नई दिल्ली: 15 अगस्त को देश अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है. ऐसे में उन घटनाओं और उन लोगों को याद करना भी आवश्यक और महत्वपूर्ण हो जाता है, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपना अहम योगदान दिया. साथ ही ऐसी संस्थाओं को भी सिर्फ स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के लिए खड़ा किया. जिन्होंने आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों को प्रेरित किया और बढ़-चढ़कर उनका साथ दिया. इसी तरह की संस्था है दिल्ली विश्वविद्यालय का हिंदू कॉलेज. हिंदू कॉलेज की स्थापना वर्ष 1899 में स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने के लिए ही की गई थी.
प्रमुख बैंकर कृष्ण दासजी गुरवाले ने की थी स्थापनाः दरअसल, 1899 में प्रमुख बैंकर कृष्ण दासजी गुरवाले ने चांदनी चौक के किनारी बाजार में हिंदू कॉलेज की स्थापना की. इसके ट्रस्टी दिल्ली के प्रमुख नागरिक थे. हिंदू कॉलेज की पूर्व प्रिंसिपल डॉ. कविता शर्मा ने अपनी किताब हिंदू कॉलेज दिल्ली: ए पीपल्स मूवमेंट में लिखा है कि गुरवाले ने कॉलेज की शुरुआत तब की थी, जब उनके पिता रामजी दास गुरवाले (जो सम्राट बहादुर शाह जफर के बैंकर थे) को जफर की गिरफ़्तारी के बाद अंग्रेजों ने चांदनी चौक कोतवाली के परिसर में प्रताड़ित किया और फांसी पर लटका दिया. हालाँकि, कुछ ही सालों में कॉलेज को जगह की कमी के कारण इसे स्थानांतरित करने का फैसला लिया गया.
इसलिए दूसरी इमारत में स्थानांतरित हुआ कॉलेजः दरअसल, पंजाब विश्वविद्यालय ने कॉलेज को चेतावनी दी कि अगर कॉलेज को अपना पर्याप्त जगह वाला भवन नहीं मिला तो विश्वविद्यालय कॉलेज की मान्यता खत्म कर देगा. इस संकट से कॉलेज को बचाने के लिए राय बहादुर लाला सुल्तान सिंह आगे आए. उन्होंने अपनी ऐतिहासिक संपत्ति का एक हिस्सा (जो कश्मीरी गेट पर मूल रूप से कर्नल जेम्स स्किनर की हवेली थी) कॉलेज को दान कर दिया था. कॉलेज वहां 1953 तक चलता रहा. 1922 में दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो रामजस कॉलेज और सेंट स्टीफंस कॉलेज के साथ हिंदू कॉलेज को भी दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया. जिससे यह दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध होने वाले पहले तीन कॉलेज बन गए.
मदन मोहन मालवीय ने बसंत पंचमी पर रखी थी कॉलेज की नींवः कॉलेज की प्राचार्य अंजू श्रीवास्तव ने बताया कि हिंदू कॉलेज की नींव 1899 वसंत पंचमी के दिन पंडित मदन मोहन मालवीय ने रखी थी. कॉलेज की स्थापना के बाद से सरोजिनी नायडू, दादाभाई नौरोजी, महात्मा गांधी इन सभी को कॉलेज से बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं. यह सभी कॉलेज में नियमित नियमित रूप से आने जाने वाले थे. इन लोगों ने कॉलेज की छात्र संसद में भी भाग लिया.
चंद्रशेखर आजाद को भी कॉलेज में मिली पनाहः हिंदू कॉलेज भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विशेष रूप से भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बौद्धिक और राजनीतिक बहस का केंद्र था. कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर अंजू श्रीवास्तव ने बताया कि असेंबली में बम फेंकने के बाद चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों से बचाने के लिए कॉलेज हॉस्टल के वार्डन निगम ने होस्टल में पनाह दी थी. उन्हें कॉलेज में छुपाया गया था. जब अंग्रेजी सैनिक चंद्रशेखर आजाद को पकड़ने के लिए कॉलेज पहुंचे तो वार्डन ने साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर आजाद यहां नहीं हैं और इस तरह से चंद्रशेखर आजाद ने कुछ दिन रहकर यहां अपना समय बिताया.
स्वतंत्रता संग्राम का भी रहा है केंद्रः कॉलेज के स्थापित होने का आधार स्वतंत्रता आंदोलन ही था. उस दौरान अंग्रेजों ने जितने भी स्कूल कॉलेज खोले थे उन सभी में अंग्रेजों के हिसाब से ही पढ़ाई लिखाई थी. एक भी कॉलेज ऐसा नहीं था, जिसमें देशभक्ति की भावना के बारे में छात्रों को बताया जाए. इसलिए चांदनी चौक के सेठ साहूकारों ने एक ऐसा कॉलेज स्थापित करने का निर्णय लिया. इसमें छात्र-छात्राओं को देश की आजादी, देशभक्ति और स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में पढ़ाया जाए. देश के यंग माइंड्स आजादी की लड़ाई में लगें.
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दिल्ली का एकमात्र कॉलेज जिसमें 1935 से है छात्र संसदः यह दिल्ली का एकमात्र कॉलेज है, जिसमें 1935 से छात्र संसद है, जिसने महात्मा गांधी, मोती लाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, एनी बेसेंट मोहम्मद अली जिन्ना और सुभाष चंद्र बोस सहित कई राष्ट्रीय नेताओं को प्रेरित करने के लिए एक मंच प्रदान किया. 1942 में गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में कॉलेज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस कॉलेज के शिक्षकों और छात्रों ने भी गिरफ्तारियां दीं. आंदोलन के समय कॉलेज ने भी कई महीनों के लिए अपने गेट बंद कर रखे थे.
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