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ज्ञानवापी प्रकरणः BHU पुरातात्व विभाग का दावा, छठवीं शताब्दी के हैं ASI सर्वे में मिले विग्रह और मंदिर के प्रमाण - ज्ञानवापी की पुरातात्विक रिपोर्ट

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मामले में एएसआई की सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है. व्यासजी के तहखाने में पूजा शुरू होने लगी है. ऐसे में अब वजूखाने में मौजूद कथित शिवलिंग की एएसआई जांच की मांग जोर पकड़ रही है. यहां जानिए ज्ञानवापी को लेकर हुई सर्वे रिपोर्ट पर पुरातात्विक इतिहासकारों की क्या राय है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 2, 2024, 6:52 PM IST

ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट पर देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

वाराणसी : वाराणसी स्थित ज्ञानवापी की एएसआई रिपोर्ट सामने आ चुकी है. इस रिपोर्ट के आने के बाद हिन्दू पक्ष जहां खुशी जाहिर कर रहा है. वहीं मुस्लिम पक्ष ने नाराजगी जाहिर की है. रिपोर्ट में हिन्दू मंदिर के होने के साक्ष्य मिले हैं. जिसके बाद अब वजूखाने में मौजूद कथित शिवलिंग की भी एएसआई जांच कराए जाने की मांग की जा रही है. ऐसे में इस रिपोर्ट के आने के बाद कई बातें निकलकर आ रही हैं. इन तथ्यों के पुरातात्विक इतिहासकार क्या कहते हैं और पुरातात्विक फैक्ट क्या कहते हैं? इसे भी जानना जरूरी है. इस संबंध में ईटीवी भारत ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पुरातात्विक विभाग के प्रोफेसर एके सिंह से बातचीत की.

वाराणसी में मंदिरों और शिवलिंग का इतिहास काफी पुरानाः प्रो. एके सिंह ने बताया कि अगर पत्थर के हिसाब से बात करें तो वह 8वीं शताब्दी का शिवलिंग हो सकता है. दूसरी ओर बनारस में मंदिरों और शिवलिंग का इतिहास काफी पुराना है. बनारस में लगभग 2300 साल पुराने मंदिरों का इतिहास मिलता है. यहां 2000 साल पुराने शिवलिंग और शिवमंदिर होने के साक्ष्य मिलते हैं. ऐसे में ज्ञानवापी को लेकर रिपोर्ट भी स्पष्ट कर रहे हैं कि वहां पर एक भव्य मंदिर था.

600 ईसवी के आसपास था भव्य मंदिरः प्रो. सिंह ने कहा कि एएसआई ने बहुत ही जल्दी अपनी रिपोर्ट दे दी है. एएसआई की रिपोर्ट आने के बाद यह पता चल रहा है कि उस स्थान पर एक भव्य मंदिर था. जहां पर मस्जिद का निर्माण किया गया है. इसका उल्लेख साहित्य में भी है. साक्ष्य के रूप में सर्वे की एक सीमा है. लेकिन सर्वे में जो चीजें मिली हैं, उसमें 32 अभिलेख भी हैं. जिनमें मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, सिक्के और कुछ अवशेष हैं. अगर उनको नक्शे में देखा जाए तो यह पता चलता है कि पुरातन काल से संबंधित हैं. लगभग 600 ईसवी के आसपास और उसके बाद वहां एक भव्य मंदिर का स्वरूप रहा है, जो प्रारंभिक मध्यकाल से संबंधित है.

खुदाई में मिले शिवलिंग और मंदिर के अवशेषः प्रोफेसर एके सिंह बताते हैं कि मूर्तियां, खंभे बाकी आर्किटेक्चर इस बात की स्पष्ट गवाही दे रहे हैं कि वहां एक बहुत ही भव्य मंदिर रहा होगा. उसके पहले की क्या स्थिति तो इसके बारे में अभी जांच बाकी है. विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओमकार नाथ सिंह के निर्देशन में बभनियांव का जब सर्वेक्षण शुरू किया गया तो 2020 से 2022 तक वह कार्य किया गया था. बहुत ही कठिन कार्य था. उस समय कोरोना महामारी फैली हुई थी. शिवजी की कृपा थी कि हम लोग उस काम को करने में सक्षम हुए. वहां पर हमें शिव मंदिर और शिवलिंग के अवशेष मिले जो, ईसवी सन के प्रारंभ से संबंधित हैं. लगभग 2000 साल पुराना शिवलिंग, जो काशी की सबसे प्राचीन शिवलिंग और शिवमंदिर है, जिसका प्रमाण इतिहास में मिलता है.

