ग्वालियर। होली के त्योहार का इंतजार तो सभी को रहता है. रंगों से सराबोर होने वाला यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और दिल जोड़ने वाला त्योहार माना जाता है. जिस तरह भक्त प्रहलाद की भक्ति की वजह से न जलने के लिए वरदान के बावजूद होलिका खुद बा खुद जल कर खाक हो गई थी. उसी परंपरा को निभाते हुए हजारों वर्षों से हर घर में होलिका दहन भी किया जाता है. इसी परंपरा को निभाते हुए ग्वालियर के सर्राफा बाजार में व्यापारी वर्ग एक बार फिर होलिका दहन की तैयारियां पूरी कर चुका है.
होली तैयार करने में हुआ 25 हजार कंडों का उपयोग
खास बात यह है कि सर्राफा बाजार में लगने वाली होली अंचल की सबसे बड़ी होली मानी जाती है. आज जब होलिका दहन होगा, तो सर्राफा की होली भी देखने लायक होगी. इस इस होली को तैयार कराने वाले व्यापारी समिति के सदस्यों ने बताया कि इस बार सर्राफा बाजार में लगाई गई होली में करीब 25 हजार गोबर के कंडों का उपयोग किया गया है. जिसे बनकर तैयार होने में करीब आठ घंटे का समय लगा है.
70 सालों से चंदा इक्कठा कर तैयार होती है होली
व्यापारियों ने बताया कि पिछले 70 सालों से प्रतिवर्ष इसी तरह सर्राफा में यह होली जलती आ रही है. इस वर्ष भी रात करीब साढ़े ग्यारह बजे मुहूर्त के अनुसार होलिका दहन किया जाएगा. उन्होंने बताया कि हर बार इस होली को तैयार करने के लिए चंदा इकट्ठा किया जाता है. इस साल लगायी गई होली को बनाने में करीब डेढ़ लाख रुपए का खर्च आया है. इसे रंग-बिरंगे रंगों से भी सजाया गया है.
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पेड़ ना काटना पड़े इसलिए कंडों से तैयार होती है होली
इस तरह सिर्फ गोबर के कंडों से होली तैयार कराने की वजह पूछने पर बताया गया कि जिस तरह लोग होलिका दहन के लिए लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं. जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि इतनी बड़ी होली के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग करना पड़ता है. ऐसे में पेड़ काटने की बजाय विकल्प के रूप में सर्राफ़ा की होली गोबर के कंडों से तैयार की जाती है. इस तरह वे दूसरे लोगों को भी ये संदेश देना चाहते हैं. यहां पर्यावरण बचाने के लिए पेड़ों को भी बचाना है और होलिका दहन के लिए लकड़ी की जगह दूसरे विकल्पों का उपयोग करना है. जिससे हमारा त्योहार भी पारंपरिक रूप से मनाया जा सके और पर्यावरण को भी कोई नुकसान ना पहुंचे.