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जानिए गुइलेन बैरे सिंड्रोम के क्या हैं लक्षण और कैसे बरतें सावधानी, रिम्स निदेशक ने दी खास जानकारी - GUILLAIN BARRE SYNDROME

गुइलेन बैरे सिंड्रोम को लेकर रिम्स निदेशक ने विस्तार से जानकारी दी है. उन्होंने जीबीएस के लक्षण, बचाव और पहचान के बारे में बताया है.

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रिम्स निदेशक डॉ राज कुमार (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 1, 2025, 12:19 PM IST

रांची: राजधानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती साढ़े पांच साल की बच्ची में गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी की पहचान होने के बाद झारखंड सरकार भी अलर्ट मोड में आ गई है. मुख्यमंत्री ने खुद वरीय पदाधिकारियों के साथ इस बीमारी की रोकथाम के लिए की जा रही तैयारियों की समीक्षा की है.

इस बीच रिम्स के निदेशक और प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ राज कुमार ने विस्तार से इस बीमारी के बारे में न सिर्फ बताया है बल्कि इससे बचाव के उपाय भी बताए हैं. उन्होंने कहा कि 'जीबीएस' न तो कोई नई बीमारी है और न ही यह कोरोना की तरह संक्रमण से होती है.

जानकारी देते रिम्स निदेशक (ETV BHARAT)

1916 में ही जीबीएस बीमारी की हुई थी पहचान

न्यूरोसर्जन डॉ राजकुमार ने कहा कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी कोई नई बीमारी नहीं है. वर्ष 1916 में ही इस बीमारी की पहचान हुई थी. ऐसी बीमारी हमेशा होती रहती है, जो कोरोना की तरह बिल्कुल नहीं है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और गुजरात में जिस तरह से बीमारी से लोग ग्रसित हो रहे हैं, वैसी स्थिति झारखंड की नहीं होने की पूरी संभावना है, क्योंकि यहां का क्लाइमेट महाराष्ट्र, गुजरात से अलग है.

जीबीएस के क्या हैं लक्षण

न्यूरोसर्जन ने बताया कि अगर गैस्ट्रोएंटेराइटिस यानी पेट दर्द और डायरिया के 10 दिन या दो सप्ताह बाद पैरों में कमजोरी, दर्द महसूस होने और यह कमजोरी धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़कर हाथों तक पहुंच जाए तो यह गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का लक्षण हो सकता है. धीरे धीरे यह चेहरे और आंखों को भी पैरालाइज कर देता है. इस बीमारी में मरीज को निगलने में भी दिक्कत महसूस होती है.

इन लोगों में बीमारी से ग्रसित होने का ज्यादा खतरा

रिम्स निदेशक ने कहा कि यह बीमारी किस वजह से होती है, इसका कारण अज्ञात है लेकिन वैसे लोगों में यह बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है, जो रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन, लंबे दिनों से स्टेरॉयड पर हो, एंटी कैंसर की दवा ले रहे हों, जिनका ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो और वह इम्यूनो कॉम्प्रोमाइज हैं, वैसे लोगों में इस बीमारी के होने की संभावना बढ़ जाती है.

पेरिफेरल ऑटो इम्यूनो डिजीज है जीबीएस

न्यूरोसर्जन डॉ राजकुमार ने बताया कि जीबीएस होने की आशंका वैसे भी मरीज में बढ़ जाती है जो किसी वायरल, बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल बीमारी से ग्रसित हों. उन्होंने कहा कि वैसे तो गुइलेन बैरे सिंड्रोम (GBS) बीमारी एक ऑटो इम्यूनो डिजीज है यानी एक ऐसी बीमारी जिसमें शरीर की अपनी प्रतिरक्षण क्षमता, अपने ही शरीर के किसी अंग के खिलाफ काम करने लगे तो उसे ऑटो इम्यूनो डिजीज कहते हैं. डॉ राजकुमार ने बताया कि जीबीएस एक पेरिफेरल ऑटो इम्यून डिजीज है. यह हमारे ब्रेन के पास के नर्वस सिस्टम के किनारे से शुरू होती है.

