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जिस अस्पताल में कभी हरिवंश राय बच्चन ने कराया था अपनी पत्नी का इलाज, आज देखरेख के अभाव में बना खंडहर

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 23, 2024, 2:16 PM IST

Hathua Victoria Hospital: आज बिहार में कई मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल खुल गए हैं लेकिन आज से करीब 120 साल पहले बने गोपालगंज के विक्टोरिया अस्पताल की गिनती बिहार के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में हुआ करती थी. ये वही अस्पताल है, जहां प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन, अपनी पहली पत्नी को लेकर टीबी का इलाज कराने पहुंचे थे. वर्तमान में यह अस्पताल खंडहर में तब्दील हो चुका है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल की हालत जर्जर

गोपालगंज: आज बिहार में कई अत्याधुनिक अस्पताल खुल गए हैं. लेकिन आज से करीब 120 साल पहले गोपालगंज जिले के हथुआ अनुमंडल में विक्टोरिया अस्पताल का निर्माण हुआ था. विक्टोरिया अस्पताल कभी बिहार के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में से एक था. इस अस्पताल में हरिवंश राय बच्चन ने अपनी पहली पत्नी का इलाज भी कराया था. लेकिन आज ये खंडहर में तब्दील हो गया है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
खंडहर में तब्दील हुआ अस्पताल

खंडहर में तब्दील हुआ अस्पताल: हथुआ अनुमंडलीय अस्पताल कभी बिहार के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में एक था. लेकिन बदलते समय के साथ इस अस्पताल की स्थिति भी बदलती गई. आलम यह है कि हथुआ राज की महारानी द्वारा बनाए गए इस अस्पताल में कई विभाग के डॉक्टर के अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर का घोर अभाव है. अस्पताल का भवन जर्जर होकर टूटने लगा है, जिसपर ही शासन-प्रशासन किसी की नजर नहीं है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
बाहर से भी अस्पताल का भवन जर्जर

अस्पताल में सुविधाओं की कमी: अब इस अस्पताल की स्थिति राम भरोसे है. इस अस्पताल में डॉक्टरों के साथ-साथ दवा और अस्पताल कर्मचारियों की भी भारी कमी है. बिल्डिंग और वार्ड की स्थिति जर्जर है. साथ ही विशेषज्ञ डॉक्टर नाम मात्र के हैं. ब्लड बैंक व एनेस्थेटिक के अभाव में परिवार नियोजन के अलावा और कोई ऑपरेशन इस अस्पताल में नहीं होता है. इसे अनुमंडलीय अस्पताल का दर्जा मिलने के बाद भी सुविधाएं नदारद हैं.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
अस्पताल की टूटी छत

तेजस्वी यादव के गृह जिले का है अस्पताल: यह अस्पताल मरीजों के लिए सभी सुविधाओं से लैस हुआ करता था. यहांं पुरुष व महिला वार्डों में 80-80 बेड थे. अपने विशेषज्ञ डॉक्टरों, बेहतर इलाज, प्रबंधन व साफ-सफाई को लेकर यह हॉस्पिटल काफी विख्यात था. बड़ी बात तो यह है कि यह बिहार के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव के गृह जिले का अस्पताल है. इसके बावजूद यह अस्पताल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
अस्पताल के रख-रखाव में घोर कमी

साल 1903 में अस्पताल का निर्माण: अस्पताल के निर्माण के पीछे की कहानी कुछ यूं है कि साल 1896 में हथुआ राज के तत्कालीन महाराजा सर कृष्ण प्रताप साही का निधन हो गया था. जिसके बाद उनकी पत्नी महारानी ज्ञानमंजरी कुंवर ने इस अस्पताल को वर्ष 1903 बनवाया था. इस अस्पताल का नाम महारानी रामदुलारी कुंवर अनुमंडलीय अस्पताल रखा गया. वहीं विक्टोरिया हॉस्पिटल के नाम से भी इसे जाना जाता है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
महारानी रामदुलारी कुंवर अनुमंडलीय अस्पताल

विदेश से अस्पताल में आते थे डॉक्टर: उस वक्त 15 एकड़ में बने इस अस्पताल के निर्माण में 1 लाख 50 हजार रुपए खर्च हुए थे. हॉस्पिटल में टीबी, हैजा व घेघा रोगों के विख्यात डॉक्टर सेवा देते थे. टीवी व हैजा के लिए अलग-अलग वार्ड हुआ करते थे. विदेशों से भी डॉक्टर, मरीज को देखने के लिए आते थे. इस अस्पताल के अधीन भोरे, गोपालगंज, श्रीपुर, छपरा, रिविलगंज, सीतामढ़ी, सीवान, केसरिया, आरा, ढाका व जगदीशपुर में डिस्पेंसरी चलती थी.

