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बिजली बोर्ड के कर्मचारी सुक्खू सरकार से नाराज, नहीं मिल रहे वित्तीय लाभ - Electricity board employees meeting

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Aug 18, 2024, 10:36 PM IST

Electricity board employees against Sukhu govt: पटवारी-कानूनगो के बाद अब बिजली बोर्ड के कर्मचारी भी सुक्खू सरकार से नाराज हैं. इसको लेकर शिमला में हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड इंप्लाइज यूनियन की एक बैठक हुई डिटेल में पढ़ें खबर...

बिजली बोर्ड कर्मी सुक्खू सरकार से नाराज
बिजली बोर्ड कर्मी सुक्खू सरकार से नाराज (कॉन्सेप्ट इमेज)

शिमला: शिमला में हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड इंप्लाइज यूनियन की राज्य कमेटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए यूनियन के अध्यक्ष केडी शर्मा ने बोर्ड की खराब हालत पर चिंता जताई. उन्होंने कहा "53 साल के इतिहास में बिजली बोर्ड की हालत आज सबसे दयनीय है जिसके लिए सीधे तौर प्रदेश सरकार दोषी है. बिजली बोर्ड जैसी बड़ी संस्था को सरकार पिछले डेढ़ साल से एडहॉक प्रबंधन पर चला रही है."

प्रयोगशाला बना दिया ऊर्जा का क्षेत्र

केडी शर्मा ने कहा "लंबे समय से अस्थायी प्रबंधन की वजह से बोर्ड की हालत खराब है जिन अधिकारियों को बोर्ड का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है, उन्होंने डेढ़ साल से राज्य के ऊर्जा क्षेत्र को प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है जिसका खामियाजा बिजली बोर्ड के साथ कर्मचारियों व पेंशनरों को भुगतना पड़ रहा है. उन्होंने कहा प्रबंध निदेशक लंबे समय से अस्थायी तौर पर आगन्तुक की तरह 7 से 10 दिन में एक बार आ रहे हैं जिससे बिजली बोर्ड में पूर्णकालिक निदेशक व निदेशक मंडल की बैठकें समय पर नहीं हो पा रही हैं.

ऐसे में लंबे समय से कई महत्वपूर्ण निर्णय व पदोन्नतियां लटकी पड़ी हैं. पिछले साल मई महीने में सर्विस कमेटी ने जो निर्णय लिए हैं उन्हें अभी तक लागू नहीं किया गया है. इसमें 20 मई 2023 को निदेशक मंडल ने बोर्ड में 1100 तकनीकी कर्मचारियों को भरने का फैसला लिया था, लेकिन अभी तक भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है."

न्यायिक जांच करवाने का फैसला

यूनियन ने अधिकारियों की वजह से डेढ़ साल में बोर्ड और प्रदेश की जनता को हुए नुकसान की चार्जशीट तैयार कर आगामी कार्रवाई को सरकार के लिए भेजी थी, लेकिन उस पर अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है. ऐसे में यूनियन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने का निर्णय लिया है.

यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष ने कहा इस कुप्रबंधन के कारण आज बिजली बोर्ड गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है जिस कारण कर्मचारियों व पेंशनर्ज के वित्तीय लाभ रुके पड़े हैं. स्थिति ये है कि पिछले एक साल से कर्मचारियों को रिटायरमेंट पर अर्जित अवकाश व ग्रेच्युटी की अदायगी नहीं हो पाई है. आज बिजली बोर्ड कर्मचारियों के अभाव से जूझ रहा है. तकनीकी कर्मचारियों को 48-48 घंटे ड्यूटी देनी पड़ रही है जिस कारण प्रति वर्ष 30 से 45 कर्मचारी हादसे का शिकार हो रहे हैं.

बीते साल 9 नियमित और 5 आउटसोर्स कर्मचारी अकाल मौत का शिकार हुए हैं. वहीं, कुल 27 कर्मचारियों को हादसे में गंभीर चोटें आई हैं. उन्होंने कहा कि कर्मचारी लोगों को बेहतर बिजली सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं, इसके बाद भी साल 2003 के बाद लगे कर्मचारियों को अभी तक पुरानी पेंशन के लाभ से वंचित रखा गया है. केडी शर्मा ने कहा इस तरह के कुप्रबंधन की वजह से बिजली बोर्ड कर्मचारियों का धैर्य अब टूट रहा है.

