प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दामाद हत्या के आरोप से ससुर को बरी करने के फैसले में आत्मरक्षा के अधिकार पर भी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि आत्मरक्षा का अधिकार प्रयोग करने के लिए कोई स्वर्णिम मानक या गणितीय फार्मूला तय नहीं किया जा सकता है. यह घटना के वक्त की परिस्थितियों, आत्मरक्षा का प्रयोग करने वाले व्यक्ति की मन:स्थिति, उसकी जान पर उत्पन्न खतरे की आशंका जैसी तमाम बातों पर निर्भर करता है. कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ अपने ही दामाद की हत्या में उम्र कैद की सजा पाए शाहजहांपुर के डॉक्टर जेएन मिश्रा को बरी कर दिया.
अभियोजन के अनुसार डॉ. जेएन मिश्रा के खिलाफ उनके समधी अशोक कुमार दुबे ने 2 मार्च 2010 को प्राथमिक की दर्ज कराई थी. जिसमें कहा गया कि उनके बेटे सुधांशु की शादी डॉ. जेएन मिश्रा की बेटी निधि के साथ हुई थी. शादी के बाद डाॅ. मिश्रा सुधांशु को अपना घर जमाई बनना चाहते थे. जिससे उसने मना कर दिया. घटना वाले दिन इसी बात पर पंचायत थी. जिसके लिए वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ मिश्रा की क्लीनिक पर गए थे. बातचीत के दौरान डॉ. मिश्रा ने तैश में आकर निधि और सीमा के उकसाने पर अपनी लाइसेंसी राइफल से सुधांशु को गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई.
इस मामले में अधीनस्थ न्यायालय ने डॉ. जेएन मिश्रा को उम्र कैद और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी. इस सजा के खिलाफ डॉ. जेएन मिश्रा ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी. अपील पर न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष की दलीलों से यह बात सामने आई कि वास्तव में सुधांशु अपने ससुर डॉ. जेएन मिश्रा पर उनका नवनिर्मित नर्सिंग होम अपने नाम करने के लिए दबाव बना रहा था. इसके लिए कई बार गाली गलौज और झगड़ा भी हुआ. घटना वाले दिन सुधांशु हाथ में 315 बोर का तमंचा लेकर डॉ. जेएन मिश्रा के घर पहुंचा था और तमंचा तानकर धमका रहा था. यह स्थिति देख मौके पर मौजूद डॉ. जेएन मिश्रा के प्राइवेट गनर ने सुधांशु पर राइफल से गोली चला दी.
कोर्ट ने कहा कि आत्मरक्षा का कोई तय मानक नहीं हो सकता है. यह पूरी तरह से घटना के समय की परिस्थितियों, व्यक्ति की मानसिक स्थिति, उसके स्वभाव, उसे अपनी जान पर उत्पन्न खतरे की आशंका आदि पर निर्भर करता है. घटना के समय सुधांशु के हाथ में तमंचा था. पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर का तमंचा और दो कारतूस बरामद भी किए हैं. भले ही उसने फायर नहीं किया, मगर उसके ओर से किए गए इस उकसावे से आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने का पर्याप्त आधार बनता है. इस स्थिति में सामने वाले के मन में यह भय उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि यदि उसने आत्मरक्षा नहीं की तो उसकी हत्या हो जाएगी. व्यक्ति के मन में खुद की जान पर वास्तविक खतरा होने की आशंका उत्पन्न होना उसके द्वारा आत्मरक्षा का अधिकार प्रयोग करने का पर्याप्त आधार है. कोर्ट ने अपीलार्थी डॉ. जेएन मिश्रा को उम्र कैद की सजा से बरी कर दिया है.