हरिवंश राय बच्चन ने अस्पताल में कराया था पत्नी का इलाज: अस्पताल की खासियत इतनी थी कि प्रसिद्ध कवि व लेखक हरिवंश राय बच्चन अपनी पहली पत्नी श्यामा बच्चन के इलाज के लिए वर्ष 1936 में यहां आए थे. बताया जाता है कि उनकी पत्नी टीबी से पीड़ित थी. उन्हें लेकर वे विदेश से आने वाले एक बड़े डॉक्टर से दिखाने पीएमसीएच पटना गए थे. जहां उन्हें बताया गया कि उस डॉक्टर को हथुआ राज ने अपने अस्पताल में सेवा देने के लिए रख लिया है. इसके बाद हरिवंश राय बच्चन, पत्नी को लेकर हथुआ पहुंचे थे.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
ऑपरेशन थियेटर में सर्जरी की भी व्यवस्था नहीं

विक्टोरिया अस्पताल की विशेषता: इस अस्पताल की विशेषता यह है कि अस्पताल के भवन को अगर काफी ऊंचाई से देखा जाए, तो पूरे बिल्डिंग की आकृति अंग्रेजी का H अक्षर में दिखाई देगा. क्योंकि ऐसी मान्यता थी कि युद्ध के समय, दुश्मन सेना हॉस्पिटल पर हमला नहीं कर सकेंगे.

मरीजों को होती है परेशानी: बहरहाल हथुआ अनुमंडल की आबादी करीब सात से दस लाख बताई जाती है. घनी आबादी वाले इस अस्पताल में प्रतिदिन दो से ढाई सौ मरीज दस्तक देते हैं. इनमे महिलाएं और बच्चों की संख्या अधिक होती है. इतनी बड़ी जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में महिला डॉक्टर, सर्जन समेत कई विभाग के डॉक्टर के पद खाली हैं. हालांकि इस अस्पताल परिसर में नर्स ट्रेनिंग स्कूल भी स्थापित की गई है, साथ ही कोरोना काल में मरीजों के लिए बने वार्ड में वातानुकूलित प्रसूति वार्ड संचालित होता है.

"अस्पताल की इमारतें अब जर्जर हो चुकी है. इसके अलावा रख-रखाव के अभाव में कई जगह से अस्पताल का प्लास्टर भी झड़ने लगा है. यहां हर दिन 200-250 मरीज इलाज कराने आते हैं, लेकिन डॉक्टर, सर्जन के पद खाली हैं. मरीजों को काफी परेशानी होती है."- साहेब हुसैन, स्थानीय

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल की हालत जर्जर

गोपालगंज: आज बिहार में कई अत्याधुनिक अस्पताल खुल गए हैं. लेकिन आज से करीब 120 साल पहले गोपालगंज जिले के हथुआ अनुमंडल में विक्टोरिया अस्पताल का निर्माण हुआ था. विक्टोरिया अस्पताल कभी बिहार के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में से एक था. इस अस्पताल में हरिवंश राय बच्चन ने अपनी पहली पत्नी का इलाज भी कराया था. लेकिन आज ये खंडहर में तब्दील हो गया है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
खंडहर में तब्दील हुआ अस्पताल

खंडहर में तब्दील हुआ अस्पताल: हथुआ अनुमंडलीय अस्पताल कभी बिहार के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में एक था. लेकिन बदलते समय के साथ इस अस्पताल की स्थिति भी बदलती गई. आलम यह है कि हथुआ राज की महारानी द्वारा बनाए गए इस अस्पताल में कई विभाग के डॉक्टर के अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर का घोर अभाव है. अस्पताल का भवन जर्जर होकर टूटने लगा है, जिसपर ही शासन-प्रशासन किसी की नजर नहीं है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
बाहर से भी अस्पताल का भवन जर्जर

अस्पताल में सुविधाओं की कमी: अब इस अस्पताल की स्थिति राम भरोसे है. इस अस्पताल में डॉक्टरों के साथ-साथ दवा और अस्पताल कर्मचारियों की भी भारी कमी है. बिल्डिंग और वार्ड की स्थिति जर्जर है. साथ ही विशेषज्ञ डॉक्टर नाम मात्र के हैं. ब्लड बैंक व एनेस्थेटिक के अभाव में परिवार नियोजन के अलावा और कोई ऑपरेशन इस अस्पताल में नहीं होता है. इसे अनुमंडलीय अस्पताल का दर्जा मिलने के बाद भी सुविधाएं नदारद हैं.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
अस्पताल की टूटी छत

