जबलपुर। हाईकोर्ट जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्य सरकार के सलाहकारों को यह समझ नहीं है कि किन मामले में रिव्यू याचिका दायर की जाती है. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि मुझे आश्चर्य है कि न्यायालय में लंबित प्रकरणों की संख्या से परिचित होने के बावजूद भी एक सरकारी अधिवक्ता इस तरह की याचिका कैसे दायर कर सकता है. इस तरह की निरर्थक याचिका न्यायालय का बोझ बढ़ायेगी. एकलपीठ ने 1 लाख रुपए की कॉस्ट लगाते हुए उक्त राशि याचिका के ओआईसी से व्यक्ति रूप से बसूलने के आदेश जारी किये हैं.
हाईकोर्ट में उक्त रिव्यू याचिका प्रमुख सचिव, आयुक्त उच्च शिक्षा विभाग व प्रार्चाय महारानी लक्ष्मी बाई कॉलेज भोपाल की तरफ से दायर की गयी थी. एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि उच्च शिक्षा विभाग में पदस्थ लैब अटेंडर की तरफ से एरियर भुगतान के संबंध में हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. याचिका में मांग की गयी थी कि उसके लंबित अभ्यावेदन का निराकरण निर्धारित अवधि में किया जाये. हाईकोर्ट ने सक्षम अधिकारी को 90 दिनों में अभ्यावेदन के निराकरण का आदेश जारी किया था.
सलाहकारों को समझ नहीं किन मामलों में दायर करें याचिका
अभ्यावेदन का निराकरण करने की बजाय उक्त रिव्यू याचिका दायर की गयी है. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि राज्य के सलाहकारों को यह समझ नहीं है कि किन मामलों में रिव्यू याचिका दायर की जानी चाहिए. यह राज्य के सलाहकार और प्राधिकारियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. कभी-कभी यह भी देखा गया है कि अधिकारी व्यक्तिगत शत्रुता के लिए अनावश्यक रूप से रोकने मुकदमेबाजी का सहारा लेते हैं. सरकार अधिवक्ता व अधिकारियों को यह समझ होनी चाहिये, इससे वित्तीय बोझ बढे़गा. न्यायालय में लंबित प्रकरणों के बादल मंडरा रहे हैं. यह समय की मांग है कि सभी को निरर्थक मुकदमेबाजी से बचना चाहिए. विशेषकर सरकार को.
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हाईकोर्ट की ली शरण
शपथ पत्र के अनुसार महारानी लक्ष्मी बाई कॉलेज के प्राचार्य डॉ एस के विजय ने हाईकोर्ट की शरण ली है. जो प्रथम श्रेणी का पद है. वह न्यायालय के आदेश को समझने में असमर्थ है. एकलपीठ ने याचिका के ऑफिसर ने केस पर एक लाख की कॉस्ट लगाते हुए उनसे व्यक्तिगत रूप से वसूली के आदेश जारी किये हैं. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रदेश के महाधिवक्ता इस बात की जांच करे की उनके कार्यालय से कैसे निरर्थक मुकदमे दायर किये जा रहे हैं. एकलपीठ ने महाधिवक्ता को सलाह दी है कि इसके लिए वरिष्ठ कानूनी अधिकारियों की एक कमेटी गठित करें. जो जांच कर सुनिश्चित करे की कोर्ट के आदेश को चुनौती दी जा सकती है या नहीं. सरकार के अधिकारी की मनमर्जी व पसंद के अनुसार नहीं, जो आदेश की गंभीरता और प्रभाव को समझने में असमर्थ है.