रिम्स निदेशक ने कहा कि हमारे शरीर में मस्तिष्क से 12 जोड़ी तंत्रिकाएं और रीढ़ की हड्डी से 31 जोड़ी तंत्रिकाएं निकलती हैं, जो पूरे शरीर को ताकत देने का काम करती है. इसमें सूजन आने से जीबीएस की शुरुआत होती है. उन्होंने कहा कि जीबीएस जैसी करीब 20 बीमारियां होती हैं, लेकिन सबको गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी नहीं कहा जा सकता है. इस बीमारी की पहचान करने वाला सही व्यक्ति न्यूरोलॉजिस्ट ही है. योग्य न्यूरोसर्जन, फिजिशियन, पीडियाट्रिक भी इस रोग की पहचान कर सकता है. उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो क्लीनिकल प्रोफाइल से ही बीमारी की पहचान होती है.

बीमारी के प्रति सजग रहें और सावधानी बरतें

रिम्स निदेशक ने गुइलेन बैरे सिंड्रोम बीमारी को लेकर राज्य के लोगों से पैनिक नहीं होने की अपील की है. उन्होंने कहा कि साफ सफाई बरतें, मिलावटी और गंदे खाद्य पदार्थ, गंदे पानी से परहेज करें. गर्म भोजन करें, घर का और हाइजेनिक भोजन करें, साफ पानी पिये, थोड़ा सा गर्मी महसूस होने पर तुरंत गर्म कपड़े न उतारें, इससे शरीर में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. अगर पैरों में दर्द और कमजोरी महसूस हो और वह दर्द ऊपर की ओर बढ़ता जाए तो तुरंत डॉक्टर्स की सलाह लें.

राज्य के सभी सिविज सर्जनों से अपील

रिम्स निदेशक ने कहा कि रिम्स जीबीएस बीमारी से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है. राज्य के सभी जिलों के सिविल सर्जन अपने स्तर से इस बीमारी से निपटने की तैयारी कर रखे हैं. फिर भी उन लोगों से अपील होगी कि यदि किसी भी जिले में जीबीएस का संकमित मरीज मिलें तो तत्काल उन्हें रिम्स रेफर करें.

ये भी पढ़ें: रांची में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम ने दी दस्तक, वेंटिलेटर पर बच्ची, डॉक्टर बोले- लक्षण दिखते ही पहुंचें अस्पताल

गुइलेन बैरे सिंड्रोम की रोकथाम के लिए झारखंड सरकार अलर्ट, सीएम ने की समीक्षा

रांची: राजधानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती साढ़े पांच साल की बच्ची में गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी की पहचान होने के बाद झारखंड सरकार भी अलर्ट मोड में आ गई है. मुख्यमंत्री ने खुद वरीय पदाधिकारियों के साथ इस बीमारी की रोकथाम के लिए की जा रही तैयारियों की समीक्षा की है.

इस बीच रिम्स के निदेशक और प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ राज कुमार ने विस्तार से इस बीमारी के बारे में न सिर्फ बताया है बल्कि इससे बचाव के उपाय भी बताए हैं. उन्होंने कहा कि 'जीबीएस' न तो कोई नई बीमारी है और न ही यह कोरोना की तरह संक्रमण से होती है.

जानकारी देते रिम्स निदेशक (ETV BHARAT)

1916 में ही जीबीएस बीमारी की हुई थी पहचान

न्यूरोसर्जन डॉ राजकुमार ने कहा कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी कोई नई बीमारी नहीं है. वर्ष 1916 में ही इस बीमारी की पहचान हुई थी. ऐसी बीमारी हमेशा होती रहती है, जो कोरोना की तरह बिल्कुल नहीं है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और गुजरात में जिस तरह से बीमारी से लोग ग्रसित हो रहे हैं, वैसी स्थिति झारखंड की नहीं होने की पूरी संभावना है, क्योंकि यहां का क्लाइमेट महाराष्ट्र, गुजरात से अलग है.