तेजस्वी यादव के गृह जिले का है अस्पताल: यह अस्पताल मरीजों के लिए सभी सुविधाओं से लैस हुआ करता था. यहांं पुरुष व महिला वार्डों में 80-80 बेड थे. अपने विशेषज्ञ डॉक्टरों, बेहतर इलाज, प्रबंधन व साफ-सफाई को लेकर यह हॉस्पिटल काफी विख्यात था. बड़ी बात तो यह है कि यह बिहार के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव के गृह जिले का अस्पताल है. इसके बावजूद यह अस्पताल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
अस्पताल के रख-रखाव में घोर कमी

साल 1903 में अस्पताल का निर्माण: अस्पताल के निर्माण के पीछे की कहानी कुछ यूं है कि साल 1896 में हथुआ राज के तत्कालीन महाराजा सर कृष्ण प्रताप साही का निधन हो गया था. जिसके बाद उनकी पत्नी महारानी ज्ञानमंजरी कुंवर ने इस अस्पताल को वर्ष 1903 बनवाया था. इस अस्पताल का नाम महारानी रामदुलारी कुंवर अनुमंडलीय अस्पताल रखा गया. वहीं विक्टोरिया हॉस्पिटल के नाम से भी इसे जाना जाता है.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
महारानी रामदुलारी कुंवर अनुमंडलीय अस्पताल

विदेश से अस्पताल में आते थे डॉक्टर: उस वक्त 15 एकड़ में बने इस अस्पताल के निर्माण में 1 लाख 50 हजार रुपए खर्च हुए थे. हॉस्पिटल में टीबी, हैजा व घेघा रोगों के विख्यात डॉक्टर सेवा देते थे. टीवी व हैजा के लिए अलग-अलग वार्ड हुआ करते थे. विदेशों से भी डॉक्टर, मरीज को देखने के लिए आते थे. इस अस्पताल के अधीन भोरे, गोपालगंज, श्रीपुर, छपरा, रिविलगंज, सीतामढ़ी, सीवान, केसरिया, आरा, ढाका व जगदीशपुर में डिस्पेंसरी चलती थी.

हरिवंश राय बच्चन ने अस्पताल में कराया था पत्नी का इलाज: अस्पताल की खासियत इतनी थी कि प्रसिद्ध कवि व लेखक हरिवंश राय बच्चन अपनी पहली पत्नी श्यामा बच्चन के इलाज के लिए वर्ष 1936 में यहां आए थे. बताया जाता है कि उनकी पत्नी टीबी से पीड़ित थी. उन्हें लेकर वे विदेश से आने वाले एक बड़े डॉक्टर से दिखाने पीएमसीएच पटना गए थे. जहां उन्हें बताया गया कि उस डॉक्टर को हथुआ राज ने अपने अस्पताल में सेवा देने के लिए रख लिया है. इसके बाद हरिवंश राय बच्चन, पत्नी को लेकर हथुआ पहुंचे थे.

हथुआ विक्टोरिया हॉस्पिटल
ऑपरेशन थियेटर में सर्जरी की भी व्यवस्था नहीं

विक्टोरिया अस्पताल की विशेषता: इस अस्पताल की विशेषता यह है कि अस्पताल के भवन को अगर काफी ऊंचाई से देखा जाए, तो पूरे बिल्डिंग की आकृति अंग्रेजी का H अक्षर में दिखाई देगा. क्योंकि ऐसी मान्यता थी कि युद्ध के समय, दुश्मन सेना हॉस्पिटल पर हमला नहीं कर सकेंगे.

मरीजों को होती है परेशानी: बहरहाल हथुआ अनुमंडल की आबादी करीब सात से दस लाख बताई जाती है. घनी आबादी वाले इस अस्पताल में प्रतिदिन दो से ढाई सौ मरीज दस्तक देते हैं. इनमे महिलाएं और बच्चों की संख्या अधिक होती है. इतनी बड़ी जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में महिला डॉक्टर, सर्जन समेत कई विभाग के डॉक्टर के पद खाली हैं. हालांकि इस अस्पताल परिसर में नर्स ट्रेनिंग स्कूल भी स्थापित की गई है, साथ ही कोरोना काल में मरीजों के लिए बने वार्ड में वातानुकूलित प्रसूति वार्ड संचालित होता है.

"अस्पताल की इमारतें अब जर्जर हो चुकी है. इसके अलावा रख-रखाव के अभाव में कई जगह से अस्पताल का प्लास्टर भी झड़ने लगा है. यहां हर दिन 200-250 मरीज इलाज कराने आते हैं, लेकिन डॉक्टर, सर्जन के पद खाली हैं. मरीजों को काफी परेशानी होती है."- साहेब हुसैन, स्थानीय

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