पटना: होली रंगों का त्यौहार है. होली से एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा है. ऐसे में पटना के मसौढ़ी में अलग-अलग स्थानों पर कुल 22 जगह होलिका दहन कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
मसौढ़ी में 22 स्थानों पर होलिका दहन: मसौढ़ी अनुमंडल में परंपरागत तरीके से कई जगह पर चौक चौराहे पर होलिका जलायी गयी. यह ग्रामीण इलाकों का जीवंत और रंगीन त्यौहार है. यह जीवन के उत्साह का प्रतीक है. होली को क्षमा, मित्रता, एकता और समानता का दिन माना जाता है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव भी है.
बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी: धूलिवंदन से एक रात पहले होलिका दहन होता है. अच्छाई द्वारा बुराई को हराने के प्रतीक के रूप में लकड़ी और गोबर के उपले जलाए जाते हैं. धूलिवंदन होलिका दहन के बाद सुबह होने के बाद बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी व्यक्त करने के रूप में एक दूसरे पर रंग लगाया जाता है. इस दौरान एक-दूसरे को गले मिलकर होली की शुभकामनाएं देने की परंपरा चली आ रही है.
ऐसे की जाती है होलिका दहन: होलिका में एक बड़ा दहन कुंड बनाया जाता है और लोग इसमें घी, लकड़ी और खुशबूदार गुब्बारे डालकर उन्हें आग लगाते हैं. होलिका दहन के अगले दिन खुशी के रूप में सभी लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, अभिनय करते हैं, अच्छे पकवान और मिठाईयां बनाते हैं. इस दौरान बहुत सारी मस्ती की जाती है.
फगवा के गीतों पर झूमे लोग: होलिका दहन का पर्व होलिका की बुरी ताकत पर भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद की भक्ति की जीत की याद दिलाती है. बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करना ही होलिका दहन का उद्देश्य है और इसी जीत का जश्न ही रंगों का त्योहार होली है. राम जानकी ठाकुरबाड़ी मंदिर के मुख्य पुजारी गोपाल पांडे ने बताया कि यह पौराणिक परंपराएं हैं जिसे होलिका दहन के रूप में मनाते हैं या एक त्यौहार है जहां बुराई का अच्छाई का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन में सभी लोग फगवा गीत गाकर मानते हैं.