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कांकेर में स्कूलों की दयनीय स्थिति, झोपड़ी में बच्चों की पढ़ाई, बारिश गिरने पर स्कूल करना पड़ता है बंद - Kanker School Condition

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 29, 2024, 5:56 PM IST

Updated : 10 hours ago

Education in Gotul, Gotul In Naxal Effected Chhattisgarh छत्तीसगढ़ में स्कूल शुरू हो चुके हैं. नए सत्र को लेकर बच्चे उत्साहित है. लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति इस सत्र से पहले भी नहीं सुधरी. जर्जर स्कूल भवन अब भी जर्जर बने हुए हैं. जिससे गोटुल में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. गोटुल में शिक्षा की ग्राउंड रिपोर्ट देखने ETV भारत कांकेर जिला मुख्यालय से 40 से 45 किलोमीटर दूर पहुंचा और बच्चों के शिक्षा के मंदिर का जायजा लिया.

EDUCATION IN NAXAL AFFECTED CG
गोटुल में पढ़ाई (ETV Bharat GFX)

कांकेर: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले में अभी भी 44 स्कूलों के पास खुद का भवन नहीं है. 146 स्कूल भवन जर्जर हालत में है. जहां बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है. आलम ये है स्कूली बच्चे कभी गोटुल में कभी टीचर के घर में पढ़ने को मजबूर है. ETV भारत आमाबेड़ा के ऊपरकामता और हिरनपाल गांव पहुंचा. जहां ना तो बिजली है ना ही सड़क. स्कूल के नाम पर एक पुराना जर्जर भवन हैं. जिसे किसी भी हादसे की आशंका को देखते हुए बंद कर दिया गया है. फिलहाल इन दोनों गांवों में गोटुल में ही बच्चों की पढ़ाई हो रही है.

गोटुल में पढ़ाई (ETV Bharat)

ऊपरकामता गांव में गोटुल में बने स्कूल की तस्वीर: नक्सल प्रभावित क्षेत्र आमाबेड़ा के ऊपरकामता गांव के 30 बच्चे पढ़ाई करते हैं. लेकिन स्कूल का भवन नहीं है. पुराना स्कूल भवन 6 साल पहले जर्जर हो चुका है. छतों से सरिया निकल चुका है. गांव वालों ने कई बार जिम्मेदार अधिकारियों से स्कूल भवन की मांग की लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिसके बाद गांव वालों की सहमति से टीचर अब गोटुल में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. बांस, बल्लियों, खपरैल और मिट्टी से बना एक कमरा है. जिसे स्थानीय भाषा में गोटुल कहा जाता है. कमरे का दरवाजा भी कुछ बल्लियों से बनाया गया है. ऊपर छत से आने वाली रोशनी ही पढ़ने वाले बच्चों के लिए लाइट का काम करती है. जमीन पर चटाई बिछी हुई है. जहां बैठकर बच्चे किताबों के चित्र देख रहे हैं.

kanker education system ground report
कांकेर में स्कूल भवन पूरी तरह जर्जर (ETV Bharat Chhattisgarh)

सालों से गोटुल में ही स्कूल: ऊपरकामता गांव में शिक्षा व्यवस्था की हकीकत जानने के बाद ETV भारत वहां से 7 किलोमीटर दूर जंगल और पगड़ंडी के रास्ते हिरनपाल गांव पहुंचा. हिरनपाल गांव नक्सलियों का मजबूत गढ़ माना जाता है. जानकर हैरानी होगी कि आदिवासियों के सांस्कृतिक केंद्र गोटुल में पिछले 8 साल से स्कूल चल रहा है. यहां के गोटूल का भी वहीं हाल है. कच्चे खपरैल के गोटुल भवन में बच्चे अपना भविष्य गढ़ रहे हैं. जहां बारिश के दिनों में छत से पानी टपकने के दौरान स्कूल बंद ही रहते हैं.

education in Gotul
गोटुल में बच्चों की पढ़ाई (ETV Bharat Chhattisgarh)

हिरनपाल गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी युवती लक्ष्मी मंडावी है. जो इस साल बीएससी फाइनल की पढ़ाई कर रही है. ETV भारत से बात करते हुए लक्ष्मी ने बताया-" मेरा प्राथमिक शिक्षा गांव से 7 किलोमीटर दूर सोढे गांव में हुई. 6वीं क्लास से 15 किलोमीटर दूर आमाबेड़ा में पढ़ाई की फिर आगे की पढ़ाई कांकेर में की." अपने गांव में स्कूल नहीं होने को लेकर लक्ष्मी काफी दुखी है. ETV भारत के जरिए लक्ष्मी ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से अपील भी की.-

