शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमुडा (एचपी अर्बन एंड हाउसिंग डवलपमेंट अथॉरिटी)को 899 वर्ग मीटर जमीन महज 80 लाख से कुछ अधिक कीमत पर लीज पर दिए जाने के मामले में खूब खरी-खरी सुनाई है. हाईकोर्ट ने कहा कि बहुमूल्य जमीन को हिमुडा ने बहुत कम रकम पर आवंटित कर दिया. अदालत ने कहा कि सार्वजनिक संपत्तियों को केवल आवेदन के आधार पर आवंटित या बेचा नहीं जा सकता. ऐसी संपत्तियों को नीलामी के माध्यम से बेचा जाना चाहिए, ताकि सरकार के खजाने को लाभ मिल सके.
हाईकोर्ट ने अदालत में हिमुडा की तरफ से दिए गए एक तर्क पर कड़ी टिप्पणी भी की. हिमुडा ने कहा कि जिस निजी कंपनी को ये जमीन आवंटित की गई है, वो बेकार भूखंड था. इस पर कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसे बेकार भूखंड (हिमुडा की नजर में) के लिए भी 80 लाख रुपए से अधिक की रकम मिल सकती है तो उसे कैसे बेकार कहा जा सकता है? ये टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने कंपनी के पक्ष में किया गया आवंटन रद्द कर दिया है. साथ ही कंपनी को उचित मूल्य चुकाने के बाद हिमुडा को जमीन पर कब्जा करने के निर्देश दिए.
हिमुडा ने परवाणू में लीज पर दिया था प्लॉट: सोलन जिला के औद्योगिक क्षेत्र परवाणू में सेक्टर 1-ए में प्लॉट संख्या 46 के निकट 899.97 वर्ग मीटर का अतिरिक्त प्लॉट था. हिमुडा ने इसे मैसर्स एमएम एंड कंपनी को 33 वर्ष के लिए 80,99,730 रुपये लीज पर दे दिया. बाद में इसी प्लॉट को 99 वर्ष के लिए पट्टे पर आवंटित कर दिया गया. इस प्लॉट आवंटन को लेकर मदन लाल चौधरी नामक शख्स ने नियमों और उपनियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
अदालत में प्रतिवादी हिमुडा की दलील थी कि नीति के अनुसार, अधिशेष यानी बाकी बची भूमि को बिना किसी सार्वजनिक नोटिस जारी किए, केवल इच्छुक व्यक्ति द्वारा दायर आवेदन पर, पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर साथ लगते प्लॉट के मालिक को आवंटित किया जा सकता है. हिमुडा ने कहा कि इसी नीति के तहत ये प्लॉट निजी प्रतिवादी को आवंटित किया गया था. मामले के तथ्यों का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने पाया कि जिस कंपनी को जमीन आवंटित की गई है, उस कंपनी के पास कोई आसपास की जमीन नहीं है, बल्कि उसका प्लॉट विवादित जमीन/प्लॉट से बहुत दूर है.
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी हिमुडा राज्य सरकार का एक उपक्रम होने के नाते सार्वजनिक संपति का संरक्षक है. ऐसे में इसे हिमुडा के अधिकारियों की मर्जी से वितरित नहीं किया जा सकता है. हाईकोर्ट ने कहा कि ये नेशनल हाईवे के साथ सटी हुई भूमि का मूल्यवान हिस्सा है और अगर इसे नीलामी में रखा जाता तो इससे बहुत अधिक राशि मिलती. ऐसे में पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर किए गए आवंटन से सरकारी खजाने को नुकसान हुआ है. हाईकोर्ट ने हिमुडा की उस दलील पर भी कड़ी टिप्पणी की, जिसमें निजी कंपनी को आवंटित भूमि/भूखंड को बेकार बताया गया था. कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसी 'बेकार भूमि के लिए लगभग 80 लाख रुपये मिल सकते हैं, तो इसे बेकार भूमि नहीं कहा जा सकता.
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