अजमेर. सिंदूर सुहाग का प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म में सिंदूर का काफी महत्व है. बाजार में मिलने वाला सिंदूर कुदरती नहीं होता, जबकि हिमालय की पहाड़ियों में एक खास किस्म का पेड़ पाया जाता है, जिस पर उगने वाले फल से लाल कुदरती सिंदूर मिलता है. कोई सोच भी नहीं सकता कि हिमालय में पाए जाने वाला सिंदूर का पेड़ राजस्थान में भी हो सकता है. जी हां, अजमेर के कुंदन नगर इलाके में रहने वाले जालोटिया परिवार के घर के बगीचे में वर्षों से सिंदूर का पेड़ है. लोगों में सिंदूर के पेड़ को लेकर आस्था है और लोग जालोटिया परिवार से मांगकर सिंदूर ले जाते हैं.
हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले सिंदूर के पेड़ को वैज्ञानिक भाषा में कमीला कहा जाता है. प्रदेश में एक मात्रा कमीला का पेड़ अजमेर के जाटोलिया परिवार के घर के बगीचे में है. खास बाद यह है कि 8 वर्ष पहले तक जाटोलिया परिवार भी नहीं जानता था कि पेड़ किस प्रजाति का है. पेड़ के बड़ा होने और उसके फल आने के बाद जब उन्होंने फल के बारे में पड़ताल की तो तब उन्हें इसके गुण के बारे में पता चला. सिंदूर को हिंदू धर्म में आस्था के रूप में देखा जाता है, लिहाजा लोग भी पेड़ को पवित्र मानते हैं. खासकर भगवान गणेश, हनुमान और माता जी की पूजा के लिए लोग जाटोलिया परिवार से सिंदूर मांग कर ले जाते हैं.
पेड़ पर लगे विचित्र फल की पड़ताल करने पर चला पता : पड़ोसी गंगा सिंह गुर्जर ने बताया कि पेड़ के मालिक 7 वर्ष पहले तक जालोटिया परिवार को भी नहीं पता था कि पेड़ सिंदूर का है. गुर्जर ने बताया कि 11 बरस पहले किसी परिचित ने उन्हें एक पौधा भोपाल में दिया था. उस पौधे को अशोक जालोटिया ने अपने घर के बगीचे में लगा दिया. 4 साल में पौधा बड़ा होकर पेड़ बन गया और उसमें से विचित्र फल आने लगे. ताजा फल के अंदर सिंदूरी बीज निकला. पड़ताल की गई तो यह सिंदूर का फल निकला. उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे जब लोगों को पता चलने लगा तो लोग सिंदूर का फल लेने के लिए घर आने लगे. सिंदूर का फल पकने पर लाल होता है, लेकिन कच्चा रहने पर इसका रंग सिंदूरी रहता है. उन्होंने बताया कि यह कुदरती सिंदूर है. इसको लगाने से किसी तरह का कोई रिएक्शन नहीं होता. जबकि बाजारों में बिकने वाला अधिकांश सिंदूर में रसायन का उपयोग होता है, जो उसके रंग को सुर्ख लाल बनाए रखता है. कुंदन नगर ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्र के लोग जाटोलिया परिवार को सिंदूर वाले पेड़ के नाम से जानने लगे हैं.
बंदर के अलावा कोई जीव नहीं खाता फल : सिंदूर के फल को बंदर के अलावा और कोई नहीं खाता. गाय और अन्य पशु-पक्षी भी फल को नहीं खाते. लिहाजा, सिंदूर को लेकर जलोटिया परिवार में आस्था और बढ़ गई है. गुर्जर ने बताया कि सिंदूर भगवान बालाजी को चढ़ाया जाता है और इसके फल को भी केवल बंदर ही खाते हैं. इसलिए सिंदूर के पेड़ की रोज देखभाल जालोटिया परिवार पूरी श्रद्धा के साथ करता आया है. उन्होंने बताया कि बारिश के दिनों में कई लोग सिंदूर का पौधा उगाने के लिए बीज मांग कर ले जाते हैं, लेकिन अभी तक कहीं सुना नहीं है कि बीज से उगा पौधा या पेड़ कहीं है.
लोग रोज मांग कर ले जाते हैं सिंदूर : पड़ोसी मनोज बताते हैं कि सिंदूर के पेड़ के बारे में जब लोगों को पता चला तो महिलाएं जालोटिया परिवार से लाल सिंदूर लेने के लिए आती हैं. उन्होंने बताया कि फल पकाने के बाद उन्हें कई दिन तक सुखाया जाता है. उसके बाद अच्छे से पीस कर उसे छान लिया जाता है. सिंदूर के पाउडर को वह अपने पास रखती हैं और जो भी महिलाएं आती हैं, उन्हें कुछ सिंदूर देती हैं. उन्होंने बताया कि यदि कोई परिचित माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए कटरा जाता है तो वह माता के लिए भी उनके साथ सिंदूर भिजवाते हैं. सिंदूर के पेड़ को बड़े ही श्रद्धा के साथ वह सहेजते हैं. दीपावली के दिन सिंदूर के पेड़ की भी पूजा करते हैं. सिंदूर के लिए किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लगता है.