बनारस में 2000 साल पुराने शिवलिंग और मंदिर

प्रो. सिंह ने कहा कि 'हम लोगों का विचार था कि जब काशी और उसके आसपास के बाहर के गांव में 2000 साल पुराने शिवलिंग और शिवमंदिर हैं. वाराणसी में निश्चित रूप से उसके समकक्ष या उससे पुराना शिवलिंग या शिव मंदिर होना चाहिए. अब जबकि रिपोर्ट आ गई है, तो उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि अगर न्यायालय पुरातत्व विभाग को निर्देश देती है वहां उत्खनन करने के लिए तो निश्चित रूप से हमें पूरी संभावना है कि वहां से भी भव्य मंदिर और शिवलिंग मिलेगा. जो भी चीजें वहां निकलकर आएंगी वे तिथि के साथ आएंगी. जहां तक मंदिर स्थापत्य की बात है, मंदिर की जो परिकल्पना है वह 2000 साल के पहले शुरू होती है. बनारस में 2200-2300 वर्ष पूर्व मंदिर और शिखर की बात आती है. हो सकता है कि काशी का जो मंदिर का क्षेत्र है वह बहुत ही प्राचीन काशी का क्षेत्र है. खुदाई के आधार पर भी हम जानते हैं कि यहां का इतिहास 3500 साल पुराना है'.

ज्ञानवापी में हो सकता है 8वीं-9वीं शताब्दी का शिवलिंग: प्रोफेसर एके सिंह ने कहा कि 'ऐसा एक जीवंत शहर जो 3500 साल पुराना साक्ष्य छिपाए हुए है, तो वहां मंदिर का इतिहास भी हमारी समझ से काफी पुराना हो सकता है. अगर बात ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग की बात करें तो लोग उसे फव्वारा कह रहे हैं. उसे मैंने देखा नहीं है, लेकिन फोटो देखकर ऐसा महसूस किया है कि वह निश्चित रूप से शिवलिंग जैसा लग रहा है. उसे फव्वारे का रूप दिया गया है. ऊपर से सीमेंट वगैरह लगाकर ऐसा किया गया है. फोटो में देखने के आधार पर वह ब्लैक स्टोन नजर आ रहा है. ब्लैक स्टोन से 8वीं, 9वीं शताब्दी में मूर्तियां बनती थीं. उसी से शिवलिंग बनाए जाते थे. ऐसा लगता है कि वह शिवलिंग होना चाहिए, जो कि 8वीं, 9वीं शताब्दी से संबंधित है.

यह भी पढ़ें : ज्ञानवापी केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश: व्यासजी के तहखाने में जारी रहेगी पूजा, अगली सुनवाई 6 फरवरी को
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ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट पर देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

वाराणसी : वाराणसी स्थित ज्ञानवापी की एएसआई रिपोर्ट सामने आ चुकी है. इस रिपोर्ट के आने के बाद हिन्दू पक्ष जहां खुशी जाहिर कर रहा है. वहीं मुस्लिम पक्ष ने नाराजगी जाहिर की है. रिपोर्ट में हिन्दू मंदिर के होने के साक्ष्य मिले हैं. जिसके बाद अब वजूखाने में मौजूद कथित शिवलिंग की भी एएसआई जांच कराए जाने की मांग की जा रही है. ऐसे में इस रिपोर्ट के आने के बाद कई बातें निकलकर आ रही हैं. इन तथ्यों के पुरातात्विक इतिहासकार क्या कहते हैं और पुरातात्विक फैक्ट क्या कहते हैं? इसे भी जानना जरूरी है. इस संबंध में ईटीवी भारत ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पुरातात्विक विभाग के प्रोफेसर एके सिंह से बातचीत की.

वाराणसी में मंदिरों और शिवलिंग का इतिहास काफी पुरानाः प्रो. एके सिंह ने बताया कि अगर पत्थर के हिसाब से बात करें तो वह 8वीं शताब्दी का शिवलिंग हो सकता है. दूसरी ओर बनारस में मंदिरों और शिवलिंग का इतिहास काफी पुराना है. बनारस में लगभग 2300 साल पुराने मंदिरों का इतिहास मिलता है. यहां 2000 साल पुराने शिवलिंग और शिवमंदिर होने के साक्ष्य मिलते हैं. ऐसे में ज्ञानवापी को लेकर रिपोर्ट भी स्पष्ट कर रहे हैं कि वहां पर एक भव्य मंदिर था.