गोटुल में बच्चों की पढ़ाई होने से बारिश के दिनों में सबसे ज्यादा खतरा रहता है. छत सेपानी टपकता है. आसपास पेड़ रहने के कारण बिजली गिरने की संभावना रहती है. लाइट नहीं होने के कारण घने बादलों में ही गोटुल में अंधेरा हो जाता है. मैं यही कहना चाहूंगी कि हमारे गांव में अच्छे स्कूल बने ताकि हमारे गांव के बच्चे आगे बढ़ सके.

पूरे ब्लॉक में जर्जर स्कूल है. ऊपरकामता और हिरनपाल में भवनविहीन स्कूल है. गोटुल में पढ़ाने के दौरान ना ब्लैक बोर्ड लगा सकते हैं. ना चार्ट लगा सकते हैं.- गांव वालों ने कई बार स्कूल की मांग की है. लेकिन अब तक भवन नहीं बन पाया है. गुलाब सिंह पटेल, शिक्षक, हिरनपाल स्कूल

जिला मुख्यालय से सिर्फ 40 से 50 किलोमीटर दूर हैं. इसके बावजूद ना तो स्कूल भवन है ना सड़क है ना ही बिजली. कई बार संबंधित विभाग और अधिकारियों से क्षेत्र की समस्याएं बताई गई लेकिन यहां की परेशानी खत्म नहीं हुई. - विकेस सर्फे, ग्रामीण

EDUCATION IN NAXAL AFFECTED CG
कांकेर के कई स्कूल जर्जर कहीं स्कूल भवन ही नहीं (ETV Bharat GFX)

कांकेर में स्कूलों की स्थिति: कांकेर जिला शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पूरे कांकेर जिले में 1591 प्राथमिक स्कूल भवन है, जिनमे 17 प्रथामिक स्कूल भवन विहीन है, 85 जर्जर स्थिति में है. 608 मिडिल स्कूल है, 2 स्कूल बिना बिल्डिंग के हैं. 48 जर्जर स्थिति में है. 103 हाईस्कूल है. जिनमें 17 स्कूलों का भवन नहीं है. 9 की जर्जर हालत है. 140 हायर सेकेंडरी स्कूल है. जिनमें 8 स्कूलों का अपना खुद का भवन नहीं है. 4 स्कूलों की हालत जर्जर है.

EDUCATION IN NAXAL AFFECTED CG
कांकेर में स्कूलों की स्थिति (ETV Bharat GFX)

वहां ब्लॉकवाइस स्कूलों की हालत पर नजर डाले तो, कोयलीबेड़ा विकासखंड में सबसे ज्यादा 12 स्कूल भवनविहिन है. इनमें 11 प्राथमिक व 1 मिडिल स्कूल हैं. अंतागढ़ विकासखंड में 11 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 5 प्राथमिक, 1 मिडिल, 4 हाईस्कूल और 1 हायर सेकंडरी स्कूल हैं. भानुप्रतापपुर में 10 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 7 हाईस्कूल व 3 हायर सेकेंडरी हैं. कांकेर विकासखंड में 4 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 1 प्राथमिक, 1 हाईस्कूल व 2 हायर सेकेंडरी है. नरहरपुर में भी 7 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 5 हाईस्कूल व 2 हायर सेकेंडरी है. इस तरह देखा जाए तो जिले में स्कूलों की हालत काफी दयनीय है.

स्कूलों की जर्जर स्थिति पर डीईओ के दावे: कांकेर के जिला शिक्षा अधिकारी अशोक ठाकुर बताते हैं कि स्कूल जतन के तहत जिले में 677 स्कूलों भवनों के मरम्मत का काम शुरू किया गया था. जिसमे 344 स्कूलों का काम पूरा हो चुका है. 310 स्कूलों में काम प्रगति पर है. भवन विहीन स्कूलों को लेकर सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है. अधिकारी के अपने दावे हैं. लेकिन सच्चाई आंखों के सामने हैं. स्कूल भवन नहीं होने के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, बारिश, धूप और ठंड में बच्चे गोटुल में पढ़ने को मजबूर हैं

क्या है गोटुल: छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में गांव के बाहर एक भवन बनाया जाता है. जहां गांव के लोग सांस्कृतिक कार्यक्रम या फिर तीज त्योहारों में नाच गाने का प्रोग्राम करते हैं. गांव के किसी बाहरी के आने पर गोटुल में रहने की व्यवस्था भी की जाती है. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में इस समय इन्हीं गोटुल में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है.

