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बहुचर्चित भंवरी देवी हत्याकांड में मृतका के परिजनों को चार माह में परिलाभ देने के आदेश

बहुचर्चित भंवरी देवी हत्याकांड में राजस्थान हाईकोर्ट ने मृतका के परिजनों को चार माह में परिलाभ देने के आदेश दिए हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्हें 12 साल से परिलाभ नहीं दिए गए हैं.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाईकोर्ट
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 15, 2024, 5:53 PM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने बहुचर्चित भंवरी देवी हत्याकांड में भंवरी देवी की मौत के बाद चिकित्सा विभाग की ओर से परिजनों को पेंशन सहित अन्य परिलाभ देने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट जस्टिस अरूण मोंगा की एकलपीठ के समक्ष मृतका भंवरी के पुत्र एवं पुत्रियों ने अश्विनी, सुहानी और साहिल पेमावत की ओर से पेंशन सहित अन्य परिलाभ के लिए याचिका पेश की. याचिका में अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने बताया कि मृतका के पुत्र एवं पुत्रियों को 12 साल बाद भी परिलाभ नहीं दिए गए हैं.

कोर्ट में बताया गया कि मृतका जो कि याचिकाकर्ताओं की माता थी और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता यानी की एएनएम के पद पर कार्यरत थी. 1 सितम्बर, 2011 को घर से बाहर गई थी, लेकिन वापस नहीं आई. इसके बाद पता चला कि उनकी हत्या कर दी गई है. मामला हाई प्रोफाइल होने पर तत्कालीन सरकार ने इस मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया था. उस समय राज्य सरकार के केबिनेट मंत्री एवं विधायक सहित 13 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. इसी मामले में मृतका के पति अमरचंद को भी सह-आरोपी मानते हुए गिरफ्तार किया गया था.

पढ़ें: 'भंवर' में फंसा था महिपाल मदेरणा का राजनीतिक करियर, मौत के बाद फिर चर्चा में भंवरी देवी मर्डर केस

सीबीआई इस मामले में भंवरी देवी को मृत मान रही है, लेकिन राज्य सरकार एवं जिला कलेक्टर ने लम्बे समय उनको मृत नहीं माना. मृतका के पुत्र साहिल पेमावत को मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करते हुए मृतक आश्रित अनुकम्पा नियुक्ति दी गई थी. अनुकम्पा नियुक्त तो मिल गई, लेकिन आज तक चिकित्सा विभाग ने मृतका के परिजनों को बकाया पेंशन एवं अन्य परिलाभ का भुगतान नहीं किया है. चिकित्सा विभाग की ओर से तर्क दिया गया कि मृतका भंवरी ने अपने नोमिनी में अमरचंद का नाम लिखा था और वो जेल में होने की वजह से परिलाभ नहीं दिए गए. जबकि मृतका के पति अमरचंद ने अपने पुत्र-पुत्रियों को पेंशन एवं अन्य परिलाभा प्रदान करने के लिए लिखित में सहमति दी थी.

पढ़ें: भंवरी देवी हत्याकांडः मास्टरमाइंड इंदिरा विश्नोई को मिली जमानत...भाई को मंत्री बनाने के लिए रचा था पूरा खेल

कोर्ट में अधिवक्ता ने बताया कि विभाग का रवैया में भी अजीब है. एक तरफ मृतका के पुत्र साहिल को अनुकम्पा नियुक्ति दी जा चुकी है, तो दूसरी ओर अभी तक पेंशन परिलाभ देने को तैयार नहीं है. मामले पर विस्तृत सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने चिकित्सा विभाग को आदेश दिया है कि मृतका के विधिक वारिस पुत्र-पुत्रियों को चार माह में बकाया पेंशन एवं अन्य परिलाभ दिए जाएं. कोर्ट ने यह भी कहा कि 1 सितम्बर, 2011 से ही बकाया पेंशन, परिलाभ एवं ब्याज की गणना की जाएगी. कोर्ट ने मृतका के पति अमरचंद को मिलने वाले लाभ को विभाग में ही जमा रखने का आदेश दिया है. जब तक उनके खिलाफ चल रहे आपराधिक प्रकरण का निस्तारण ना हो जाए.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने बहुचर्चित भंवरी देवी हत्याकांड में भंवरी देवी की मौत के बाद चिकित्सा विभाग की ओर से परिजनों को पेंशन सहित अन्य परिलाभ देने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट जस्टिस अरूण मोंगा की एकलपीठ के समक्ष मृतका भंवरी के पुत्र एवं पुत्रियों ने अश्विनी, सुहानी और साहिल पेमावत की ओर से पेंशन सहित अन्य परिलाभ के लिए याचिका पेश की. याचिका में अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने बताया कि मृतका के पुत्र एवं पुत्रियों को 12 साल बाद भी परिलाभ नहीं दिए गए हैं.

कोर्ट में बताया गया कि मृतका जो कि याचिकाकर्ताओं की माता थी और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता यानी की एएनएम के पद पर कार्यरत थी. 1 सितम्बर, 2011 को घर से बाहर गई थी, लेकिन वापस नहीं आई. इसके बाद पता चला कि उनकी हत्या कर दी गई है. मामला हाई प्रोफाइल होने पर तत्कालीन सरकार ने इस मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया था. उस समय राज्य सरकार के केबिनेट मंत्री एवं विधायक सहित 13 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. इसी मामले में मृतका के पति अमरचंद को भी सह-आरोपी मानते हुए गिरफ्तार किया गया था.

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सीबीआई इस मामले में भंवरी देवी को मृत मान रही है, लेकिन राज्य सरकार एवं जिला कलेक्टर ने लम्बे समय उनको मृत नहीं माना. मृतका के पुत्र साहिल पेमावत को मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करते हुए मृतक आश्रित अनुकम्पा नियुक्ति दी गई थी. अनुकम्पा नियुक्त तो मिल गई, लेकिन आज तक चिकित्सा विभाग ने मृतका के परिजनों को बकाया पेंशन एवं अन्य परिलाभ का भुगतान नहीं किया है. चिकित्सा विभाग की ओर से तर्क दिया गया कि मृतका भंवरी ने अपने नोमिनी में अमरचंद का नाम लिखा था और वो जेल में होने की वजह से परिलाभ नहीं दिए गए. जबकि मृतका के पति अमरचंद ने अपने पुत्र-पुत्रियों को पेंशन एवं अन्य परिलाभा प्रदान करने के लिए लिखित में सहमति दी थी.

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कोर्ट में अधिवक्ता ने बताया कि विभाग का रवैया में भी अजीब है. एक तरफ मृतका के पुत्र साहिल को अनुकम्पा नियुक्ति दी जा चुकी है, तो दूसरी ओर अभी तक पेंशन परिलाभ देने को तैयार नहीं है. मामले पर विस्तृत सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने चिकित्सा विभाग को आदेश दिया है कि मृतका के विधिक वारिस पुत्र-पुत्रियों को चार माह में बकाया पेंशन एवं अन्य परिलाभ दिए जाएं. कोर्ट ने यह भी कहा कि 1 सितम्बर, 2011 से ही बकाया पेंशन, परिलाभ एवं ब्याज की गणना की जाएगी. कोर्ट ने मृतका के पति अमरचंद को मिलने वाले लाभ को विभाग में ही जमा रखने का आदेश दिया है. जब तक उनके खिलाफ चल रहे आपराधिक प्रकरण का निस्तारण ना हो जाए.

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