शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक शख्स की दो पत्नियां होने के आरोप में जबरन रिटायर करने के आदेशों को खारिज कर दिया है. साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सभी सेवा लाभ जारी करने के आदेश दिए हैं. न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि दीवानी अदालत के फैसले को दरकिनार कर प्रार्थी को दी गई जबरन सेवानिवृत्ति की सजा अनुचित है.
मामला क्या है?
मामले के अनुसार प्रार्थी को लोक निर्माण विभाग में साल 1990 में वर्क चार्ज मेट नियुक्त किया गया था. अगले ही साल उसके पड़ोसी ने विभाग को शिकायत देकर बताया कि प्रार्थी की दो जीवित पत्नियां हैं. इसके बाद प्रार्थी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया. विभागीय कार्यवाही में उसकी दो पत्नियां होने की पुष्टि हुई और सजा के तौर पर उसे साल 2003 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. बर्खास्तगी के आदेशों को उसने ट्रिब्यूनल में चुनौती दी. कोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेशों को निरस्त करते हुए मामले की पुनः जांच पड़ताल करने के आदेश दिए.
जांच में फिर पाया दोषी
इसके बाद फिर से 2012 में विभागीय कार्रवाई में उसे दोषी पाया गया परंतु इस बार सजा के तौर पर उसे जबरन सेवानिवृत्त कर दिया गया. प्रार्थी ने फिर से इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी. प्रार्थी का कहना था कि दीवानी अदालत अर्की ने 26 दिसंबर 2002 को दिए फैसले में घोषित किया कि जिस महिला को प्रार्थी की दूसरी पत्नी बताया जा रहा है, वह उसकी कानूनी तौर पर शादी शुदा पत्नी नहीं है. प्रार्थी ने बताया कि यह बात विभागीय कार्यवाही के दौरान जांच अधिकारी और अपीलीय प्राधिकारी को भी बताई गई परंतु वे अपने तौर पर इकठ्ठे किए सबूतों पर अड़े रहे और दीवानी अदालत के फैसले को नजरअंदाज करते हुए उसे पहले बर्खास्तगी और फिर उसमें संशोधन कर जबरन सेवानिवृत करने की सजा दे दी.
हाईकोर्ट से मिली राहत
हाईकोर्ट ने प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि जब विभागीय कार्यवाही के दौरान दीवानी अदालत का फैसला आ चुका था तो उसे नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए था. कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्यवाही में प्राधिकारियों को ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए था जो दीवानी अदालत के फैसले के विपरीत हो. दीवानी अदालत की घोषणा अनुशासनात्मक प्राधिकारी और अपीलीय प्राधिकारी दोनों पर बाध्यकारी थी.
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