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हिमाचल में अब प्राकृतिक उत्पाद बेचने के लिए जगह-जगह लगेगी कैनोपी, मेलों में दिए जाएंगे स्टॉल - CANOPY FOR SELL NATURAL PRODUCTS

हिमाचल में अब प्राकृतिक उत्पादों को जगह-जगह बेचने के लिए आत्मा परियोजना के तहत कैनोपी लगाई जाएगी.

कुल्लू में प्राकृतिक खेती के उत्पाद बेचने को लेकर बैठक
कुल्लू में प्राकृतिक खेती के उत्पाद बेचने को लेकर बैठक (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Feb 7, 2025, 2:43 PM IST

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में सरकार द्वारा अब प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना के तहत काम कर रहे किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए जगह उपलब्ध करवाई जाएगी. इसके लिए शिमला में एक मोबाइल वैन की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के हर जिले के विकासखंड में किसान संगठनों के लिए कैनोपी भी उपलब्ध करवाई जाएगी, ताकि वे अपने खेतों में तैयार प्राकृतिक कृषि उत्पादों को आसानी से बेच सकें. हिमाचल प्रदेश में जल्द ही प्राकृतिक उत्पादों को बेचने के लिए किसानों को अब दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा, सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है.

जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर में कृषि विभाग की आत्मा परियोजना निदेशक डॉक्टर रितु गुप्ता ने बताया, "कुल्लू जिले के 6 विकास खंड में भी इसी योजना के तहत कार्य किया जाएगा और 14 कैनोपी किसान उत्पादक संगठनों को उपलब्ध करवाई जाएगी. आने वाले समय में भी विभिन्न मेलों और प्रदर्शनियों में किसान उत्पादक संगठनों को स्टॉल भी मुफ्त में उपलब्ध करवाया जाएगा."

डॉ. रितु गुप्ता, आत्मा परियोजना की निदेशक (ETV Bharat)

हर पंचायत में लगेंगे ट्रेनिंग कैंप

डॉक्टर रितु गुप्ता ने बताया कि जिला कुल्लू के बंजार उपमंडल की चकुरठा पंचायत में भी किसान उत्पादक संगठन बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है. दूसरा संगठन मनाली विधानसभा क्षेत्र के सर सेई में तैयार किया जाएगा. इसमें विभिन्न किसानों को जोड़ा जाएगा. इस साल में राष्ट्रीय कृषि खुशहाल योजना के तहत हर पंचायत से 10 किसानों को जोड़ने की योजना बनाई गई है. ऐसे में हर पंचायत में आत्मा परियोजना के तहत ट्रेनिंग कैंप लगाए जाएंगे और जहर मुक्त खेती करने के लिए किसानों को प्रेरित भी किया जाएगा.

कैनोपी के जरिए बेचे जाएंगे प्राकृतिक उत्पाद

हिमाचल प्रदेश में सरकार के द्वारा जहर मुक्त खेती के लिए प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना चलाई है, ताकि किसान अपने खेतों में कम से कम रसायन का उपयोग करें और प्राकृतिक खेती की और उनका रुझान बढ़ सके, लेकिन किसानों के उत्पादों के लिए अभी तक कोई उचित बाजार न होने के चलते उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पहली बार सरकार द्वारा जहां मक्की का समर्थन मूल्य ₹30 दिया गया और आगामी समय में गेहूं का समर्थन मूल्य ₹40 दिया जाएगा. इसके अलावा प्राकृतिक खेती से तैयार सब्जियों और अन्य उत्पादों को भी अब हर विकासखंड में कैनोपी के जरिए बेचने की सुविधा प्रदान की जा रही है.

आत्मा परियोजना की निदेशक डॉ. रितु गुप्ता ने बताया, "जिला कुल्लू के छह विकासखंड में भी साल 2018 से लेकर अब तक 445 प्रशिक्षण शिविर लगाए गए हैं और 13,681 किसानों को इसका प्रशिक्षण दिया गया है. ऐसे में 12000 से अधिक किसान अब प्राकृतिक खेती से जुड़े हुए हैं और 11000 से अधिक किसानों को सितारा पोर्टल पर भी पंजीकृत किया गया है."

