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सुख की सरकार में छह सीपीएस के हिस्से आया सियासी दुख, हाईकोर्ट ने एक्ट को ही करार दिया असंवैधानिक - YEAR ENDER 2024

साल 2024 खत्म होने को है. इस साल हिमाचल में सीपीएस नियुक्ति मामला काफी सुर्खियों में रहा. हाईकोर्ट ने सीपीएस एक्ट को असंवैधानिक करार दिया.

हिमाचल सीपीएस नियुक्ति मामला
हिमाचल सीपीएस नियुक्ति मामला (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 15 hours ago

शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के वर्ष 2024 बड़े सियासी घटनाक्रमों का साल रहा. पर्वतीय प्रदेश में विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं. ऐसे में कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या 12 ही हो सकती है. चुनाव जीतकर आए सभी नेताओं की किस्मत झंडी वाली कार और कैबिनेट मंत्री वाला रुतबा नहीं होता. ऐसे में किसी भी पार्टी के सीएम के लिए अपने करीबियों को एडजस्ट करना किसी चुनौती से कम नहीं. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू पर भी करीबियों को कोई न कोई पद देने का दबाव था. उन्होंने इसका रास्ता सीपीएस नियुक्ति के रूप में निकाला.

सीएम सुक्खू ने छह विधायकों को सीपीएस बनाया, लेकिन उनके लिए झंडी वाली कार, कोठी, स्टाफ आदि का सुख अधिक नहीं रहा. भाजपा की सरकार के समय खुद सीपीएस रहे तेजतर्रार नेता सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों ने हाईकोर्ट में सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हुई और अंतत: अदालत ने हिमाचल के सीपीएस एक्ट को ही अमान्य करार देते हुए असंवैधानिक बताया. इस तरह सीपीएस की हॉट कुर्सी छिन गई और छह नेताओं को फिर से विधायक बनना पड़ा. अदालती फैसले के बाद कांग्रेस से भाजपा में गए पूर्व कैबिनेट मंत्री सुधीर शर्मा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर तंज कसते हुए लिखा- पुन: मूषक भव:।

सीएम सुक्खू ने दिलाई थी शपथ

हिमाचल में कांग्रेस ने वर्ष 2022 का चुनाव जीता और सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम पद की कमान सौंपी गई. जयराम सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष रहे मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम की कुर्सी से संतोष करना पड़ा. सुखविंदर सरकार का शपथ ग्रहण समारोह शिमला के रिज मैदान पर 11 दिसंबर 2022 को आयोजित हुआ. फिर नए साल में 2023 में 8 जनवरी रविवार को आनन-फानन में ये सूचना आई कि सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कुछ विधायकों को सीपीएस की शपथ दिलाने वाले हैं.

उल्लेखनीय है कि सीपीएस की शपथ सीएम ही दिलाते हैं। फिर सुबह-सवेरे कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के एमएलए संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, रोहड़ू को मोहन लाल ब्राक्टा, बैजनाथ के किशोरी लाल व दून के रामकुमार चौधरी को सीपीएस की शपथ दिलाई गई. उन्हें विभागों के साथ अटैच किया गया. ये सभी सीएम सुखविंदर सिंह के करीबी माने जाते हैं. दिलचस्प बात ये थी कि अभी सुखविंदर सरकार की कैबिनेट का विस्तार नहीं हुआ था, लेकिन सीपीएस पहले बना दिए गए. खैर, 17 जनवरी 2023 को रूल्स ऑफ बिजनेस में बदलाव कर ये सुनिश्चित बनाया गया कि मंत्री के पास फाइल सीपीएस के माध्यम से जाएंगी. सीपीएस को मंत्रियों के साथ अटैच किया गया था.

