जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत फैमिली कोर्ट के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और ना ही अदालत यह निर्देश दे सकती कि किसी केस विशेष को तय समय अवधि में तय किया जाए. यह निर्णय संबंधित कोर्ट को ही परिस्थितियों के आधार पर लेना चाहिए. इसके बावजूद भी फैमिली कोर्ट को देखना चाहिए कि प्रकरणों में अनावश्यक देने के लिए मामले की सुनवाई ना टाली जाए.
फैमिली कोर्ट को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 21बी की भावना के अनुसार तलाक से जुड़े मामलों का त्वरित निस्तारण किया जाना चाहिए. इसके साथ ही अदालत में इस आदेश की प्रति सभी फैमिली कोर्ट के पीठासीन अधिकारियों को भेजने के लिए रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिए हैं. जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश फैमिली कोर्ट में लंबित तलाक मामले के जल्दी निस्तारण के लिए पेश याचिका का निस्तारण करते हुए दिए.
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अदालत ने कहा कि हर पक्षकार हाईकोर्ट में याचिका दायर करने में सक्षम नहीं होता और ना ही कोर्ट सक्षम पक्षकार को यह अनुमति दे सकता कि उसके मुकदमे को आउट ऑफ टर्न निर्णित किया जाए. अदालत ने कहा कि इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि इन दिनों फैमिली कोर्ट में तलाक और वैवाहिक प्रकरणों के कई मामले लंबित हैं. वहीं इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि विधायिका ने प्रकृति विशेष के मामलों के निस्तारण के लिए तय समय अवधि तय कर रखी है.
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याचिका में कहा गया कि उसने अपनी पत्नी से तलाक के लिए फैमिली कोर्ट, प्रथम, जयपुर महानगर में वर्ष 2022 में याचिका का पेश की थी, लेकिन अब तक इसका निस्तारण नहीं हुआ है. ऐसे में फैमिली कोर्ट को निर्देश दिए जाएं कि वह प्रकरण का निस्तारण 6 माह की अवधि में करे. याचिका में बताया गया कि हिंदू विवाह विवाह अधिनियम की धारा 21 बी के भाग 2 में प्रावधान है कि हर याचिका का निस्तारण नोटिस तामील होने के 6 माह के भीतर कर दिया जाना चाहिए. इसके बावजूद भी याचिकाकर्ता का मामला अब तक तय नहीं किया गया है.