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बिहार के इस जिले में भगवान बुद्ध के साथ खेली जाती है होली, सदियों पुरानी है परंपरा, देखें VIDEO - Holi With Lord Buddha

Holi 2024: होली प्राचीन काल से मनायी जा रही है. इसको लेकर कई मान्यताएं हैं इसलिए इसका स्पष्ट उल्लेख देखने को नहीं मिलता है कि होली कितने साल से मनायी जा रही है. बिहार में एक ऐसा जिला है जहां भगवान बुद्ध के साथ होली मनायी जाती है. यह परंपरा पाल काल से चलती आ रही है. पढ़ें पूरी खबर.

नालंदा में भगवान बुद्ध के साथ होली
नालंदा में भगवान बुद्ध के साथ होली
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 25, 2024, 6:02 AM IST

नालंदा में भगवान बुद्ध के साथ होली

नालंदाः आज होली है. बिहार में सहित कई राज्यों में धूमधाम से होली मनायी जा रही है. इस दिन लोग एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर खूब जश्न मनाते हैं. बिहार में ऐसा जिला है जहां लोग पहले भगवान बुद्ध के साथ होली खेलते हैं. इसके बाद आपस में रंग गुलाल से होली खेलते हैं. जानकार बताते हैं कि यह परंपरा काफी पुरानी है. पालकाल से ही इस परंपरा को निभाया जा रहा है.

तेतरावां गांव में अनोखी होलीः भगवान बुद्ध के साथ होली खेलने का नजारा नालंदा जिले के बिहार शरीफ से 10 किमी की दूरी पर स्थित तेतरावां गांव में देखने को मिलता है. यहां के स्थानीय लोग पहले भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ होली खेलते हैं. मान्यता है कि यहां के लोग भगवान बुद्ध को बाबा भैरो कहते हैं.

इसी गांव में मुर्ति कला की होती थी पढ़ाईः तेतरावां गांव भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा माना जाता है कि यह प्रतिमा काफी प्राचीन है. यहां के जानकार राजीव रंजन पांडे बताते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय में जब पढ़ाई होती थी उस समय मूर्ति कला की पढ़ाई इसी तेतरावां गांव में कराई जाती थी.

"भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा उसी काल की बतायी जाती है. जिसे स्थानीय लोग इन्हें भैरो बाबा कहकर बुलाते हैं. उन्होंने बताया कि यहां कोई भी शुभ कार्य होता है तो उसका समापन इसी प्रतिमा के पास आकर किया जाता है. लोग यहां जो भी मन्नतें मांगते हैं वो पूरी होती है. होली के दिन पहले भगवान के साथ होली खेली जाती है." -राजीव रंजन पांडे, स्थानीय

भगवान को मीठे रवे का लेप लगाने की परंपराः लोग शुभ कार्य की शुरुआत से पहले भगवान बुद्ध की प्रतिमा की विधिवत रूप से साफ-सफाई करके करते हैं. इसके बाद भगवान को मीठे रवे का लेप लगाया जाता है. उसके बाद देसी घी का लेप लगाया जाता है. इसके बाद सफेद चादर चढ़ाया जाता है. इसके बाद भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ गांव के लोग रंग और अबीर लगाकर होली मनाते हैं.

वर्षों पुरानी है बुद्ध की प्रतिमाः होली के मौके पर मंदिर में भजन कृतन का भी आयोजन किया जाता है. मंदिर के पुजारी रविंद्र पांडे बताते हैं कि यह भगवान बुद्ध की प्रतिमा वर्षों पुरानी है. तीन पुश्तों से मंदिर का देख रेख करते आ रहे हैं. यहां पहले बड़ी संख्या में देश-विदेश के बौद्ध श्रद्धालु घूमने आया करते थे लेकिन अब धीरे धीरे आना काम हो गया है.

एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमाः कहा जाता है कि यह काले पत्थर की प्रतिमा एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा है. हालांकि भारत के अलावा चीन और जापान में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा देखने को मिला है. नालंदा के इस गांव के लोग होली खेलने के बाद प्रार्थना करते हैं कि पूरे साल यहां के लोगों के लिए सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करें.

पालकाल क्या हैः इतिहास में मध्यकालीन भारत में पाल वंश था. इस वंश की शुरुआत 750 ई. में राजा गोपाल पाल ने की थी. इसके बाद कई राजाओं ने राज किया था. 1155 ई. में इस वंश का अंतिम शासक मदनपाल थे. इनकी मृत्यु के बाद यह सम्राज्य का विघटन हो गया. पाल काल में बौद्ध धर्म को काफी ज्यादा विस्तार दिया गया. इस दौरान भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी बनाया गया था.