600 ईसवी के आसपास था भव्य मंदिरः प्रो. सिंह ने कहा कि एएसआई ने बहुत ही जल्दी अपनी रिपोर्ट दे दी है. एएसआई की रिपोर्ट आने के बाद यह पता चल रहा है कि उस स्थान पर एक भव्य मंदिर था. जहां पर मस्जिद का निर्माण किया गया है. इसका उल्लेख साहित्य में भी है. साक्ष्य के रूप में सर्वे की एक सीमा है. लेकिन सर्वे में जो चीजें मिली हैं, उसमें 32 अभिलेख भी हैं. जिनमें मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, सिक्के और कुछ अवशेष हैं. अगर उनको नक्शे में देखा जाए तो यह पता चलता है कि पुरातन काल से संबंधित हैं. लगभग 600 ईसवी के आसपास और उसके बाद वहां एक भव्य मंदिर का स्वरूप रहा है, जो प्रारंभिक मध्यकाल से संबंधित है.

खुदाई में मिले शिवलिंग और मंदिर के अवशेषः प्रोफेसर एके सिंह बताते हैं कि मूर्तियां, खंभे बाकी आर्किटेक्चर इस बात की स्पष्ट गवाही दे रहे हैं कि वहां एक बहुत ही भव्य मंदिर रहा होगा. उसके पहले की क्या स्थिति तो इसके बारे में अभी जांच बाकी है. विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओमकार नाथ सिंह के निर्देशन में बभनियांव का जब सर्वेक्षण शुरू किया गया तो 2020 से 2022 तक वह कार्य किया गया था. बहुत ही कठिन कार्य था. उस समय कोरोना महामारी फैली हुई थी. शिवजी की कृपा थी कि हम लोग उस काम को करने में सक्षम हुए. वहां पर हमें शिव मंदिर और शिवलिंग के अवशेष मिले जो, ईसवी सन के प्रारंभ से संबंधित हैं. लगभग 2000 साल पुराना शिवलिंग, जो काशी की सबसे प्राचीन शिवलिंग और शिवमंदिर है, जिसका प्रमाण इतिहास में मिलता है.

बनारस में 2000 साल पुराने शिवलिंग और मंदिर

प्रो. सिंह ने कहा कि 'हम लोगों का विचार था कि जब काशी और उसके आसपास के बाहर के गांव में 2000 साल पुराने शिवलिंग और शिवमंदिर हैं. वाराणसी में निश्चित रूप से उसके समकक्ष या उससे पुराना शिवलिंग या शिव मंदिर होना चाहिए. अब जबकि रिपोर्ट आ गई है, तो उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि अगर न्यायालय पुरातत्व विभाग को निर्देश देती है वहां उत्खनन करने के लिए तो निश्चित रूप से हमें पूरी संभावना है कि वहां से भी भव्य मंदिर और शिवलिंग मिलेगा. जो भी चीजें वहां निकलकर आएंगी वे तिथि के साथ आएंगी. जहां तक मंदिर स्थापत्य की बात है, मंदिर की जो परिकल्पना है वह 2000 साल के पहले शुरू होती है. बनारस में 2200-2300 वर्ष पूर्व मंदिर और शिखर की बात आती है. हो सकता है कि काशी का जो मंदिर का क्षेत्र है वह बहुत ही प्राचीन काशी का क्षेत्र है. खुदाई के आधार पर भी हम जानते हैं कि यहां का इतिहास 3500 साल पुराना है'.

ज्ञानवापी में हो सकता है 8वीं-9वीं शताब्दी का शिवलिंग: प्रोफेसर एके सिंह ने कहा कि 'ऐसा एक जीवंत शहर जो 3500 साल पुराना साक्ष्य छिपाए हुए है, तो वहां मंदिर का इतिहास भी हमारी समझ से काफी पुराना हो सकता है. अगर बात ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग की बात करें तो लोग उसे फव्वारा कह रहे हैं. उसे मैंने देखा नहीं है, लेकिन फोटो देखकर ऐसा महसूस किया है कि वह निश्चित रूप से शिवलिंग जैसा लग रहा है. उसे फव्वारे का रूप दिया गया है. ऊपर से सीमेंट वगैरह लगाकर ऐसा किया गया है. फोटो में देखने के आधार पर वह ब्लैक स्टोन नजर आ रहा है. ब्लैक स्टोन से 8वीं, 9वीं शताब्दी में मूर्तियां बनती थीं. उसी से शिवलिंग बनाए जाते थे. ऐसा लगता है कि वह शिवलिंग होना चाहिए, जो कि 8वीं, 9वीं शताब्दी से संबंधित है.

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