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कांकेर: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले में अभी भी 44 स्कूलों के पास खुद का भवन नहीं है. 146 स्कूल भवन जर्जर हालत में है. जहां बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है. आलम ये है स्कूली बच्चे कभी गोटुल में कभी टीचर के घर में पढ़ने को मजबूर है. ETV भारत आमाबेड़ा के ऊपरकामता और हिरनपाल गांव पहुंचा. जहां ना तो बिजली है ना ही सड़क. स्कूल के नाम पर एक पुराना जर्जर भवन हैं. जिसे किसी भी हादसे की आशंका को देखते हुए बंद कर दिया गया है. फिलहाल इन दोनों गांवों में गोटुल में ही बच्चों की पढ़ाई हो रही है.

गोटुल में पढ़ाई (ETV Bharat)

ऊपरकामता गांव में गोटुल में बने स्कूल की तस्वीर: नक्सल प्रभावित क्षेत्र आमाबेड़ा के ऊपरकामता गांव के 30 बच्चे पढ़ाई करते हैं. लेकिन स्कूल का भवन नहीं है. पुराना स्कूल भवन 6 साल पहले जर्जर हो चुका है. छतों से सरिया निकल चुका है. गांव वालों ने कई बार जिम्मेदार अधिकारियों से स्कूल भवन की मांग की लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. जिसके बाद गांव वालों की सहमति से टीचर अब गोटुल में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. बांस, बल्लियों, खपरैल और मिट्टी से बना एक कमरा है. जिसे स्थानीय भाषा में गोटुल कहा जाता है. कमरे का दरवाजा भी कुछ बल्लियों से बनाया गया है. ऊपर छत से आने वाली रोशनी ही पढ़ने वाले बच्चों के लिए लाइट का काम करती है. जमीन पर चटाई बिछी हुई है. जहां बैठकर बच्चे किताबों के चित्र देख रहे हैं.

kanker education system ground report
कांकेर में स्कूल भवन पूरी तरह जर्जर (ETV Bharat Chhattisgarh)

सालों से गोटुल में ही स्कूल: ऊपरकामता गांव में शिक्षा व्यवस्था की हकीकत जानने के बाद ETV भारत वहां से 7 किलोमीटर दूर जंगल और पगड़ंडी के रास्ते हिरनपाल गांव पहुंचा. हिरनपाल गांव नक्सलियों का मजबूत गढ़ माना जाता है. जानकर हैरानी होगी कि आदिवासियों के सांस्कृतिक केंद्र गोटुल में पिछले 8 साल से स्कूल चल रहा है. यहां के गोटूल का भी वहीं हाल है. कच्चे खपरैल के गोटुल भवन में बच्चे अपना भविष्य गढ़ रहे हैं. जहां बारिश के दिनों में छत से पानी टपकने के दौरान स्कूल बंद ही रहते हैं.

education in Gotul
गोटुल में बच्चों की पढ़ाई (ETV Bharat Chhattisgarh)

हिरनपाल गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी युवती लक्ष्मी मंडावी है. जो इस साल बीएससी फाइनल की पढ़ाई कर रही है. ETV भारत से बात करते हुए लक्ष्मी ने बताया-" मेरा प्राथमिक शिक्षा गांव से 7 किलोमीटर दूर सोढे गांव में हुई. 6वीं क्लास से 15 किलोमीटर दूर आमाबेड़ा में पढ़ाई की फिर आगे की पढ़ाई कांकेर में की." अपने गांव में स्कूल नहीं होने को लेकर लक्ष्मी काफी दुखी है. ETV भारत के जरिए लक्ष्मी ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से अपील भी की.-

गोटुल में बच्चों की पढ़ाई होने से बारिश के दिनों में सबसे ज्यादा खतरा रहता है. छत सेपानी टपकता है. आसपास पेड़ रहने के कारण बिजली गिरने की संभावना रहती है. लाइट नहीं होने के कारण घने बादलों में ही गोटुल में अंधेरा हो जाता है. मैं यही कहना चाहूंगी कि हमारे गांव में अच्छे स्कूल बने ताकि हमारे गांव के बच्चे आगे बढ़ सके.