धर्मपाल ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दियाः माना जाता है कि पाल वंश के दूसरे शासक धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से जीवित करने का काम किया था. करीब 200 गांव विवि के देखरेख के लिए दान में दिए थे. उन्होंने बौद्ध धर्म को संरक्षित करने का काम किया था. नालंदा जिले के बिहारशरीफ से 10 किमी की दूरी पर स्थित तेतरावां गांव के लोग कहते हैं कि इसी गांव में मूर्ति कला की पढ़ाई करायी जाती थी.

यह भी पढ़ेंः World Tourism Day: बिहार का नालंदा, जहां कभी पूरी दुनिया से पढ़ने आते थे छात्र

नालंदा में भगवान बुद्ध के साथ होली

नालंदाः आज होली है. बिहार में सहित कई राज्यों में धूमधाम से होली मनायी जा रही है. इस दिन लोग एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर खूब जश्न मनाते हैं. बिहार में ऐसा जिला है जहां लोग पहले भगवान बुद्ध के साथ होली खेलते हैं. इसके बाद आपस में रंग गुलाल से होली खेलते हैं. जानकार बताते हैं कि यह परंपरा काफी पुरानी है. पालकाल से ही इस परंपरा को निभाया जा रहा है.

तेतरावां गांव में अनोखी होलीः भगवान बुद्ध के साथ होली खेलने का नजारा नालंदा जिले के बिहार शरीफ से 10 किमी की दूरी पर स्थित तेतरावां गांव में देखने को मिलता है. यहां के स्थानीय लोग पहले भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ होली खेलते हैं. मान्यता है कि यहां के लोग भगवान बुद्ध को बाबा भैरो कहते हैं.

इसी गांव में मुर्ति कला की होती थी पढ़ाईः तेतरावां गांव भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा माना जाता है कि यह प्रतिमा काफी प्राचीन है. यहां के जानकार राजीव रंजन पांडे बताते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय में जब पढ़ाई होती थी उस समय मूर्ति कला की पढ़ाई इसी तेतरावां गांव में कराई जाती थी.

"भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा उसी काल की बतायी जाती है. जिसे स्थानीय लोग इन्हें भैरो बाबा कहकर बुलाते हैं. उन्होंने बताया कि यहां कोई भी शुभ कार्य होता है तो उसका समापन इसी प्रतिमा के पास आकर किया जाता है. लोग यहां जो भी मन्नतें मांगते हैं वो पूरी होती है. होली के दिन पहले भगवान के साथ होली खेली जाती है." -राजीव रंजन पांडे, स्थानीय

भगवान को मीठे रवे का लेप लगाने की परंपराः लोग शुभ कार्य की शुरुआत से पहले भगवान बुद्ध की प्रतिमा की विधिवत रूप से साफ-सफाई करके करते हैं. इसके बाद भगवान को मीठे रवे का लेप लगाया जाता है. उसके बाद देसी घी का लेप लगाया जाता है. इसके बाद सफेद चादर चढ़ाया जाता है. इसके बाद भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ गांव के लोग रंग और अबीर लगाकर होली मनाते हैं.

वर्षों पुरानी है बुद्ध की प्रतिमाः होली के मौके पर मंदिर में भजन कृतन का भी आयोजन किया जाता है. मंदिर के पुजारी रविंद्र पांडे बताते हैं कि यह भगवान बुद्ध की प्रतिमा वर्षों पुरानी है. तीन पुश्तों से मंदिर का देख रेख करते आ रहे हैं. यहां पहले बड़ी संख्या में देश-विदेश के बौद्ध श्रद्धालु घूमने आया करते थे लेकिन अब धीरे धीरे आना काम हो गया है.

एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमाः कहा जाता है कि यह काले पत्थर की प्रतिमा एशिया की सबसे बड़ी प्रतिमा है. हालांकि भारत के अलावा चीन और जापान में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा देखने को मिला है. नालंदा के इस गांव के लोग होली खेलने के बाद प्रार्थना करते हैं कि पूरे साल यहां के लोगों के लिए सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करें.

पालकाल क्या हैः इतिहास में मध्यकालीन भारत में पाल वंश था. इस वंश की शुरुआत 750 ई. में राजा गोपाल पाल ने की थी. इसके बाद कई राजाओं ने राज किया था. 1155 ई. में इस वंश का अंतिम शासक मदनपाल थे. इनकी मृत्यु के बाद यह सम्राज्य का विघटन हो गया. पाल काल में बौद्ध धर्म को काफी ज्यादा विस्तार दिया गया. इस दौरान भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी बनाया गया था.

धर्मपाल ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दियाः माना जाता है कि पाल वंश के दूसरे शासक धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से जीवित करने का काम किया था. करीब 200 गांव विवि के देखरेख के लिए दान में दिए थे. उन्होंने बौद्ध धर्म को संरक्षित करने का काम किया था. नालंदा जिले के बिहारशरीफ से 10 किमी की दूरी पर स्थित तेतरावां गांव के लोग कहते हैं कि इसी गांव में मूर्ति कला की पढ़ाई करायी जाती थी.

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