ये भी पढ़ें: CM के आश्वासन पर नहीं माने पटवारी-कानूनगो, ऑनलाइन सेवाएं फिर की बंद

शिमला: शिमला में हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड इंप्लाइज यूनियन की राज्य कमेटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए यूनियन के अध्यक्ष केडी शर्मा ने बोर्ड की खराब हालत पर चिंता जताई. उन्होंने कहा "53 साल के इतिहास में बिजली बोर्ड की हालत आज सबसे दयनीय है जिसके लिए सीधे तौर प्रदेश सरकार दोषी है. बिजली बोर्ड जैसी बड़ी संस्था को सरकार पिछले डेढ़ साल से एडहॉक प्रबंधन पर चला रही है."

प्रयोगशाला बना दिया ऊर्जा का क्षेत्र

केडी शर्मा ने कहा "लंबे समय से अस्थायी प्रबंधन की वजह से बोर्ड की हालत खराब है जिन अधिकारियों को बोर्ड का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है, उन्होंने डेढ़ साल से राज्य के ऊर्जा क्षेत्र को प्रयोगशाला बनाकर रख दिया है जिसका खामियाजा बिजली बोर्ड के साथ कर्मचारियों व पेंशनरों को भुगतना पड़ रहा है. उन्होंने कहा प्रबंध निदेशक लंबे समय से अस्थायी तौर पर आगन्तुक की तरह 7 से 10 दिन में एक बार आ रहे हैं जिससे बिजली बोर्ड में पूर्णकालिक निदेशक व निदेशक मंडल की बैठकें समय पर नहीं हो पा रही हैं.

ऐसे में लंबे समय से कई महत्वपूर्ण निर्णय व पदोन्नतियां लटकी पड़ी हैं. पिछले साल मई महीने में सर्विस कमेटी ने जो निर्णय लिए हैं उन्हें अभी तक लागू नहीं किया गया है. इसमें 20 मई 2023 को निदेशक मंडल ने बोर्ड में 1100 तकनीकी कर्मचारियों को भरने का फैसला लिया था, लेकिन अभी तक भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है."

न्यायिक जांच करवाने का फैसला

यूनियन ने अधिकारियों की वजह से डेढ़ साल में बोर्ड और प्रदेश की जनता को हुए नुकसान की चार्जशीट तैयार कर आगामी कार्रवाई को सरकार के लिए भेजी थी, लेकिन उस पर अभी तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है. ऐसे में यूनियन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने का निर्णय लिया है.

यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष ने कहा इस कुप्रबंधन के कारण आज बिजली बोर्ड गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है जिस कारण कर्मचारियों व पेंशनर्ज के वित्तीय लाभ रुके पड़े हैं. स्थिति ये है कि पिछले एक साल से कर्मचारियों को रिटायरमेंट पर अर्जित अवकाश व ग्रेच्युटी की अदायगी नहीं हो पाई है. आज बिजली बोर्ड कर्मचारियों के अभाव से जूझ रहा है. तकनीकी कर्मचारियों को 48-48 घंटे ड्यूटी देनी पड़ रही है जिस कारण प्रति वर्ष 30 से 45 कर्मचारी हादसे का शिकार हो रहे हैं.

बीते साल 9 नियमित और 5 आउटसोर्स कर्मचारी अकाल मौत का शिकार हुए हैं. वहीं, कुल 27 कर्मचारियों को हादसे में गंभीर चोटें आई हैं. उन्होंने कहा कि कर्मचारी लोगों को बेहतर बिजली सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं, इसके बाद भी साल 2003 के बाद लगे कर्मचारियों को अभी तक पुरानी पेंशन के लाभ से वंचित रखा गया है. केडी शर्मा ने कहा इस तरह के कुप्रबंधन की वजह से बिजली बोर्ड कर्मचारियों का धैर्य अब टूट रहा है.

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