ग्वालियर: साल 1857 की क्रांति के बारे में ज्यादातर लोगों ने पढ़ा है, लेकिन धीरे धीरे आजादी की पहली चिंगारी सिर्फ किताबों तक सिमट कर रह गई है. आज के कई युवा उस इतिहास से अनजान हैं, उन 8 लाख शहीदों की कुर्बानी को भुलाते जा रहे हैं. जिन्होंने अपने प्राण देश में आजादी की अलख जगाने के लिए न्योछावर कर दिए. लेकिन अब उस क्रांति की याद दिलाने का जिम्मा एनसीसी के ब्रिगेडियर और उनके 14 कैडेट्स ने उठाया है. ये लोग साइकिल यात्रा के जरिए उन सभी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं, जहां से 1857 की क्रांति का आगाज हुआ था.
मेरठ से की थी यात्रा की शुरुआत
1 जनवरी 2025 को मेरठ से एनसीसी कैडेट्स का एक दल साइकिल यात्रा पर रवाना हुआ है. जिसे लीड कर रहे हैं एनसीसी के ब्रिगेडियर नरेंद्र चारग, इस दल में 5 बालिका और 9 बालक कैडेट्स शामिल हैं. यह दल हर रोज करीब 115 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करता है. ब्रिगेडियर और उनके कैडेट्स उन सभी स्थानों पर पहुंच रहे हैं, जिनका 1857 की क्रांति का संबंध है. इस साइकिल यात्रा को नाम दिया गया है 'समर से समृद्धि की ओर'.
ग्वालियर में हुआ स्वागत
यह यात्रा शुक्रवार को ग्वालियर पहुंची, जहां आर्मी कैंट एरिया में कमांडेंट एनसीसी ओटीए जितेन्द्र शर्मा और ग्रुप कमाडर बिग्रेडियर केडीएस झाला के साथ सभी सैन्य अधिकारी और एएनओ, एनसीसी कैडेट ने एनसीसी की इस संग्राम 1857 साइक्लोथॉन समर से समृद्धि की ओर का स्वागत किया. इस दौरान सेना के भी तमाम अफसर मौजूद रहे. जिनके बीच टीम कैडेट्स ने 1857 की क्रांति को लेकर एक प्रस्तुति भी दी.
साइकिल यात्रा के जरिए श्रद्धांजलि
साइकिल यात्रा में शामिल साइकिलिस्ट एनसीसी की सीनियर अंडर ऑफिसर तान्या कहती हैं कि "यह साइकिल यात्रा उत्तर प्रदेश एनसीसी निदेशालय द्वारा आयोजित करायी गई है, जो की 2025 किलोमीटर की यात्रा करेगी. मेरठ से शुरू हुई इस यात्रा में सभी साइकिलिस्ट 1857 की क्रांति के सभी फ्लैश प्वाइंट्स तक जा रहे हैं. वहां उन परिवारों से मिल रहे हैं, जिन्होंने उस क्रांति में हिस्सा लिया. साथ ही उन शहीदों को श्रद्धांजलि भी अर्पित कर रहे हैं."
एमपी-यूपी-दिल्ली के युद्ध क्षेत्र पहुंच रहा दल
यह साइकिल यात्रा मुरादाबाद, हरदोई, बरेली, अवध (लखनऊ), प्रयागराज होते हुए वाराणासी, इलाहबाद, कानपुर झांसी से ग्वालियर पहुंची है. यहां से आगे आगरा, मथुरा होते हुए दिल्ली जाएगी. इस दौरान यह साइकिल यात्रा उन सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर पहुंचेगी, जो 1857 की क्रांति के प्रमुख युद्ध क्षेत्र रहे थे.
युद्ध नहीं बलिदान याद दिला रहे एनसीसी कैडेट्स
सीनियर अंडर ऑफिसर तान्या कहती हैं कि "इस यात्रा के जरिए लोगों तक संदेश पहुंचाया जा रहा है कि हमने हमारे पूर्वजों के बलिदान को भुला दिया है. हमें उस युद्ध को याद करने की क्या जरूरत है, हम बलिदान को याद करें, एक जुट रहें, जातिवाद, धार्मिक आधार पर जो भेदभाव हैं. उन्हें भूल जायें क्योंकि इतिहास में आजादी के लिए जो कीमत चुकाई गई, वह इससे बढ़कर थी. हर जाति हर धर्म के लोगों ने एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी थी और आजाद भारत बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी."
रोज करीब 115 किमी सफर
इस यात्रा में साइक्लिस्ट प्रतिदिन लगभग 113-115 किलोमीटर तक की यात्रा करते हैं. शुरुआती दौर में मानसिक और शारीरिक रूप से कुछ परेशानियां हुई, लेकिन जैसे जैसे आगे बढ़े इरादों में मजबूती आयी और अब 100 किलोमीटर की यात्रा तो आसानी से हंसते खेलते तय हो जाती है. अलग अलग जगहों से होने के कारण शुरू में एक दूसरे को सिर्फ नाम से जानते थे, लेकिन अब सभी साथी परिवार की तरह हो गए हैं.
प्रधानमंत्री से होगी मुलाकात
साइकिलिस्ट कैडेट्स का मानना है कि "यह यात्रा उनके लिए जीवन भर की याद बन गई है. खासकर इसका समापन दिल्ली में होगा. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे फ्लैग इन कराएंगे और सभी साइकिलिस्ट से मुलाकात करेंगे. पीएम से मुलाक़ात का मौका हर किसी के जीवन में नहीं आता, इसलिए दल के सभी लोग खुद को खुशनसीब मानते हैं."
पहले हुआ था 'नारी शक्ति का अभेद्य सफ़र'
ब्रिगेडियर चारग ने बताया कि "यह तीसरी यात्रा है, जिसे वे लेकर आगे बढ़ रहे हैं. इससे पहले एक यात्रा कन्याकुमारी से दिल्ली तक कर चुके हैं. वह यात्रा 3666 किलोमीटर की साइकिल यात्रा थी, जिसमें सिर्फ 14 गर्ल कैडेट्स थीं. उसे नाम दिया था महिला शक्ति का अभेद्य सफर. इससे पहले एक मोटरसाइकिल यात्रा दांडी से लेकर दिल्ली तक की थी."
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मौसम से ज्यादा परेशानी लोगों की मानसिकता से हुई
यात्रा के लीडर ब्रिगेडियर नरेंद्र चारग कहते हैं, "बच्चों के लिए तो इस यात्रा में मौसम और फिजिकल हार्डशिप जैसी मुश्किलें रहीं, लेकिन उनके लिए बड़ी परेशानी इन बच्चियों के माता पिता की मानसिकता रही. क्योंकि लड़कियों के पिता भाई बच्चियों को बाहर जाने देने के लिए तैयार नहीं हैं. असलियत यह है कि बच्चियां हमारी सक्षम हैं, लेकिन जो कमजोर हैं वह है हमारे यहां के पुरुषों की मानसिकता."