भाजपा से देखा नहीं गया सीपीएस बने नेताओं का सुख

इधर, छह सीपीएस ने शपथ ली, उधर भाजपा का विरोध अंगड़ाई लेने लगा. एक तो वर्ष 2016 में पीपुल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था ने सीपीएस एक्ट को चुनौती दी थी. फिर कल्पना देवी व भाजपा विधायकों सतपाल सिंह सत्ती व अन्य ने सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी. यही नहीं, डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की नियुक्ति को भी चुनौती दी गई थी, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया. हाईकोर्ट में इस मामले में लंबी सुनवाई चली. हाईकोर्ट की सख्ती का आलम ये था कि 3 अक्टूबर 2023 को हुई सुनवाई में राज्य सरकार को जवाब देने के लिए अंतिम मौका दिया गया. राज्य सरकार ने पहले तो सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों की याचिकाओं की मेंटेनेबिलिटी पर सवाल उठाए, लेकिन सरकार की अदालत में दाल नहीं गली. यही नहीं, सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों ने याचिकाओं के अंतिम निपटारे तक सीपीएस के कामकाज करने पर रोक लगाने की मांग भी की थी. खैर, इससे पहले 31 अगस्त 2023 को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने 18 सितंबर को सुनवाई का आदेश दिया था.

एक साल बाद सख्त फैसला, एक्ट निरस्त

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इस साल यानी 2024 को नवंबर महीने में सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार को बड़ा झटका दिया. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी ने 13 नवंबर को जारी आदेश में न केवल सभी छह सीपीएस को उनके पद से हटाया, बल्कि सीपीएस से जुड़ा एक्ट भी निरस्त कर दिया. यही नहीं, सभी सीपीएस को तुरंत प्रभाव से पद छोड़ने व अन्य सुविधाएं वापस करने के लिए कहा गया. हाईकोर्ट ने एक्ट को असंवैधानिक बताया. हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने सुखविंदर सरकार को राहत देते हुए हटाए गए सीपीएस को विधायक के रूप में अयोग्य करार देने की कार्यवाही से जुड़े मामले पर रोक लगाई है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 20 जनवरी 2025 को सुनवाई होनी है. इस तरह वर्ष 2024 का सबसे चर्चित सियासी घटनाक्रम ये रहा कि सुख की सरकार में बनाए गए छह सीपीएस साल के अंत में हाईकोर्ट ने हटा दिए.

वीरभद्र सिंह सरकार के समय बना एक्ट

हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार के समय में सीपीएस एक्ट अस्तित्व में आया था. इस एक्ट का नाम हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 रखा गया था. इस एक्ट के अनुसार मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार से सरकार में मुख्य संसदीय सचिव व संसदीय सचिवों की तैनाती कर सकते हैं. इन्हें शपथ दिलाना भी मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में रखा गया था. एक्ट में संसदीय सचिवों की शक्तियों, वेतन-भत्ते आदि सहित कार्य का ब्यौरा दर्ज किया गया था. इस एक्ट को 23 जनवरी 2007 में राज्यपाल की मंजूरी मिली थी. एक्ट को 27 दिसंबर 2006 को पास किया गया था. वीरभद्र सिंह सरकार के समय सीपीएस व पीएस दोनों ही तैनात थे. प्रेम कुमार धूमल के समय में भी सीपीएस बनाए गए. बाद में जयराम सरकार के समय सीपीएस नहीं बनाए, लेकिन सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने छह सीपीएस बनाए.

सीपीएस को मूल वेतन के तौर पर 65 हजार रुपए मिलते थे. संसदीय सचिव के लिए ये वेतन 60 हजार रुपए था. कुल वेतन व भत्तों के तौर पर सीपीएस को 2.25 लाख रुपए मिलते थे. इसके अलावा सरकारी मकान, गाड़ी, स्टाफ आदि की सुविधा रखी गई थी. वीरभद्र सिंह सरकार ने 2013 में दस सीपीएस बनाए थे. उन्हें पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. मामला हाईकोर्ट में चलता रहा और इस दौरान वीरभद्र सिंह सरकार सत्ता से चली गई. इस याचिका में भी इसी साल यानी 2024 में फैसला आया.

