रायपुर : छत्तीसगढ़ में पिछले तीन दिनों से हो रही बारिश का असर अब बांधों के जलभराव पर दिखने लगा है.तीन दिनों के बारिश के बाद प्रदेश के ज्यादातर बांधों में पानी लबालब भर चुका है. आईए आपको बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के बांधों में अभी की स्थिति में कितना पानी भर चुका है.
बालोद के जलाशय का मिटा सूखा : आपको बता दें कि इस साल तांदुला जलाशय का जलस्तर सबसे निचले स्तर पर था. लेकिन दो दिनों से हो रही बारिश के कारण बांध में तेजी से जल भराव हुआ. वर्तमान समय में दो दिनों की बारिश के बाद जल स्तर 23 फीट तक चला गया है.आपको बता दें कि इसका कैचमेंट एरिया जंगली क्षेत्र में होने की वजह से अब यहां पानी का आना बढ़ेगा. जिससे यह जलस्तर 2 फीट और बढ़ सकता है. इस जलाशय को खुशहाली का प्रतीक माना जाता है. तांदुला जलाशय में 20% जलभराव हो चुका है. वहीं गोंदली जलाशय में 12 और खरखरा जलाशय में 25 प्रतिशत जल भराव हुआ है. वही मटिया मोती जलाशय में 30 फीसदी जल भराव हुआ है.
धमतकी में भी बांध पानी से हुए गुलजार : छत्तीसगढ़ के बड़े बांधों में से एक धमतरी का गंगरेल बांध है. हरे भरे वृक्षों के अलावा 14 गेट वाला बांध लोगों को आकर्षित करता है. गंगरेल बांध का एक और नाम रविशंकर जलाशय है. इस बांध का निर्माण महानदी पर किया गया है. गंगरेल बांध में जल धारण क्षमता 15000 क्यूसेक है. यह बांध सबसे बड़ा और सबसे लंबा बांध माना जाता है. जलभराव की बात करें तो 32.15 टीएमसी वाले गंगरेल बांध में 15.004 टीएमसी पानी भर गया है. यहां 66 हजार 36 क्यूसेक पानी आ रहा है. अब तक गंगरेल में 40 फीसदी पानी भर चुका है.
मॉडम सिल्ली बांध : अंग्रेजों के बनाए गए इस बांध में कई खासियत है, माडम सिल्ली बांध पूरे एशिया का एक मात्र साइफान सिस्टम बांध है. इसमें पानी ऊंचाई से नीचे की ओर गिरता है, जिसके कारण खूबसूरत और मनमोहक लगता है. बांध का निर्माण इंग्लैंड निवासी महिला इंजीनियर मैडम सिल्ली ने की थी. इसी वजह से इस बांध का नाम माडम सिल्ली पड़ा. बांध की और एक खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए ईंट सीमेंट, लोहे का उपयोग नहीं किया गया था. धमतरी का माडम सिल्ली बांध महानदी की सहायक नदी सिल्लारी नदी पर बना है. मॉडम सिल्ली मिट्टी से भरा तटबंध बांध है. वर्ष 1914 और 1923 के बीच निर्मित देश का ये एकलौता बांध है जो सायफन सिस्टम होने के साथ चालू हालत में है. करीब 100 साल की उम्र बीत जाने के बाद भी इस बांध की मजबूती में कोई फर्क नहीं आया है. आज भी इसके सभी गेट चालू हालत में है. बारिश मे बांध भरते ही ऑटोमेटिक सायफन गेट से पानी निकलना शुरू हो जाता है. इस बांध में 34 सायफन सिस्टम हैं. इसके अंदर बेबी सायफन भी हैं. माडमसिल्ली बांध जो 5.839 टीएमसी वाली क्षमता रखता है जिसमे में 2.790 टीएमसी पानी भर गया है. यहां 15 हजार 682 क्यूसेक पानी आ रहा है. अब तक माडमसिल्ली में 46.66 फीसदी पानी भर गया है.
दुधावा डैम भी लबालब : धमतरी जिले का दुधावा डैम भी 39 फीसदी तक भर चुका है.इस डैम का निर्माण 1953 में शुरु होकर 1964 में समाप्त हुआ.ये बांध महानदी पर बना है.जिसकी दूरी सिहावा से 21 और कांकेर से 29 किलोमीटर है.दूधावा गांव में डैम बनने के कारण इसका नाम गांव के नाम पर पड़ा. 10.192 टीएमसी वाले दुधावा बांध में 4.112 टीएमसी पानी भर गया है. यहां 5 हजार 194 क्यूसेक पानी आ रहा है. दुधावा बांध में 39 फीसदी पानी भर गया है.
कांकेर जिले में भी जलाशय भरे : कांकेर जिले के 77 छोटे-बड़े जलाशयों में से सिहारीनाला, धनेसरा, डोकला, महोदनाल, मरकाटोला, चावड़ी, गितपहर, कुरुभाट, पिच्चेकट्टा, आसुलखार और पीवी-21 शत-प्रतिशत भर चुके हैं. अन्य तालाबों में 12 से 90 प्रतिशत तक पानी है. बड़े जलाशयों में परलकोट डैम 14 और मयाना जलाशय 21 प्रतिशत ही पानी भरा है.
कोरबा के जलाशय भी जलमग्न : तीन दिनों की बारिश के बाद कोरबा के जलाशय भी लबालब हैं. हसदेव दर्री बैराज के 14 में से एक गेट, गेट क्रमांक 8 को 3 फीट खोला गया है .जिसमें से 4156 क्यूसेक पानी नदी में छोड़ा जा रहा है. जबकि 1622 क्यूसेक पानी बाईं तट नहर में और 500 क्यूसेक पानी दाईं तट नहर में छोड़ा गया है. हसदेव दर्री बराज की कुल क्षमता 141 फिट है. 141.50 फीट होने पर पानी छोड़ा जाता है.