जीबीएस के क्या हैं लक्षण

न्यूरोसर्जन ने बताया कि अगर गैस्ट्रोएंटेराइटिस यानी पेट दर्द और डायरिया के 10 दिन या दो सप्ताह बाद पैरों में कमजोरी, दर्द महसूस होने और यह कमजोरी धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़कर हाथों तक पहुंच जाए तो यह गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का लक्षण हो सकता है. धीरे धीरे यह चेहरे और आंखों को भी पैरालाइज कर देता है. इस बीमारी में मरीज को निगलने में भी दिक्कत महसूस होती है.

इन लोगों में बीमारी से ग्रसित होने का ज्यादा खतरा

रिम्स निदेशक ने कहा कि यह बीमारी किस वजह से होती है, इसका कारण अज्ञात है लेकिन वैसे लोगों में यह बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है, जो रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन, लंबे दिनों से स्टेरॉयड पर हो, एंटी कैंसर की दवा ले रहे हों, जिनका ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो और वह इम्यूनो कॉम्प्रोमाइज हैं, वैसे लोगों में इस बीमारी के होने की संभावना बढ़ जाती है.

पेरिफेरल ऑटो इम्यूनो डिजीज है जीबीएस

न्यूरोसर्जन डॉ राजकुमार ने बताया कि जीबीएस होने की आशंका वैसे भी मरीज में बढ़ जाती है जो किसी वायरल, बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल बीमारी से ग्रसित हों. उन्होंने कहा कि वैसे तो गुइलेन बैरे सिंड्रोम (GBS) बीमारी एक ऑटो इम्यूनो डिजीज है यानी एक ऐसी बीमारी जिसमें शरीर की अपनी प्रतिरक्षण क्षमता, अपने ही शरीर के किसी अंग के खिलाफ काम करने लगे तो उसे ऑटो इम्यूनो डिजीज कहते हैं. डॉ राजकुमार ने बताया कि जीबीएस एक पेरिफेरल ऑटो इम्यून डिजीज है. यह हमारे ब्रेन के पास के नर्वस सिस्टम के किनारे से शुरू होती है.

रिम्स निदेशक ने कहा कि हमारे शरीर में मस्तिष्क से 12 जोड़ी तंत्रिकाएं और रीढ़ की हड्डी से 31 जोड़ी तंत्रिकाएं निकलती हैं, जो पूरे शरीर को ताकत देने का काम करती है. इसमें सूजन आने से जीबीएस की शुरुआत होती है. उन्होंने कहा कि जीबीएस जैसी करीब 20 बीमारियां होती हैं, लेकिन सबको गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) बीमारी नहीं कहा जा सकता है. इस बीमारी की पहचान करने वाला सही व्यक्ति न्यूरोलॉजिस्ट ही है. योग्य न्यूरोसर्जन, फिजिशियन, पीडियाट्रिक भी इस रोग की पहचान कर सकता है. उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो क्लीनिकल प्रोफाइल से ही बीमारी की पहचान होती है.

बीमारी के प्रति सजग रहें और सावधानी बरतें

रिम्स निदेशक ने गुइलेन बैरे सिंड्रोम बीमारी को लेकर राज्य के लोगों से पैनिक नहीं होने की अपील की है. उन्होंने कहा कि साफ सफाई बरतें, मिलावटी और गंदे खाद्य पदार्थ, गंदे पानी से परहेज करें. गर्म भोजन करें, घर का और हाइजेनिक भोजन करें, साफ पानी पिये, थोड़ा सा गर्मी महसूस होने पर तुरंत गर्म कपड़े न उतारें, इससे शरीर में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. अगर पैरों में दर्द और कमजोरी महसूस हो और वह दर्द ऊपर की ओर बढ़ता जाए तो तुरंत डॉक्टर्स की सलाह लें.

राज्य के सभी सिविज सर्जनों से अपील

रिम्स निदेशक ने कहा कि रिम्स जीबीएस बीमारी से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है. राज्य के सभी जिलों के सिविल सर्जन अपने स्तर से इस बीमारी से निपटने की तैयारी कर रखे हैं. फिर भी उन लोगों से अपील होगी कि यदि किसी भी जिले में जीबीएस का संकमित मरीज मिलें तो तत्काल उन्हें रिम्स रेफर करें.

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