ये भी पढ़ें: क्या था हिमाचल का संसदीय सचिव एक्ट? हाईकोर्ट ने कर दिया है अमान्य, अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला

ये भी पढ़ें: हिमाचल हाईकोर्ट के सीजे का पदभार संभालेंगे न्यायमूर्ति जीएस संधवालिया, अधिसूचना जारी

शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के वर्ष 2024 बड़े सियासी घटनाक्रमों का साल रहा. पर्वतीय प्रदेश में विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं. ऐसे में कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या 12 ही हो सकती है. चुनाव जीतकर आए सभी नेताओं की किस्मत झंडी वाली कार और कैबिनेट मंत्री वाला रुतबा नहीं होता. ऐसे में किसी भी पार्टी के सीएम के लिए अपने करीबियों को एडजस्ट करना किसी चुनौती से कम नहीं. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू पर भी करीबियों को कोई न कोई पद देने का दबाव था. उन्होंने इसका रास्ता सीपीएस नियुक्ति के रूप में निकाला.

सीएम सुक्खू ने छह विधायकों को सीपीएस बनाया, लेकिन उनके लिए झंडी वाली कार, कोठी, स्टाफ आदि का सुख अधिक नहीं रहा. भाजपा की सरकार के समय खुद सीपीएस रहे तेजतर्रार नेता सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों ने हाईकोर्ट में सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई हुई और अंतत: अदालत ने हिमाचल के सीपीएस एक्ट को ही अमान्य करार देते हुए असंवैधानिक बताया. इस तरह सीपीएस की हॉट कुर्सी छिन गई और छह नेताओं को फिर से विधायक बनना पड़ा. अदालती फैसले के बाद कांग्रेस से भाजपा में गए पूर्व कैबिनेट मंत्री सुधीर शर्मा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर तंज कसते हुए लिखा- पुन: मूषक भव:।

सीएम सुक्खू ने दिलाई थी शपथ

हिमाचल में कांग्रेस ने वर्ष 2022 का चुनाव जीता और सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम पद की कमान सौंपी गई. जयराम सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष रहे मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम की कुर्सी से संतोष करना पड़ा. सुखविंदर सरकार का शपथ ग्रहण समारोह शिमला के रिज मैदान पर 11 दिसंबर 2022 को आयोजित हुआ. फिर नए साल में 2023 में 8 जनवरी रविवार को आनन-फानन में ये सूचना आई कि सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कुछ विधायकों को सीपीएस की शपथ दिलाने वाले हैं.

उल्लेखनीय है कि सीपीएस की शपथ सीएम ही दिलाते हैं। फिर सुबह-सवेरे कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर, अर्की के एमएलए संजय अवस्थी, पालमपुर के आशीष बुटेल, रोहड़ू को मोहन लाल ब्राक्टा, बैजनाथ के किशोरी लाल व दून के रामकुमार चौधरी को सीपीएस की शपथ दिलाई गई. उन्हें विभागों के साथ अटैच किया गया. ये सभी सीएम सुखविंदर सिंह के करीबी माने जाते हैं. दिलचस्प बात ये थी कि अभी सुखविंदर सरकार की कैबिनेट का विस्तार नहीं हुआ था, लेकिन सीपीएस पहले बना दिए गए. खैर, 17 जनवरी 2023 को रूल्स ऑफ बिजनेस में बदलाव कर ये सुनिश्चित बनाया गया कि मंत्री के पास फाइल सीपीएस के माध्यम से जाएंगी. सीपीएस को मंत्रियों के साथ अटैच किया गया था.

