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ब्रज में क्यों होली की जगह खेला जाता होरा...कान्हा नगरी में बने रंग-गुलाल की क्या खासियत? - MATHURA NEWS

कान्हा नगरी मथुरा में बसंत पंचमी से होली की शुरुआत, 2 महीने से फैक्ट्रियों में बनाए जा रहे रंग और गुलाल

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गुलाल फैक्ट्री (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 15, 2025, 8:46 PM IST

मथुराः सब जग होरी, ब्रज होरा.... श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में फागुन रंगोत्सव को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. पूरे देश में होली खेली जाती है लेकिन ब्रज में होरा खेला जाता है. ब्रज में चालीस दिनों तक होली खेली जाती है, जिसकी शुरुआत बसंत पंचमी से हो चुकी है.

श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा वृंदावन बरसाना गोवर्धन और गोकुल की मंदिरों में फागुन रंगोंत्सव बसंत पंचमी के दिन से प्रारंभ हो जाती है. ठाकुर जी को गुलाल लगाकर मंदिरों में बसंत पंचमी की दिन से गुलाल शुरू हो गया है. रंगभरी एकादशी के दिन से मंदिरों में रंगो की होली शुरू हो जाती है. पूरे ब्रज में 40 दिनों तक अलग-अलग रंगों से होली खेली जाती है. फूल, लड्डू, लठ्ठ मार, चप्पल मार होली होती हैं. इसीलिए कहते हैं कि पूरे देश में होली खेली जाती है और ब्रज में होरा खेला जाता है. होली देखने के लिए देश-विदेश लाखों की संख्या में श्रद्धालु मथुरा, वृन्दावन, बरसाना और गोकुल पहुंचते हैं. ब्रज की होली विश्व विख्यात है. कहा जाता है कि फागुन में होली खेले के लिए स्वर्गलोक से देवी-देवता धरती लोक पर किसी ना किसी रूप में पधारते हैं.

जिले में तीन फैक्ट्रियों में बन रहा रंग. (Video Credit; ETV Bharat)
जितना होली खेलने के लिए मथुरा प्रसिद्ध है. उतना ही यहां के बनाए रंग-गुलाल भी पूरे देश में पसंद किए जाते हैं. इसलिए तो होली से 2-3 महीने पहले फैक्ट्रियों में रंग और गुलाल बनने लगा है. आगरा दिल्ली राजमार्ग किनारे एक स्थाई फैक्ट्री ओर दो अस्थाई फैक्ट्री में देहात क्षेत्र में रंग-बिरंगे गुलाल तैयार करने में कारीगर जुटे हैं. हर रोज तीनों फैक्ट्री में चालीस कारीगर बीस टन गुलाल तैयार कर रहे हैं. मथुरा से बना हुआ रंग गुलाल देश के अनेक राज्यो में सप्लाई किया जाता है. गुलाल बनाने के लिए नैचुरल कलर और अरारोट का इस्तेमाल किया जा रहा है, जोकि शरीर को हानिकारक नहीं पहुंचाता है. कारीगरों को हर महीने आठ हजार से दस हजार रुपए तनख्वाह दी जाती है.


जिले के फैक्ट्री में बने हुए रंग बिरंगे गुलाल की सप्लाई यूपी, हरियाणा राजस्थान, दिल्ली पंजाब में सप्लाई की जाती है. होली के नजदीक आते ही गुलाल और रंग तैयार करने के आर्डर मिल रहे हैं. जिसको लेकर कई कुंटल रंग-गुलाल बनना शुरु हो चुका है. 400 टन गुलाल दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में भेजा जाता है. ब्रज में होली विभिन्न रंगों के साथ खेली जाती है. भगवान के मंदिर, साधु संतों के आश्रम और आम जनमानस जी होली का अद्भुत आनंद लेते हैं.

कारीगरों ने बताया कि गुलाल बनाने के लिए हर्बल कलर और सफेद अरारोट का इस्तेमाल किया जाता है. सबसे पहले अरारोट को धूप में सुखाया जाता है और कलर को बारीक पीस कर के बाद दोनों को हाथों से खूब अच्छी तरह मिला दिया जाता है. इसके बाद फिर धूप में सुखाया जाता है. रंग गुलाल को एकत्रित करके पैकिंग के लिए भेज दिया जाता है. चेहरे पर कलर लगाते समय कोई नुकसान ना हो इसलिए गुलाल सुगंधित और मुलायम गुलाल तैयार होता है.

