शिमला: विचारधारा को लेकर राजनीतिक दलों में हमेशा से टकराव की स्थिति रहती है. हिमाचल में पूर्व की जयराम सरकार ने एक ऐसी योजना शुरू की, जिसमें 1975 की इमरजेंसी में जेल जाने वालों को एक तय सम्मान राशि दी जाती थी. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इस योजना का विरोध किया था. इधर, सत्ता में आने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस योजना को बंद कर दिया. मामला वैधानिक और कानूनी पहलुओं से जुड़ा हुआ है. कानूनी पहलुओं को लेकर मामला हाईकोर्ट पहुंचा और अदालत ने ये सम्मान राशि जारी करने के आदेश दे दिए. ऐसे में हिमाचल में इस योजना को लेकर सियासी गलियारों में नई बहस छिड़ गई है. आखिर क्या है लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि योजना ? क्यों भाजपा और कांग्रेस में इसे लेकर विचार की लड़ाई है ? मामला हाईकोर्ट में क्यों पहुंचा ? और अदालत के आदेश के बाद आगे क्या होगा ? इस सभी सवालों की पड़ताल करेंगे लेकिन ये भी जान लें कि इस समय देश में लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना से जुड़ा बिल राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र और यूपी में अस्तित्व में है.
क्या है लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि योजना
देश में जून 1975 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लागू की थी. इंदिरा गांधी के इस फैसले को कांग्रेस के विरोधी दलों ने तानाशाही बताया और देशभर में प्रदर्शन शुरू हो गए. देशभर में एमरजेंसी का विरोध करने वाले नेताओं को मीसा (MISA- मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) के तहत गिरफ्तार किया गया था. हिमाचल में भी शांता कुमार, राधारमण शास्त्री समेत कई नेताओं ने जेल काटी. राजीव बिंदल को हरियाणा में गिरफ्तार किया गया था. जयराम सरकार ने अपने कार्यकाल में एमरजेंसी में जेल जाने वालों को सम्मान स्वरूप लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि देने की पहल की थी. बाकायदा विधानसभा में बिल लाया गया था. इस योजना में पहले साल भर में 11 हजार रुपए सम्मान राशि तय हुई थी, जिसे बाद में 11 हजार रुपए मासिक किया गया था. हिमाचल में कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के बाद कैबिनेट मीटिंग में फैसला लेकर लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना को बंद करने का फैसला लिया था.
साल 2019 में ऐलान, 2021 में आया विधेयक
हिमाचल में बीजेपी की जयराम ठाकुर सरकार के दौरान वर्ष 2019 में इस योजना को लागू करने की घोषणा हुई थी. फिर वर्ष 2021 में इसे लेकर विधानसभा में बिल लाया गया था. वर्ष 2019 में फरवरी में जयराम सरकार का बजट सेशन चल रहा था. उस सेशन में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि के तहत मीसा बंदियों को सालाना 11 हजार रुपए की सम्मान राशि देने की घोषणा की थी. बाद में इस योजना में संशोधन किया गया और साल की बजाय हर महीने 11 हजार रुपए की सम्मान राशि घोषित की गई. बाद में 3 दिसंबर 2019 को तत्कालीन जयराम सरकार ने कैबिनेट मीटिंग में इस योजना के क्रियान्वयन को मंजूरी दी थी.
तब विपक्ष में बैठी कांग्रेस के युवा विधायक और मौजूदा कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने बजट चर्चा में भाग लेते हुए लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि का विरोध किया था. विक्रमादित्य सिंह ने कहा था कि राज्य सरकार स्वतंत्रता सेनानियों और आपातकाल के दौरान जेल भेजे गए बंदियों की तुलना कर रही है. उनका कहना था कि एमरजेंसी में सियासी नेता कानून तोडने के कारण जेल में डाले गए थे. सत्ताधारी दल भाजपा का कहना था कि एमरजेंसी एक काला अध्याय रहा है. यही नहीं, तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने सदन में कहा था कि जिन लोगों ने आपातकाल का दौर नहीं देखा, उन्हें ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. जयराम ठाकुर ने कहा था कि कांग्रेस ने सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए ही एमरजेंसी लगाई थी.