प्राकृतिक खेती से लाखों की कमाई

वहीं, बंजार विकासखंड से आई किसान अनीता नेगी ने बताया कि उन्होंने भी जब प्राकृतिक खेती शुरू की तो पहले उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब उनकी फसल काफी अच्छी हो रही है. सेब के साथ-साथ वो अपने बगीचे में मिश्रित खेती भी कर रही हैं और इससे उन्हें अब हर साल लाखों की आमदनी हो रही है. इसके अलावा आसपास के लोग भी प्राकृतिक खेती को देखकर इससे जुड़ रहे हैं.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में फिर शुरू हुआ चिलिंग आवर्स पीरियड, सेब उत्पादन के लिए क्यों है जरूरी? बागवान अभी न करें ये काम

ये भी पढ़ें: अब पराली में भी उगेगा आलू, बस जमीन पर रख दो बीज न खेत जोतने का झंझट न ज्यादा सिंचाई की टेंशन

ये भी पढ़ें: हिमाचल के इस जिले में होती है सिंदूर की खेती, मात्र 100 रुपए में मिल रहा ये प्राकृतिक सिंदूर

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में सरकार द्वारा अब प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना के तहत काम कर रहे किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए जगह उपलब्ध करवाई जाएगी. इसके लिए शिमला में एक मोबाइल वैन की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के हर जिले के विकासखंड में किसान संगठनों के लिए कैनोपी भी उपलब्ध करवाई जाएगी, ताकि वे अपने खेतों में तैयार प्राकृतिक कृषि उत्पादों को आसानी से बेच सकें. हिमाचल प्रदेश में जल्द ही प्राकृतिक उत्पादों को बेचने के लिए किसानों को अब दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा, सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है.

जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर में कृषि विभाग की आत्मा परियोजना निदेशक डॉक्टर रितु गुप्ता ने बताया, "कुल्लू जिले के 6 विकास खंड में भी इसी योजना के तहत कार्य किया जाएगा और 14 कैनोपी किसान उत्पादक संगठनों को उपलब्ध करवाई जाएगी. आने वाले समय में भी विभिन्न मेलों और प्रदर्शनियों में किसान उत्पादक संगठनों को स्टॉल भी मुफ्त में उपलब्ध करवाया जाएगा."

डॉ. रितु गुप्ता, आत्मा परियोजना की निदेशक (ETV Bharat)

हर पंचायत में लगेंगे ट्रेनिंग कैंप

डॉक्टर रितु गुप्ता ने बताया कि जिला कुल्लू के बंजार उपमंडल की चकुरठा पंचायत में भी किसान उत्पादक संगठन बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है. दूसरा संगठन मनाली विधानसभा क्षेत्र के सर सेई में तैयार किया जाएगा. इसमें विभिन्न किसानों को जोड़ा जाएगा. इस साल में राष्ट्रीय कृषि खुशहाल योजना के तहत हर पंचायत से 10 किसानों को जोड़ने की योजना बनाई गई है. ऐसे में हर पंचायत में आत्मा परियोजना के तहत ट्रेनिंग कैंप लगाए जाएंगे और जहर मुक्त खेती करने के लिए किसानों को प्रेरित भी किया जाएगा.

कैनोपी के जरिए बेचे जाएंगे प्राकृतिक उत्पाद

हिमाचल प्रदेश में सरकार के द्वारा जहर मुक्त खेती के लिए प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना चलाई है, ताकि किसान अपने खेतों में कम से कम रसायन का उपयोग करें और प्राकृतिक खेती की और उनका रुझान बढ़ सके, लेकिन किसानों के उत्पादों के लिए अभी तक कोई उचित बाजार न होने के चलते उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पहली बार सरकार द्वारा जहां मक्की का समर्थन मूल्य ₹30 दिया गया और आगामी समय में गेहूं का समर्थन मूल्य ₹40 दिया जाएगा. इसके अलावा प्राकृतिक खेती से तैयार सब्जियों और अन्य उत्पादों को भी अब हर विकासखंड में कैनोपी के जरिए बेचने की सुविधा प्रदान की जा रही है.

आत्मा परियोजना की निदेशक डॉ. रितु गुप्ता ने बताया, "जिला कुल्लू के छह विकासखंड में भी साल 2018 से लेकर अब तक 445 प्रशिक्षण शिविर लगाए गए हैं और 13,681 किसानों को इसका प्रशिक्षण दिया गया है. ऐसे में 12000 से अधिक किसान अब प्राकृतिक खेती से जुड़े हुए हैं और 11000 से अधिक किसानों को सितारा पोर्टल पर भी पंजीकृत किया गया है."

प्राकृतिक खेती से लाखों की कमाई

वहीं, बंजार विकासखंड से आई किसान अनीता नेगी ने बताया कि उन्होंने भी जब प्राकृतिक खेती शुरू की तो पहले उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब उनकी फसल काफी अच्छी हो रही है. सेब के साथ-साथ वो अपने बगीचे में मिश्रित खेती भी कर रही हैं और इससे उन्हें अब हर साल लाखों की आमदनी हो रही है. इसके अलावा आसपास के लोग भी प्राकृतिक खेती को देखकर इससे जुड़ रहे हैं.

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