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हाईकोर्ट ने ब्याज के साथ GPF भुगतान का दिया आदेश, 22 साल बाद आश्रित परिवार को मिला न्याय - Lucknow High Court News

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 22 साल से पेंडिंग जीपीएफ के भुगतान (High Court Order on GPF) मामले में आठ फीसदी ब्याज के साथ समस्त धनराशि आश्रित उत्तराधिकारियों को अदायगी का आदेश दिया है. मामला पंचायती राज विभाग के एक कर्मचारी से जुड़ा है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 22, 2024, 9:56 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पंचायत राज विभाग के एक कर्मचारी के परिवार को 8 प्रतिशत ब्याज की दर से जीपीएफ का भुगतान करने के आदेश दिए हैं. कर्मचारी की मृत्यु 2002 में हो गई थी. इसके पहले वह वर्ष 1992 में ही सेवानिवृत हो गया था. यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार की एकल पीठ ने कर्मचारी के पुत्र भानु प्रताप सोनकर की याचिका पर पारित किया है.

वर्ष 2015 में दाखिल याचिका में कहा गया था कि याची के पिता बली राम प्रसाद बतौर सहायक विकास अधिकारी (पंचायत), ब्लॉक पंचपेड़वा, बलरामपुर में सेवारत थे. अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि बली राम प्रसाद वर्ष 1992 में सेवानिवृत हुए थे. सेवानिवृति के बाद उन्होंने अपने जीपीएफ भुगतान का काफी प्रयास किया, परंतु विभाग द्वारा नहीं किया गया. याचिका पर न्यायालय जिला पंचायत राज अधिकारी का व्यक्तिगत हलफनामा तलब किया. जिसमें अधिकारी ने स्वीकार किया कि जीपीएफ का भुगतान न हो पाने में याची के पिता की कोई गलती नहीं थी. कहा गया कि कई बार पत्राचार के बावजूद बली राम प्रसाद की व्यक्तिगत फाइल और जीपीएफ पासबुक खंड विकास अधिकारी, पंचपेड़वा के कार्यालय से नहीं मिल सकी. इस सम्बंध में वर्ष 2010 से वर्ष 2014 तक कई पत्र भेजे गए. जवाबी हलफनामे में आगे कहा गया कि उपरोक्त दस्तावेज मिलने के बाद 8 मई 2015 को महालेखाकार, इलाहाबाद को फाइल भेजी गई. महालेखाकार ने सर्टिफाइड दस्तावेजों की मांग की, सम्बंधित दस्तावेज भेजने के पश्चात आवश्यक कार्रवाई के लिए कार्यालय सहायक बलरामपुर कृष्ण चंद्र श्रीवास्तव ने डीपीआरओ के समक्ष फाइल ही नहीं भेजी. जिसके कारण मामला लटका रहा.


न्यायालय ने कहा कि वर्ष 1992 से वर्ष 2023 तक अधिकारी सिर्फ दस्तावेज एकत्रित करते रहे. वर्ष 2023 में पहली बार कर्मचारी के कानूनी वारिसों को पत्र भेजकर बैंक अकाउंट उपलब्ध कराने को कहा गया. न्यायालय ने जीपीएफ धनराशि पर आठ प्रतिशत ब्याज अधिरोपित कर कानूनी वारिसों को भुगतान का आदेश दिया है.

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पंचायत राज विभाग के एक कर्मचारी के परिवार को 8 प्रतिशत ब्याज की दर से जीपीएफ का भुगतान करने के आदेश दिए हैं. कर्मचारी की मृत्यु 2002 में हो गई थी. इसके पहले वह वर्ष 1992 में ही सेवानिवृत हो गया था. यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार की एकल पीठ ने कर्मचारी के पुत्र भानु प्रताप सोनकर की याचिका पर पारित किया है.

वर्ष 2015 में दाखिल याचिका में कहा गया था कि याची के पिता बली राम प्रसाद बतौर सहायक विकास अधिकारी (पंचायत), ब्लॉक पंचपेड़वा, बलरामपुर में सेवारत थे. अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने कोर्ट के समक्ष दलील दी कि बली राम प्रसाद वर्ष 1992 में सेवानिवृत हुए थे. सेवानिवृति के बाद उन्होंने अपने जीपीएफ भुगतान का काफी प्रयास किया, परंतु विभाग द्वारा नहीं किया गया. याचिका पर न्यायालय जिला पंचायत राज अधिकारी का व्यक्तिगत हलफनामा तलब किया. जिसमें अधिकारी ने स्वीकार किया कि जीपीएफ का भुगतान न हो पाने में याची के पिता की कोई गलती नहीं थी. कहा गया कि कई बार पत्राचार के बावजूद बली राम प्रसाद की व्यक्तिगत फाइल और जीपीएफ पासबुक खंड विकास अधिकारी, पंचपेड़वा के कार्यालय से नहीं मिल सकी. इस सम्बंध में वर्ष 2010 से वर्ष 2014 तक कई पत्र भेजे गए. जवाबी हलफनामे में आगे कहा गया कि उपरोक्त दस्तावेज मिलने के बाद 8 मई 2015 को महालेखाकार, इलाहाबाद को फाइल भेजी गई. महालेखाकार ने सर्टिफाइड दस्तावेजों की मांग की, सम्बंधित दस्तावेज भेजने के पश्चात आवश्यक कार्रवाई के लिए कार्यालय सहायक बलरामपुर कृष्ण चंद्र श्रीवास्तव ने डीपीआरओ के समक्ष फाइल ही नहीं भेजी. जिसके कारण मामला लटका रहा.


न्यायालय ने कहा कि वर्ष 1992 से वर्ष 2023 तक अधिकारी सिर्फ दस्तावेज एकत्रित करते रहे. वर्ष 2023 में पहली बार कर्मचारी के कानूनी वारिसों को पत्र भेजकर बैंक अकाउंट उपलब्ध कराने को कहा गया. न्यायालय ने जीपीएफ धनराशि पर आठ प्रतिशत ब्याज अधिरोपित कर कानूनी वारिसों को भुगतान का आदेश दिया है.

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