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12 पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, उच्चाधिकारियों से जवाब-तलब - HIGH COURT NEWS

भ्रष्टाचार व अन्य मामलों में एफआईआर को लेकर मेरठ, वाराणसी, सिद्धार्थनगर, जौनपुर एवं प्रयागराज में तैनात पुलिसकर्मियों ने हाईकोर्ट में दाखिल की है याचिका

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 6 hours ago

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंस्पेक्टर सहित यूपी के पुलिस के 12 कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया, न्यायमूर्ति अजित कुमार, न्यायमूर्ति नीरज तिवारी एवं न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दिया है. मेरठ, वाराणसी, सिद्धार्थनगर, जौनपुर एवं प्रयागराज में तैनात निरीक्षक उदय प्रताप सिंह, देव कुमार, मुकेश शर्मा, विजय प्रकाश, राजीव चौधरी, दीपक कुमार सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों की याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम, एडवोकेट अतिप्रिया गौतम ने कोर्ट में बहस की. कोर्ट ने इन याचिकाओं पुलिस विभाग के आला अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुये जवाब तलब किया है. सभी याचिकाओं को संबद्ध कर दिया गया है.

मामले के तथ्यों के अनुसार याचियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार व अन्य मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) विभिन्न थानों में दर्ज कराई गई है. इन आपराधिक मामलों में आरोपों के संबंध में उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारी (दंड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14 (1) के तहत विभागीय कार्रवाई करते हुये आरोप पत्र जारी किए गए हैं. इन पुलिसकर्मियों ने 14 (1) की विभागीय कार्रवाई के विरुद्ध अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की गई हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम, अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम का कहना था कि जिन आरोपों में याचियों के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई गई हैं, उन्हीं आरोपों के संबंध में विभागीय कार्रवाई की जा रही है. क्रिमिनल केस के आरोप व साक्ष्य एवं विभागीय कार्रवाई के आरोप व साक्ष्य एक समान हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा 483, 486, 489, 492 एवं 493 में यह व्यवस्था है कि पुलिसकर्मियों के विरुद्ध अगर आपराधिक मुकदमा लंबित है तो उन्हीं आरोपों में विभागीय कार्रवाई नहीं की जा सकती. जब तक कि आपराधिक मुकदमे में ट्रायल पूर्ण न हो जाए या फाइनल रिपोर्ट में अपचारी बरी न हो जाए.

पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा को सर्वोच्च न्यायालय ने जसवीर सिंह के केस में अनिवार्य माना है और यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि पुलिस रेग्यूलेशन का बिना पालन किए हुए की गई कार्रवाई विधि सम्मत नहीं है एवं नियम तथा कानून के विरुद्ध है. विजय गौतम का यह भी कहना था कि सर्वोच्च न्यायालय ने कैम्पटन एम पॉल एन्थोनी बनाम भारत गोल्ड माईन्स लिमिटेड तथा उच्च न्यायालय ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम आरबी शर्मा, केदार नाथ यादव बनाम उप्र सरकार, संजय राय बनाम उप्र सरकार व अन्य में यह व्यवस्था प्रतिपादित की गई है. यदि क्रिमिनल केस के आरोप एवं विभागीय कार्रवाई के आरोप एक समान है तो विभागीय कार्रवाई क्रिमिल केस के समाप्त होने तक याचियों के विरुद्ध नहीं की जा सकती.

इसे भी पढ़ें-यूपी पीसीएस-जे 2022 मुख्य परीक्षा विवाद; हाईकोर्ट ने जांच का जिम्मा जस्टिस गोविंद माथुर को सौंपा

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंस्पेक्टर सहित यूपी के पुलिस के 12 कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया, न्यायमूर्ति अजित कुमार, न्यायमूर्ति नीरज तिवारी एवं न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दिया है. मेरठ, वाराणसी, सिद्धार्थनगर, जौनपुर एवं प्रयागराज में तैनात निरीक्षक उदय प्रताप सिंह, देव कुमार, मुकेश शर्मा, विजय प्रकाश, राजीव चौधरी, दीपक कुमार सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों की याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम, एडवोकेट अतिप्रिया गौतम ने कोर्ट में बहस की. कोर्ट ने इन याचिकाओं पुलिस विभाग के आला अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुये जवाब तलब किया है. सभी याचिकाओं को संबद्ध कर दिया गया है.

मामले के तथ्यों के अनुसार याचियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार व अन्य मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) विभिन्न थानों में दर्ज कराई गई है. इन आपराधिक मामलों में आरोपों के संबंध में उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारी (दंड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14 (1) के तहत विभागीय कार्रवाई करते हुये आरोप पत्र जारी किए गए हैं. इन पुलिसकर्मियों ने 14 (1) की विभागीय कार्रवाई के विरुद्ध अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की गई हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम, अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम का कहना था कि जिन आरोपों में याचियों के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई गई हैं, उन्हीं आरोपों के संबंध में विभागीय कार्रवाई की जा रही है. क्रिमिनल केस के आरोप व साक्ष्य एवं विभागीय कार्रवाई के आरोप व साक्ष्य एक समान हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा 483, 486, 489, 492 एवं 493 में यह व्यवस्था है कि पुलिसकर्मियों के विरुद्ध अगर आपराधिक मुकदमा लंबित है तो उन्हीं आरोपों में विभागीय कार्रवाई नहीं की जा सकती. जब तक कि आपराधिक मुकदमे में ट्रायल पूर्ण न हो जाए या फाइनल रिपोर्ट में अपचारी बरी न हो जाए.

पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा को सर्वोच्च न्यायालय ने जसवीर सिंह के केस में अनिवार्य माना है और यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि पुलिस रेग्यूलेशन का बिना पालन किए हुए की गई कार्रवाई विधि सम्मत नहीं है एवं नियम तथा कानून के विरुद्ध है. विजय गौतम का यह भी कहना था कि सर्वोच्च न्यायालय ने कैम्पटन एम पॉल एन्थोनी बनाम भारत गोल्ड माईन्स लिमिटेड तथा उच्च न्यायालय ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम आरबी शर्मा, केदार नाथ यादव बनाम उप्र सरकार, संजय राय बनाम उप्र सरकार व अन्य में यह व्यवस्था प्रतिपादित की गई है. यदि क्रिमिनल केस के आरोप एवं विभागीय कार्रवाई के आरोप एक समान है तो विभागीय कार्रवाई क्रिमिल केस के समाप्त होने तक याचियों के विरुद्ध नहीं की जा सकती.

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