ग्वालियर : मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले के बाद न जाने कितने ही ऐसे घोटाले उजागर हुए हैं जिनमें फर्जी तरीके से सरकारी पदों पर भर्तियाें के आरोप लगे. लेकिन मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अब एक ऐसा मामला पहुंचा है, जिसने सभी को चौंका दिया है. यह मामला परिवहन आरक्षकों की भर्ती से जुड़ा हुआ है लेकिन इन आरक्षकों की नौकरियां अब दांव पर है और उच्च न्यायालय ने इसका जवाब शासन से मांगा है.
साल 2012 में आयोजित हुई थी भर्ती परीक्षा
मध्य प्रदेश के परिवहन विभाग ने 2012 में परिवहन आरक्षक के 332 पद के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित की थी और परीक्षा के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर भी विभाग ने पुरुषों को नियुक्त कर दिया गया. मामले ने तूल पकड़ा और भर्ती पर सवाल खड़े होना शुरू हो गए. जिसके बाद परिवहन विभाग ने स्पष्टीकरण देते हुए तर्क दिया कि इस भर्ती में 109 पद महिलाओं के लिए आरक्षित रखे गए थे लेकिन भर्ती के समय मात्र 53 महिलाएं ही पात्र मिलीं. इसलिए रिक्त 56 पदों पर पुरुषों को नियुक्ति कर दी गई.
महिला अभ्यर्थी ने दी थी हाईकोर्ट में चुनौती
परिवहन विभाग के इस जवाब से कई अभ्यर्थी संतुष्ट नहीं थे और इनमें से एक महिला अभ्यार्थी हिमाद्री राजे ने परिवहन विभाग के फैसले को जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. जिस पर सुनवाई हुई और शासन अपना पक्ष रखने में भी कमजोर पड़ा क्योंकि इस भर्ती में शासन द्वारा हलफनामा पेश करते हुए 317 पदों पर अभ्यर्थियों के चयन और 17 चयनित अभ्यर्थियों द्वारा जॉइनिंग ना लेने की बात कही गई थी. इसके बाद साल 2015 में उच्च न्यायालय ने महिलाओं के स्थान पर पुरुषों की भर्ती को निरस्त करने के आदेश जारी कर दिए. हाइकोर्ट के इस फैसले को कुछ समय बाद ही शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है लेकिन वहां भी कोई राहत नहीं मिली.
तीन आरक्षकों ने बर्खास्तगी पर स्टे लेने लगाई याचिका
लगातार कोर्ट प्रोसीडिंग के चलते यह मामला हाइलाइट रहा है और अब परिवहन आरक्षक अनुराग सिंह समेत परिवहन विभाग के तीन आरक्षकों ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लेने के लिए अब हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में याचिका लगाई है, जिसमें ये पक्ष रखा गया है हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में उनके साथ कुल 45 परिवहन आरक्षकों को बर्खास्त करने के आदेश दिए हैं. जिसके आधार पर विभाग उनकी सेवा बर्खास्त करने पर विचार कर रहा है लेकिन लगभग 10 वर्षों से अधिक समय उन्हें मध्य प्रदेश शासन के परिवहन विभाग में सेवा करते हुए बीत चुका है. ऐसे में उन्हें सुनवाई का मौका दिए बिना कोई कार्रवाई न पारित की जाए.
Read more - विवेक तंखा मानहानि मामले में हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित, जमानती वारंट को कपिल सिब्बल ने दी चुनौती |
उच्च न्यायालय ने शासन को दिया दो हफ्ते का अल्टीमेटम
इस याचिका के खिलाफ शासन का पक्ष रखने वाले सरकारी वकील ने उच्च न्यायालय में यह तर्क दिया है कि याचिकाकर्ता द्वारा लगाई गई अपील का अभी अस्तित्व नहीं है क्योंकि अब तक शासन की और से फरियादी आरक्षकों की बर्खास्तगी का कोई आदेश जारी नहीं किया गया है. ऐसे में फिलहाल सेवा बर्खास्तगी पर स्टे लेने की याचिका का कोई अर्थ नहीं है. हालांकि, उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में तीनों फरियादी आरक्षकों को याचिका के अनुसार स्टे नहीं दिया है. लेकिन शासन को दो हफ्ते में जवाब देने का नोटिस जरूर जारी किया गया है.