वर्ष 2021 में पारित हुआ था बिल
जयराम सरकार ने वर्ष 2019 में फरवरी में इस योजना का ऐलान किया था. बाद में वर्ष 2021 में विधानसभा में हिमाचल प्रदेश लोकतंत्र प्रहरी बिल-2021 पास किया गया था. इस योजना के तहत हिमाचल के 81 नेता आए थे, जिन्होंने एमरजेंसी में जेल काटी. उस समय राज्य सरकार के शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज लोकतंत्र प्रहरी सम्मान समिति के अध्यक्ष थे. हिमाचल विधानसभा में 21 मार्च 2021 को जयराम सरकार ने इस योजना से संबंधित विधेयक को पास किया था. तब 21 मार्च को बजट सेशन का आखिरी दिन था. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस नेता और वर्तमान सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विरोध करते हुए कहा था कि ये बिल बिना सोचे-समझे लाया गया है. इसका लोकतंत्र प्रहरी नाम ही गलत है. तब विपक्ष के सदस्य के रूप में सुक्खू ने आरोप लगाया था कि इस बिल के जरिए भाजपा अपनी विचारधारा के लोगों को लाभ देना चाहती है. उस समय नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने भी बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजने की बात कही थी. तब उस समय के सीएम जयराम ठाकुर ने सदन में कहा था कि इमरजेंसी पर हम इतना बोल सकते हैं कि कांग्रेस सुन नहीं पाएगी. जयराम ठाकुर ने कहा था कि खुद राहुल गांधी एमरजेंसी को गलत कदम बता चुके हैं.
विपक्ष के सवालों के जवाब में तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि इस बिल के तहत हिमाचल में केवल 81 लोग ही आएंगे. इमरजेंसी में जो लोग 15 दिन बंदी रहे, उन्हें 8 हजार रुपए और जो अधिक समय तक जेल में रहे उनको अधिकतम 12 हजार रुपए मासिक मिलेंगे. रोचक बात ये रही कि तब विपक्ष के सदस्य के रूप में सुक्खू ने ये भी कहा था कि आरटीआई कार्यकर्ता और मीडिया के लोग भी लोकतंत्र के प्रहरी हैं, उन्हें भी शामिल करें. इस पर जवाब दिया गया कि 1975 में आरटीआई थी ही नहीं और ये बिल उन लोगों के सम्मान में है, जिन्होंने सत्ता के खिलाफ आवाज उठाई थी.
भाजपा का विधेयक, कांग्रेस ने किया निरस्त
कांग्रेस दिसंबर 2022 में सत्ता में आई और करीब एक महीने बाद जनवरी 2023 में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक संजय रतन ने लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि बंद करने की मांग उठाई. तब भाजपा ने इसका विरोध किया. बाद में विधानसभा के बजट सेशन में कांग्रेस सरकार ने 3 अप्रैल 2023 को भाजपा सरकार के लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि योजना को निरस्त कर दिया. इसके निरसन से जुड़ा बिल विधानसभा में लाया गया था. सदन में निरसन के लिए लाए गए विधेयक को पास कर दिया गया. तब सदन में सीएम सुक्खू मौजूद नहीं थे. उनकी गैर मौजूदगी में संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान ने विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा था कि भाजपा सरकार ने इस सम्मान राशि के तहत खजाने पर 3 करोड़ रुपए से अधिक का बोझ डाला. वहीं, भाजपा ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ वॉकआउट किया था.
हाईकोर्ट ने सम्मान राशि जारी करने के दिए आदेश
सुक्खू सरकार द्वारा सम्मान योजना निरसन बिल पारित करने के ठीक एक साल बाद 3 अप्रैल 2024 को हाईकोर्ट ने इस मामले में सम्मान राशि जारी करने के आदेश दिए. लोकतंत्र सेनानी संघ ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. याचिकाकर्ता संघ का कहना था कि अभी तक इस कानून को निरस्त करने के बिल को राज्यपाल ने अपनी मंजूरी नहीं दी है. ऐसे में यह कानून अभी भी प्रभावी है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने प्रार्थी संघ की ओर से पेश दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि जब तक किसी पारित बिल पर राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल की सहमति न मिल जाए तब तक वह कानून का रूप नहीं लेता. जब तक कोई कानून प्रभावी रहता है तब तक उस कानून के तहत उपजे लाभ भी नहीं रोके जा सकते. कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि जब तक मौजूदा कानून सभी जरूरी और तय प्रक्रियाओं के अनुसार कानूनी रूप से निरस्त न हो जाए तब तक संघ के सदस्यों को सम्मान राशि देना जारी रखा जाए. पूर्व सीएम व नेता प्रतिपक्ष ने अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है. फिलहाल, हाईकोर्ट का ये फैसला सुखविंदर सिंह सरकार के लिए एक झटके की तरह है. अब देखना है कि राज्यपाल इस बिल पर के निरसन क्या निर्णय लेते हैं.
अब राज्यपाल करेंगे फैसला
हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब सबकी नजरें राजभवन पर टिक गई हैं. इससे पहले भी कांग्रेस की सुक्खू सरकार द्वारा लोकतंत्र प्रहरी सम्मान बिल को निरस्त करने पर राजभवन ने हिमाचल सरकार से पूछा था कि जिस मकसद के लिए ये बिल लाया गया और ये कानून बनाया गया, क्या वो मकसद पूरा हो चुका है ? सरकार के रिपील करने के बाद ये बिल राज्यपाल को भेजा गया था. नियम के मुताबिक राज्यपाल की मंजूरी के बाद नोटिफिकेशन जारी की जाती है लेकिन अब तक राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने इसपर कोई फैसला नहीं लिया है.
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