फैक्ट्री सुपरवाइजर शेलेन्द्र चतुर्वेदी ने बताया कि उनकी फैक्ट्री में गुलाल और रंग मंदिर के लिए तैयार किया जा रहा है. यहां से बना हुआ गुलाल आश्रम मंदिर और दिल्ली यूपी हरियाणा राजस्थान की जगह सप्लाई किया जाता है. गुलाल रंग बनाते समय बेहद ध्यान दिया जाता है. अरारोट और नेचर कलर से यहां गुलाल और रंग बनाई जाते हैं, जो कि शरीर को नुकसानदायक नहीं होता. फैक्ट्री में 20 कारीगर लगे हुए हैं और हर रोज तीन टन माल तैयार कर रहे हैं. कारीगर दाऊजी ने बताया कि फैक्ट्री में अरारोट और नैचुरल कलर से गुलाल और रंग बनाई जाते हैं. धूप में सुखाने के बाद इनकी पैकिंग कर दी जाती है और बाहर सप्लाई कर दिया जाता है. 18 साल से फैक्ट्री में रंग गुलाल तैयार करते हुए आ रहे हैं.

  • 7 मार्च बरसाना लड्डू मार होली
  • 8 मार्च बरसाना लठ्ठमार होली
  • 9 मार्च को नंदगांव लठ्ठमार होली
  • 10 मार्च को रंग भरी एकादशी श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर होली
  • 11 मार्च को द्वारकाधीश मंदिर में होली
  • 11 मार्च को गोकुल गुरु शरणानंद महाराज के आश्रम में होली
  • 12 मार्च को बांके बिहारी मंदिर में होली
  • 12 मार्च को चतुर्वेदी समाज का होली डोला
  • 13 मार्च को फालेन होलिका दहन
  • 14 मार्च को होली देश भर में
  • 15 मार्च को दाऊजी हुरंगा
  • 16 मार्च नंदगांव का हुरंगा
  • 22 मार्च वृंदावन रंगनाथ रंगजी मंदिर की होली

    इसे भी पढ़ें-ब्रज में होलिकात्सव शुरू: 40 दिन तक अलग-अलग होली, जानिए लट्ठमार से लड्डूमार होली तक की परंपरा

मथुराः सब जग होरी, ब्रज होरा.... श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में फागुन रंगोत्सव को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. पूरे देश में होली खेली जाती है लेकिन ब्रज में होरा खेला जाता है. ब्रज में चालीस दिनों तक होली खेली जाती है, जिसकी शुरुआत बसंत पंचमी से हो चुकी है.

श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा वृंदावन बरसाना गोवर्धन और गोकुल की मंदिरों में फागुन रंगोंत्सव बसंत पंचमी के दिन से प्रारंभ हो जाती है. ठाकुर जी को गुलाल लगाकर मंदिरों में बसंत पंचमी की दिन से गुलाल शुरू हो गया है. रंगभरी एकादशी के दिन से मंदिरों में रंगो की होली शुरू हो जाती है. पूरे ब्रज में 40 दिनों तक अलग-अलग रंगों से होली खेली जाती है. फूल, लड्डू, लठ्ठ मार, चप्पल मार होली होती हैं. इसीलिए कहते हैं कि पूरे देश में होली खेली जाती है और ब्रज में होरा खेला जाता है. होली देखने के लिए देश-विदेश लाखों की संख्या में श्रद्धालु मथुरा, वृन्दावन, बरसाना और गोकुल पहुंचते हैं. ब्रज की होली विश्व विख्यात है. कहा जाता है कि फागुन में होली खेले के लिए स्वर्गलोक से देवी-देवता धरती लोक पर किसी ना किसी रूप में पधारते हैं.

