अलवर : अलवर को पर्यटन स्थलों की खान कहा जाता है. पुराने जमाने में यहां 52 किले मौजूद थे. वहीं, आज भी जिले में कई किले अपनी शैली के चलते पर्यटकों के जहन में अपनी अमिट छाप छोड़े हुए हैं. ऐसा ही एक किला अलवर शहर से करीब 8 किलोमीटर दूरी पर अरावली की वादियों में बसा हुआ है, जिसे 'कुंवारा किला' की संज्ञा दी गई है. अलवर जिले के बाशिंदे व किले पर आने वाले पर्यटक इसे बाला किला के नाम से जानते हैं. इतिहाकार के अनुसार इस किले का इतिहास करीब 500 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. यह किला कई मायनों में खास है. इस किले को देखने के लिए देसी-विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. इस किले से शहर का भव्य नजारा दिखाई पड़ता है.
ये है इतिहास : अलवर के इतिहासकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल ने बताया कि अरावली की वादियों में बसे बाला किला को कुंवारा किला इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस किले पर कोई युद्ध नहीं हुआ. आठवीं शताब्दी में निकुंभों की ओर से इस किले को पहले छोटी गढ़ी के रूप में रखा गया था. बाला किला को 1492 में अलावल खां ने बनाया. 15वीं शताब्दी में बाला किला की गढ़ी की प्राचीर बनवाकर इसे दुर्ग के रूप में पहचान दी गई. सन 1551 में वर्तमान के बाला किले के रूप को हसन खां मेवाती ने बनवाया था. यह किला अलग-अलग समय में कई राजा-महाराजाओं के अधीन रहा. इसकी झलक किले में भी देखने को मिलती है. यह किला अपने आप में बहुत सी खूबियां लिए हुए हैं.
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बाबर व जहांगीर भी बिता चुके किले में समय : इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने बताया कि ऐतिहासिक रूप से भी यह किला बहुत महत्वपूर्ण है. इस किले में बाबर भी आकर रहा है. 6 अप्रैल 1527 को बाबर ने एक रात किले में गुजारी. यह लेख बाबरनामा में भी मिलता है. साथ ही निर्वासन अवधि के दौरान जहांगीर भी करीब तीन साल तक किले में रहा. जिस कमरे में जहांगीर रुका था, किले की उस जगह को आज भी सलीम महल के नाम से जाना जाता है.
![अरावली की वादियों में बसा बाला किला](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/27-11-2024/thisfortofalwarhasgotthenameofbachelorsfortjahangirandbabaralsospenttheirtimetheretowersandbattlementsarebuilttokeepaneyeontheenemies_27112024004847_2711f_1732648727_522.jpg)
दुश्मनों पर नजर रखने के लिए बने हैं बुर्ज व कंगूरे : इतिहासकार ने बताया कि उस समय में किले में रहने वाले राजा महाराजाओं की हिफाजत के लिए 51 छोटे व 15 बड़े बुर्ज सहित 3359 कंगूरे भी बनाए गए थे. इससे दुश्मनों पर नजर रखी जाती थी. साथ ही दुश्मनों पर गोलियां बरसाने के लिए इसमें छेद भी बनाए गए थे, जिनसे दुश्मनों पर 8 से 10 फीट की बंदूक से गोलियां बरसाई जा सकती थी.
महल के रास्ते में पड़ते हैं कई पोल : अलवर शहर से बाला किला की ओर जाने वाले मार्ग पर कई पोल (बड़े दरवाजे) पड़ते हैं. इसमें से निकलकर बाला किले तक पहुंचा जाता है. इसमें जय पोल, लक्ष्मण पोल, सूरजपोल, चांदपोल, अंधेरी पोल व कृष्णा पोल हैं. यह सभी पोल के नाम यहां रहने वाले महाराजाओं के नाम पर बनाए गए थे.
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सरिस्का की बफर रेंज में बसा है किला : बाला किला सरिस्का टाइगर रिजर्व की बफर रेंज के अधीन स्थित है, जिसके चलते यहां सफारी के लिए आने वाले पर्यटक बाला किला का दीदार किए बिना अपने आप को रोक नहीं पाते. बुधवार के दिन सरिस्का में पर्यटकों के लिए अवकाश रहता है, जिसके चलते बाला किला के लिए भी पर्यटकों को प्रवेश नहीं मिलता, जबकि अन्य दिनों में शहरवासी भी निर्धारित शुक्ल देकर यहां तक पहुंचते हैं.
सोने की कारीगरी करती है आकर्षित : इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने बताया कि बाला किले के उपरी मंजिल पर मौजूद छतरियों पर सोने की कारीगरी की गई है, जिन्हें कुछ सालों पहले किले में हुए रिनोवेशन कार्य के दौरान भी नहीं छेड़ा गया. यह कारीगरी राजा महाराजाओं के समय की है. यह क्षेत्र बाला किला में स्थित पुलिस चौकी के अधीन आता है, यहां लोगों के लिए जाना प्रतिबंधित है.