नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वो अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के मामले से निपटने के लिए नए आपराधिक कानून में कोई प्रावधान न होने को लेकर प्रतिवेदन पर जल्द फैसला करे. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को छह महीने में इस पर फैसला करने का निर्देश दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र सरकार तय समय सीमा में इस मामले पर फैसला नहीं करता है तो याचिकाकर्ता दोबारा कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.
पुरुषों को इंसाफ देने के लिए कोई कानून नहीं
इस मामले मे याचिकाकर्त्ता गंतव्य गुलाटी ने कहा था कि पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन सबंध बनाने पर सजा का प्रावधान था, लेकिन नए आपराधिक कानून में इस धारा को खत्म कर दिया गया और कोई नई धारा भी नहीं जोड़ी गई है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इसके चलते अभी अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के शिकार पुरुषों और शादीशुदा संबंध में इस तरह के सम्बन्धों को झेलने वाली महिलाओं लिए कोई कानूनी राहत का प्रावधान नए कानून में नहीं है.
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शिकायत होने पर दर्ज नहीं हो पाएगी FIR
उन्होंने कहा कि अगर कोई पुरुष दूसरे पुरुष का यौन उत्पीड़न करता है तो उसकी शिकायत होने पर एफआईआर भी दर्ज नहीं होगी. जब तक नये आपराधिक कानून में अप्राकृतिक यौन शोषण के खिलाफ प्रावधान नहीं किया जाएगा एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा था कि ये मामला संबंधित मंत्रालय के समक्ष विचाराधीन है. उन्होंने कहा कि इस याचिका का निस्तारण कर दिया जाए और याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन पर केंद्र सरकार को विचार करने का आदेश जारी किया जाए. लेकिन हाईकोर्ट ने केंद्र की इस दलील को अस्वीकार कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि ये मामला एलजीबीटी समुदाय के खिलाफ हिंसा से भी जुड़ा हुआ है. इसलिए आप केंद्र सरकार से निर्देश लेकर आएं.
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