो आया समझ : वहीं, एक बच्चे की माता शालिनी ने बताया कि शुरुआत में जब बच्चे ने बोलना बंद कर दिया, तब लगा कि जिद की वजह से कर रहा है, लेकिन बाद में बच्चे की हाइपर एक्टिवनेस से थोड़ा चिंता हुई और डॉक्टर्स को दिखाया तो ऑटिज्म का कारण सामने आया. उन्होंने बताया कि जब डॉक्टर को दिखाया, तब समझ में आया कि दवाइयों से इसका इलाज संभव नहीं है, बल्कि फिजियोथैरेपी ही इसका इलाज है.
नियमित फिजियोथेरेपी से अब बच्चे में काफी सुधार आ रहा है और धीरे-धीरे वह सामान्य हो रहा है. फिजियोथेरेपिस्ट डॉ अमित पुरोहित कहते हैं कि बच्चों को समय से फिजियोथेरेपी करते हुए दूसरी गतिविधियों में शामिल करने से बच्चों की मनोवृत्ति में बदलाव आता है और वह सामान्य होने लगते हैं. पुरोहित कहते हैं कि एक स्टडी के अनुसार 65 बच्चों में से एक बच्चा जन्म से ही ऑटिज्म का शिकार होता है और जन्म के बाद 50 बच्चों में एक बच्चा इसका पीड़ित होता है.