भाजपा से देखा नहीं गया सीपीएस बने नेताओं का सुख

इधर, छह सीपीएस ने शपथ ली, उधर भाजपा का विरोध अंगड़ाई लेने लगा. एक तो वर्ष 2016 में पीपुल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था ने सीपीएस एक्ट को चुनौती दी थी. फिर कल्पना देवी व भाजपा विधायकों सतपाल सिंह सत्ती व अन्य ने सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी. यही नहीं, डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की नियुक्ति को भी चुनौती दी गई थी, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया. हाईकोर्ट में इस मामले में लंबी सुनवाई चली. हाईकोर्ट की सख्ती का आलम ये था कि 3 अक्टूबर 2023 को हुई सुनवाई में राज्य सरकार को जवाब देने के लिए अंतिम मौका दिया गया. राज्य सरकार ने पहले तो सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों की याचिकाओं की मेंटेनेबिलिटी पर सवाल उठाए, लेकिन सरकार की अदालत में दाल नहीं गली. यही नहीं, सतपाल सिंह सत्ती व अन्यों ने याचिकाओं के अंतिम निपटारे तक सीपीएस के कामकाज करने पर रोक लगाने की मांग भी की थी. खैर, इससे पहले 31 अगस्त 2023 को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने 18 सितंबर को सुनवाई का आदेश दिया था.

एक साल बाद सख्त फैसला, एक्ट निरस्त

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इस साल यानी 2024 को नवंबर महीने में सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार को बड़ा झटका दिया. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी ने 13 नवंबर को जारी आदेश में न केवल सभी छह सीपीएस को उनके पद से हटाया, बल्कि सीपीएस से जुड़ा एक्ट भी निरस्त कर दिया. यही नहीं, सभी सीपीएस को तुरंत प्रभाव से पद छोड़ने व अन्य सुविधाएं वापस करने के लिए कहा गया. हाईकोर्ट ने एक्ट को असंवैधानिक बताया. हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने सुखविंदर सरकार को राहत देते हुए हटाए गए सीपीएस को विधायक के रूप में अयोग्य करार देने की कार्यवाही से जुड़े मामले पर रोक लगाई है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 20 जनवरी 2025 को सुनवाई होनी है. इस तरह वर्ष 2024 का सबसे चर्चित सियासी घटनाक्रम ये रहा कि सुख की सरकार में बनाए गए छह सीपीएस साल के अंत में हाईकोर्ट ने हटा दिए.

वीरभद्र सिंह सरकार के समय बना एक्ट

हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार के समय में सीपीएस एक्ट अस्तित्व में आया था. इस एक्ट का नाम हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 रखा गया था. इस एक्ट के अनुसार मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार से सरकार में मुख्य संसदीय सचिव व संसदीय सचिवों की तैनाती कर सकते हैं. इन्हें शपथ दिलाना भी मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में रखा गया था. एक्ट में संसदीय सचिवों की शक्तियों, वेतन-भत्ते आदि सहित कार्य का ब्यौरा दर्ज किया गया था. इस एक्ट को 23 जनवरी 2007 में राज्यपाल की मंजूरी मिली थी. एक्ट को 27 दिसंबर 2006 को पास किया गया था. वीरभद्र सिंह सरकार के समय सीपीएस व पीएस दोनों ही तैनात थे. प्रेम कुमार धूमल के समय में भी सीपीएस बनाए गए. बाद में जयराम सरकार के समय सीपीएस नहीं बनाए, लेकिन सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने छह सीपीएस बनाए.

सीपीएस को मूल वेतन के तौर पर 65 हजार रुपए मिलते थे. संसदीय सचिव के लिए ये वेतन 60 हजार रुपए था. कुल वेतन व भत्तों के तौर पर सीपीएस को 2.25 लाख रुपए मिलते थे. इसके अलावा सरकारी मकान, गाड़ी, स्टाफ आदि की सुविधा रखी गई थी. वीरभद्र सिंह सरकार ने 2013 में दस सीपीएस बनाए थे. उन्हें पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. मामला हाईकोर्ट में चलता रहा और इस दौरान वीरभद्र सिंह सरकार सत्ता से चली गई. इस याचिका में भी इसी साल यानी 2024 में फैसला आया.

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