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हाईकोर्ट को आदेश की अनुपालना न करना शिक्षा विभाग को पड़ा महंगा, अदालत ने लगाई ₹20 हजार कॉस्ट

हिमाचल हाईकोर्ट ने कोर्ट के आदेश की अनुपालना न करने पर शिक्षा विभाग पर ₹20 हजार की कॉस्ट लगाई है.

Himachal High Court
हिमाचल हाईकोर्ट (FILE)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 24, 2024, 9:25 PM IST

शिमला: शिक्षा विभाग को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश की अनुपालना न करना महंगा पड़ा है. अनुपालन न होने पर अदालत ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग पर 20,000 रुपये की कॉस्ट लगाई है. हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना रिवाल दुआ ने शिक्षा विभाग पर न्यायालय के पिछले आदेशों की अनुपालना न करने पर यह कॉस्ट लगाई है. कॉस्ट की यह राशि प्रार्थी को अदा करने के आदेश जारी किए गए हैं.

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी 10 फरवरी 2012 को कला अध्यापक के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्त की गई थी. 31 अगस्त 2017 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था. प्रार्थी ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल कर ताज मोहम्मद के मामले में पारित निर्णय के आधार पर उसे अनुबंध की तारीख से वरिष्ठता व अन्य लाभ दिए जाने की न्यायालय से गुहार लगाई थी.

हाईकोर्ट ने मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान प्रार्थी द्वारा शिक्षा विभाग को भेजे गए प्रतिवेदन पर निर्णय लेने के आदेश पारित किए थे, जिसमें प्रार्थी ने शिक्षा विभाग से यह गुहार लगाई थी कि उसे ताज मोहम्मद के मामले में पारित निर्णय के आधार पर वरिष्ठता व अन्य लाभ अनुबंध की तारीख से दिए जाएं. 23 जुलाई 2024 को पारित निर्णय के पश्चात शिक्षा विभाग की ओर से इस मामले में कोई भी निर्णय नहीं लिया गया और तीन बार कोर्ट के समक्ष मामला लगा, लेकिन हर बार शिक्षा विभाग की ओर से अतिरिक्त समय दिए जाने की गुहार लगाई गई.

न्यायालय ने शिक्षा विभाग के इस रवैया से असंतुष्ट होते हुए इस बार ₹20,000 की कॉस्ट लगाई. ताकि भविष्य में न्यायालय के आदेशों को शिक्षा विभाग द्वारा हल्के में न लिया जाए.

ये भी पढ़ें: बिना DPR फोरलेन निर्माण पर HC सख्त, NHAI के शपथ पत्र से असहमति जताते हुए गडकरी के मंत्रालय को बनाया प्रतिवादी

शिमला: शिक्षा विभाग को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश की अनुपालना न करना महंगा पड़ा है. अनुपालन न होने पर अदालत ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग पर 20,000 रुपये की कॉस्ट लगाई है. हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना रिवाल दुआ ने शिक्षा विभाग पर न्यायालय के पिछले आदेशों की अनुपालना न करने पर यह कॉस्ट लगाई है. कॉस्ट की यह राशि प्रार्थी को अदा करने के आदेश जारी किए गए हैं.

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी 10 फरवरी 2012 को कला अध्यापक के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्त की गई थी. 31 अगस्त 2017 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था. प्रार्थी ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल कर ताज मोहम्मद के मामले में पारित निर्णय के आधार पर उसे अनुबंध की तारीख से वरिष्ठता व अन्य लाभ दिए जाने की न्यायालय से गुहार लगाई थी.

हाईकोर्ट ने मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान प्रार्थी द्वारा शिक्षा विभाग को भेजे गए प्रतिवेदन पर निर्णय लेने के आदेश पारित किए थे, जिसमें प्रार्थी ने शिक्षा विभाग से यह गुहार लगाई थी कि उसे ताज मोहम्मद के मामले में पारित निर्णय के आधार पर वरिष्ठता व अन्य लाभ अनुबंध की तारीख से दिए जाएं. 23 जुलाई 2024 को पारित निर्णय के पश्चात शिक्षा विभाग की ओर से इस मामले में कोई भी निर्णय नहीं लिया गया और तीन बार कोर्ट के समक्ष मामला लगा, लेकिन हर बार शिक्षा विभाग की ओर से अतिरिक्त समय दिए जाने की गुहार लगाई गई.

न्यायालय ने शिक्षा विभाग के इस रवैया से असंतुष्ट होते हुए इस बार ₹20,000 की कॉस्ट लगाई. ताकि भविष्य में न्यायालय के आदेशों को शिक्षा विभाग द्वारा हल्के में न लिया जाए.

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