प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समुदाय विशेष के खिलाफ ऑनलाइन अभद्र सामग्री पोस्ट करने के मामले में जौनपुर के वकील को राहत देते हुए उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान एवं न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने अधिवक्ता बरसातू राम सरोज की याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को दिया.
याची ने याचिका दाखिल कर बीएनएस की धारा 353 (2) और आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 के तहत उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की है. बीएनएस की धारा 353 (2) में धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, जाति या समुदाय या किसी भी अन्य आधार पर, विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना की भावना पैदा करने या बढ़ावा देने के इरादे से या जिसके पैदा होने या बढ़ावा देने की संभावना है.
इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित, झूठी सूचना, अफवाह या भयावह समाचार युक्त कोई भी बयान या रिपोर्ट बनाने, प्रकाशित करने या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान है. याची के वकील ने दलील दी कि एफआईआर में यह नहीं बताया गया है कि याची ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर किस तरह की पोस्ट की है. यह भी कहा कि एफआईआर में उल्लेख किया गया है कि याची को बार एसोसिएशन से निकाल दिया गया था, जिससे साबित होता है कि एफआईआर दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई थी.
याची के खिलाफ दर्ज एफआईआर में आरोप है कि 25 सितंबर 2024 को उसने अपने सोशल मीडिया आईडी पर समुदाय विशेष के बारे में अभद्र टिप्पणी की, जिससे पूरे समुदाय को ठेस पहुंची. एफआईआर में कहा गया कि अधिवक्ता के खिलाफ उचित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए ताकि उनकी रोजाना की गाली-गलौज बंद हो सके. एफआईआर सवर्ण सेना के जिलाध्यक्ष प्रवीण तिवारी के कहने पर दर्ज की गई है.
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