ग्वालियर: सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी पुणे में इकोनॉमिक्स ऑनर्स के छात्र 20 वर्षीय मुदित सोलापुरकर को कुछ दिन पहले पता चला कि उनके पिता गंभीर रूप से बीमार हैं. डॉक्टर्स ने बताया कि उनका लिवर बुरी तरह डैमेज है, जिसे तुरंत ट्रांसप्लांट करने की जरूरत है. इसके बाद मुदित ने जो फैसला लिया, वो चौंकाने वाला था.
जीवन देने वाले पिता को नया जीवन
मुदित के पिता मधु सोलापुरकर वर्तमान में ग्वालियर जनसंपर्क विभाग में उपनिदेशक के पद पर पदस्थ हैं, जो लिवर की बीमारी से जूझ रहे थे. दिल्ली के एक निजी अस्पताल में भर्ती होने के बाद जब मधु सोलापुरकर की स्थिति डॉक्टर्स ने देखी तो उनका जीवन बचाने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी. मधु सोलापुरकर की पत्नी मानसी और बड़े बेटे मानस के साथ परिवार के अन्य लोगों का ट्रांसप्लांट करने के लिए चेकअप कराया गया, तो सभी इसके लिए असंगत मिले लेकिन उनके छोटे बेटे मुदित सोलापुरकर की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. जिसका मतलब था, वह अपने लिवर का एक हिस्सा अपने पिता को डोनेट कर सकते थे. मुदित ने बिना देर किए इसके लिए हामी भर दी और पिता को एक नया जीवन दिया.
जीते जी चुका दिया बेटे ने अपना कर्ज
मधु सोलापुरकर का डॉक्टरों की देखरेख में एक सफल ऑपरेशन हो चुका है. वे अब रिकवरी में हैं और अगले 3 महीने तक अस्पताल में ही रहेंगे. मधु सोलापुरकर कहते हैं कि उनके बेटे ने उन्हें नया जीवन दिया है. एक पिता अपने बेटे को इस दुनिया में लेकर आता है. उसे जीवन देता है लेकिन आज मुदित ने उन्हें नया जीवन देकर वह कर्ज उतार दिया है. उन्हें अपनी परवरिश और बेटे पर गर्व है.
छोटी सी उम्र में उठाया प्रेरणादायक कदम
मुदित अभी एक कॉलेज छात्र हैं, एक लंबा जीवन उनके आगे है और इस छोटी सी उम्र में अपने पिता का जीवन बचाने के लिए उठाया गया कदम वाकई प्रेरणादाई है. इस बारे में बात करने पर मुदित कहते हैं, " पिता के जीवन से बढ़कर कुछ नहीं है. पिता जीवन की छत हैं, अगर उनका साया न रहे तो दुनिया में आने का क्या फायदा. एसएमएस ऑर्गन डोनेशन के लिए ज्यादा सोचने समझने की जरूरत ही नहीं थी."
' जॉय ऑफ गिविंग ' से प्रेरित हुए थे मुदित
मुदित ने बातचीत के दौरान बताया कि उनकी इस निस्वार्थ भावना के पीछे उनके माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार और 'जॉय ऑफ गिविंग' की अवधारणा है, जिसे उन्होंने अपने स्कूली जीवन से ही अपनाया था. वे सरकार द्वारा शुरू किए गए आनंदम विभाग के बाल आनंदक वालंटियर ग्रुप का भी हिस्सा रहे. तभी से निस्वार्थ रहकर दूसरों की मदद करने की प्रेरणा उन्हें मिली थी. जिस तरह बाल आनंदक के वालंटियर खुशियां बांटने के लिए जरूरतमंद लोगों की मदद के प्रयास करते थे, उसे देखकर मुदित को भी एक दिशा मिली थी और वह तभी से समाज के लिए कुछ बेहतर करना चाहते थे, जिससे उनके जीवन में भी खुशियां आएं.
'पापा का बीमारी से उबरना सबसे बड़ा रिवॉर्ड'
मुदित सोलापुरकर आखिर में कहते हैं कि जीवन में रिश्तों से बढ़कर कोई नहीं होता और अब जब उनके पिता का सफल ऑपरेशन हो चुका है और वह लगातार उन्हें पहले से बेहतर होता देख रहे हैं तो यही उनके जीवन के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है.