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फर्जी आईजी बनकर कारोबारियों से 1.41 करोड़ रुपए की अवैध वसूली का आरोप, HC ने रद्द की आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर - HIMACHAL HIGH COURT

फर्जी आईजी बनकर कारोबारियों से ₹1.41 करोड़ की अवैध वसूली करने के मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी है.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (FILE)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 12, 2025, 7:49 PM IST

शिमला: विनय अग्रवाल नामक एक व्यक्ति पर आरोप था कि उसने इंटेलिजेंस ब्यूरो का फर्जी आईजी बनकर कारोबारियों से अवैध वसूली की है. उस पर सिरमौर जिला के कालाअंब सहित सोलन जिला के बद्दी व नालागढ़ में उद्योगपतियों से 1.41 करोड़ रुपए की अवैध वसूली का आरोप लगाया गया था. मामले में सीआईडी के शिमला स्थित भराड़ी थाना ने जांच की. विनय अग्रवाल ने इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने फर्जी आईजी बनकर उद्योगपतियों से अवैध वसूली के आरोपों को निराधार ठहराते हुए आरोपी विनय अग्रवाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है.

आरोप के अनुसार विनय अग्रवाल ने फर्जी आईजी बनकर कालाअंब, बद्दी व नालागढ़ में उद्योगपतियों को कार्रवाई की धमकी देकर अवैध वसूली की. कुछ उद्योगपतियों ने इस बारे में पुलिस को सूचित किया. पुलिस ने प्रारंभिक जांच के बाद सीआईडी के भराड़ी स्थित थाने में आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने विनय अग्रवाल की याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि इस मामले में गवाहों ने अपने सिविल विवाद को निपटाने के लिए पुलिस के समक्ष गवाही दी थी. इसके साथ ही अदालत ने प्रार्थी विनय के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया.

क्या है पूरा मामला ?

प्रार्थी पर आरोप था कि फर्जी आईजी बनकर उसने औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योगपतियों से 1.41 करोड़ की अवैध वसूली की. आरोप था कि जिस समय वह औद्योगिक क्षेत्रों का दौरा करता था तो हरियाणा पुलिस के सशस्त्र कर्मचारी भी अवैध रूप से साथ रहते थे. ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि किसी को शक न हो. कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड को खंगालने के बाद पाया कि इस मामले में कोई शिकायत नहीं है और संबंधित एफआईआर एक स्रोत रिपोर्ट के आधार पर पंजीकृत की गई है. यहां तक कि अभियोजन पक्ष (पुलिस) ने आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता (विनय अग्रवाल) ने खुद को केंद्र सरकार की एजेंसी आईबी के आईजी होने का नाटक करते हुए कथित तौर पर 1.41 करोड़ रुपये की रकम वसूल की थी. अभियोजन पक्ष का आरोप था कि इस रकम से उसने करोड़ों की कोठी व प्लॉट खरीदे.

मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष न्यायिक अंतरात्मा को संतुष्ट नहीं कर सका कि याचिकाकर्ता की तरफ से करोड़ों रुपये में कोठी और प्लॉट खरीदने का कथित कृत्य जबरन वसूली से जुड़ा है. अदालत ने कहा कि इस मामले में निर्णायक भूमिका जगबीर सिंह नामक गवाह को दी गई है, जिससे याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर पैसे वसूले हैं. अदालत ने कहा कि जब जगबीर सिंह ने याचिकाकर्ता विनय के साथ पैसे के लेनदेन को लेकर समझौते के संबंध में बयान देकर याचिकाकर्ता को दोषमुक्त कर दिया है, तो ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही को जीवित रखने का कोई उचित कारण नहीं है.

हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष का मुख्य जोर याचिकाकर्ता द्वारा कथित तौर पर जगबीर सिंह से पैसे ऐंठे जाने पर था. वहीं, जगबीर सिंह के बयान को ध्यान में रखते हुए ऐसा लगता है कि पक्षों के बीच विवाद पैसे के लेनदेन को लेकर था, जिसे पुलिस ने कथित स्रोत की रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक रंग दे दिया है.

हाईकोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयानों को देखते हुए मुकदमे के दौरान याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन पक्ष के मामले की सफलता की संभावना बहुत धूमिल है. साथ ही यदि याचिकाकर्ता, ऐसी परिस्थितियों में मुकदमे की पीड़ा का सामना करता है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. इसके साथ ही न्यायालय ने एफआईआर रद्द कर दी.