जिले में तीन फैक्ट्रियों में बन रहा रंग. (Video Credit; ETV Bharat)
जितना होली खेलने के लिए मथुरा प्रसिद्ध है. उतना ही यहां के बनाए रंग-गुलाल भी पूरे देश में पसंद किए जाते हैं. इसलिए तो होली से 2-3 महीने पहले फैक्ट्रियों में रंग और गुलाल बनने लगा है. आगरा दिल्ली राजमार्ग किनारे एक स्थाई फैक्ट्री ओर दो अस्थाई फैक्ट्री में देहात क्षेत्र में रंग-बिरंगे गुलाल तैयार करने में कारीगर जुटे हैं. हर रोज तीनों फैक्ट्री में चालीस कारीगर बीस टन गुलाल तैयार कर रहे हैं. मथुरा से बना हुआ रंग गुलाल देश के अनेक राज्यो में सप्लाई किया जाता है. गुलाल बनाने के लिए नैचुरल कलर और अरारोट का इस्तेमाल किया जा रहा है, जोकि शरीर को हानिकारक नहीं पहुंचाता है. कारीगरों को हर महीने आठ हजार से दस हजार रुपए तनख्वाह दी जाती है.


जिले के फैक्ट्री में बने हुए रंग बिरंगे गुलाल की सप्लाई यूपी, हरियाणा राजस्थान, दिल्ली पंजाब में सप्लाई की जाती है. होली के नजदीक आते ही गुलाल और रंग तैयार करने के आर्डर मिल रहे हैं. जिसको लेकर कई कुंटल रंग-गुलाल बनना शुरु हो चुका है. 400 टन गुलाल दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में भेजा जाता है. ब्रज में होली विभिन्न रंगों के साथ खेली जाती है. भगवान के मंदिर, साधु संतों के आश्रम और आम जनमानस जी होली का अद्भुत आनंद लेते हैं.

कारीगरों ने बताया कि गुलाल बनाने के लिए हर्बल कलर और सफेद अरारोट का इस्तेमाल किया जाता है. सबसे पहले अरारोट को धूप में सुखाया जाता है और कलर को बारीक पीस कर के बाद दोनों को हाथों से खूब अच्छी तरह मिला दिया जाता है. इसके बाद फिर धूप में सुखाया जाता है. रंग गुलाल को एकत्रित करके पैकिंग के लिए भेज दिया जाता है. चेहरे पर कलर लगाते समय कोई नुकसान ना हो इसलिए गुलाल सुगंधित और मुलायम गुलाल तैयार होता है.

फैक्ट्री सुपरवाइजर शेलेन्द्र चतुर्वेदी ने बताया कि उनकी फैक्ट्री में गुलाल और रंग मंदिर के लिए तैयार किया जा रहा है. यहां से बना हुआ गुलाल आश्रम मंदिर और दिल्ली यूपी हरियाणा राजस्थान की जगह सप्लाई किया जाता है. गुलाल रंग बनाते समय बेहद ध्यान दिया जाता है. अरारोट और नेचर कलर से यहां गुलाल और रंग बनाई जाते हैं, जो कि शरीर को नुकसानदायक नहीं होता. फैक्ट्री में 20 कारीगर लगे हुए हैं और हर रोज तीन टन माल तैयार कर रहे हैं. कारीगर दाऊजी ने बताया कि फैक्ट्री में अरारोट और नैचुरल कलर से गुलाल और रंग बनाई जाते हैं. धूप में सुखाने के बाद इनकी पैकिंग कर दी जाती है और बाहर सप्लाई कर दिया जाता है. 18 साल से फैक्ट्री में रंग गुलाल तैयार करते हुए आ रहे हैं.

  • 7 मार्च बरसाना लड्डू मार होली
  • 8 मार्च बरसाना लठ्ठमार होली
  • 9 मार्च को नंदगांव लठ्ठमार होली
  • 10 मार्च को रंग भरी एकादशी श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर होली
  • 11 मार्च को द्वारकाधीश मंदिर में होली
  • 11 मार्च को गोकुल गुरु शरणानंद महाराज के आश्रम में होली
  • 12 मार्च को बांके बिहारी मंदिर में होली
  • 12 मार्च को चतुर्वेदी समाज का होली डोला
  • 13 मार्च को फालेन होलिका दहन
  • 14 मार्च को होली देश भर में
  • 15 मार्च को दाऊजी हुरंगा
  • 16 मार्च नंदगांव का हुरंगा
  • 22 मार्च वृंदावन रंगनाथ रंगजी मंदिर की होली

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