पूरे ब्लॉक में जर्जर स्कूल है. ऊपरकामता और हिरनपाल में भवनविहीन स्कूल है. गोटुल में पढ़ाने के दौरान ना ब्लैक बोर्ड लगा सकते हैं. ना चार्ट लगा सकते हैं.- गांव वालों ने कई बार स्कूल की मांग की है. लेकिन अब तक भवन नहीं बन पाया है. गुलाब सिंह पटेल, शिक्षक, हिरनपाल स्कूल

जिला मुख्यालय से सिर्फ 40 से 50 किलोमीटर दूर हैं. इसके बावजूद ना तो स्कूल भवन है ना सड़क है ना ही बिजली. कई बार संबंधित विभाग और अधिकारियों से क्षेत्र की समस्याएं बताई गई लेकिन यहां की परेशानी खत्म नहीं हुई. - विकेस सर्फे, ग्रामीण

EDUCATION IN NAXAL AFFECTED CG
कांकेर के कई स्कूल जर्जर कहीं स्कूल भवन ही नहीं (ETV Bharat GFX)

कांकेर में स्कूलों की स्थिति: कांकेर जिला शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पूरे कांकेर जिले में 1591 प्राथमिक स्कूल भवन है, जिनमे 17 प्रथामिक स्कूल भवन विहीन है, 85 जर्जर स्थिति में है. 608 मिडिल स्कूल है, 2 स्कूल बिना बिल्डिंग के हैं. 48 जर्जर स्थिति में है. 103 हाईस्कूल है. जिनमें 17 स्कूलों का भवन नहीं है. 9 की जर्जर हालत है. 140 हायर सेकेंडरी स्कूल है. जिनमें 8 स्कूलों का अपना खुद का भवन नहीं है. 4 स्कूलों की हालत जर्जर है.

EDUCATION IN NAXAL AFFECTED CG
कांकेर में स्कूलों की स्थिति (ETV Bharat GFX)

वहां ब्लॉकवाइस स्कूलों की हालत पर नजर डाले तो, कोयलीबेड़ा विकासखंड में सबसे ज्यादा 12 स्कूल भवनविहिन है. इनमें 11 प्राथमिक व 1 मिडिल स्कूल हैं. अंतागढ़ विकासखंड में 11 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 5 प्राथमिक, 1 मिडिल, 4 हाईस्कूल और 1 हायर सेकंडरी स्कूल हैं. भानुप्रतापपुर में 10 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 7 हाईस्कूल व 3 हायर सेकेंडरी हैं. कांकेर विकासखंड में 4 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 1 प्राथमिक, 1 हाईस्कूल व 2 हायर सेकेंडरी है. नरहरपुर में भी 7 स्कूल भवनविहिन हैं, जिनमें 5 हाईस्कूल व 2 हायर सेकेंडरी है. इस तरह देखा जाए तो जिले में स्कूलों की हालत काफी दयनीय है.

स्कूलों की जर्जर स्थिति पर डीईओ के दावे: कांकेर के जिला शिक्षा अधिकारी अशोक ठाकुर बताते हैं कि स्कूल जतन के तहत जिले में 677 स्कूलों भवनों के मरम्मत का काम शुरू किया गया था. जिसमे 344 स्कूलों का काम पूरा हो चुका है. 310 स्कूलों में काम प्रगति पर है. भवन विहीन स्कूलों को लेकर सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है. अधिकारी के अपने दावे हैं. लेकिन सच्चाई आंखों के सामने हैं. स्कूल भवन नहीं होने के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, बारिश, धूप और ठंड में बच्चे गोटुल में पढ़ने को मजबूर हैं

क्या है गोटुल: छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में गांव के बाहर एक भवन बनाया जाता है. जहां गांव के लोग सांस्कृतिक कार्यक्रम या फिर तीज त्योहारों में नाच गाने का प्रोग्राम करते हैं. गांव के किसी बाहरी के आने पर गोटुल में रहने की व्यवस्था भी की जाती है. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में इस समय इन्हीं गोटुल में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है.

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