ये भी पढ़ें: ऊना की हुम्म खड्ड में खनन को लेकर याचिका, हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव सहित अन्य अफसरों को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

शिमला: विनय अग्रवाल नामक एक व्यक्ति पर आरोप था कि उसने इंटेलिजेंस ब्यूरो का फर्जी आईजी बनकर कारोबारियों से अवैध वसूली की है. उस पर सिरमौर जिला के कालाअंब सहित सोलन जिला के बद्दी व नालागढ़ में उद्योगपतियों से 1.41 करोड़ रुपए की अवैध वसूली का आरोप लगाया गया था. मामले में सीआईडी के शिमला स्थित भराड़ी थाना ने जांच की. विनय अग्रवाल ने इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने फर्जी आईजी बनकर उद्योगपतियों से अवैध वसूली के आरोपों को निराधार ठहराते हुए आरोपी विनय अग्रवाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है.

आरोप के अनुसार विनय अग्रवाल ने फर्जी आईजी बनकर कालाअंब, बद्दी व नालागढ़ में उद्योगपतियों को कार्रवाई की धमकी देकर अवैध वसूली की. कुछ उद्योगपतियों ने इस बारे में पुलिस को सूचित किया. पुलिस ने प्रारंभिक जांच के बाद सीआईडी के भराड़ी स्थित थाने में आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने विनय अग्रवाल की याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि इस मामले में गवाहों ने अपने सिविल विवाद को निपटाने के लिए पुलिस के समक्ष गवाही दी थी. इसके साथ ही अदालत ने प्रार्थी विनय के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया.

क्या है पूरा मामला ?

प्रार्थी पर आरोप था कि फर्जी आईजी बनकर उसने औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योगपतियों से 1.41 करोड़ की अवैध वसूली की. आरोप था कि जिस समय वह औद्योगिक क्षेत्रों का दौरा करता था तो हरियाणा पुलिस के सशस्त्र कर्मचारी भी अवैध रूप से साथ रहते थे. ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि किसी को शक न हो. कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड को खंगालने के बाद पाया कि इस मामले में कोई शिकायत नहीं है और संबंधित एफआईआर एक स्रोत रिपोर्ट के आधार पर पंजीकृत की गई है. यहां तक कि अभियोजन पक्ष (पुलिस) ने आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता (विनय अग्रवाल) ने खुद को केंद्र सरकार की एजेंसी आईबी के आईजी होने का नाटक करते हुए कथित तौर पर 1.41 करोड़ रुपये की रकम वसूल की थी. अभियोजन पक्ष का आरोप था कि इस रकम से उसने करोड़ों की कोठी व प्लॉट खरीदे.

मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष न्यायिक अंतरात्मा को संतुष्ट नहीं कर सका कि याचिकाकर्ता की तरफ से करोड़ों रुपये में कोठी और प्लॉट खरीदने का कथित कृत्य जबरन वसूली से जुड़ा है. अदालत ने कहा कि इस मामले में निर्णायक भूमिका जगबीर सिंह नामक गवाह को दी गई है, जिससे याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर पैसे वसूले हैं. अदालत ने कहा कि जब जगबीर सिंह ने याचिकाकर्ता विनय के साथ पैसे के लेनदेन को लेकर समझौते के संबंध में बयान देकर याचिकाकर्ता को दोषमुक्त कर दिया है, तो ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही को जीवित रखने का कोई उचित कारण नहीं है.

हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष का मुख्य जोर याचिकाकर्ता द्वारा कथित तौर पर जगबीर सिंह से पैसे ऐंठे जाने पर था. वहीं, जगबीर सिंह के बयान को ध्यान में रखते हुए ऐसा लगता है कि पक्षों के बीच विवाद पैसे के लेनदेन को लेकर था, जिसे पुलिस ने कथित स्रोत की रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक रंग दे दिया है.

हाईकोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयानों को देखते हुए मुकदमे के दौरान याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन पक्ष के मामले की सफलता की संभावना बहुत धूमिल है. साथ ही यदि याचिकाकर्ता, ऐसी परिस्थितियों में मुकदमे की पीड़ा का सामना करता है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. इसके साथ ही न्यायालय ने एफआईआर रद्द कर दी.

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