बीकानेर : आज गोवर्धन पूजा का दिन है. आमतौर पर दिवाली के एक दिन बाद ही पूजा होती है, लेकिन इस बार दो दिन अलग अलग मतानुसार दिवाली पर्व मनाया गया, जिसके कारण गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को है. आइए जानते हैं कैसे शुरू हुई गोवर्धन पूजा की परंपरा.
द्वापर युग में हुई शुरुआत : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को होती है. इस बार 2 नवंबर को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा है. गोवर्धन पूजा को लेकर वे कहते हैं कि इसकी शुरुआत द्वापर युग में कृष्ण अवतार के समय मानी जाती है. इंद्रदेव के अहंकार को खत्म करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने कृष्णावतार में गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था और ब्रज के लोगों को बचाया था.
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यह है कथा : दरअसल, गोवर्धन पूजा के शुरू होने के पीछे एक कथा है. शास्त्रों के अनुसार कृष्ण ने इंद्र के अभिमान को तोड़ने के लिए ब्रजवासियों को इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की बात कही. कृष्ण ने उन लोगों से कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य, लेकिन हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं. इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे.
सबसे बड़ा गोवर्धनधारी नाम : इस बात से कुपित होकर इंद्र ने मूसलाधार बारिश कर दी. भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार तोड़ने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली. इसके बाद इंद्र ने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की. इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई.
गोवर्धन पर्वत मानकर पूजा : पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि मथुरा वृंदावन में लोग गोवर्धन पर्वत की साक्षात पूजा करते हैं. अन्य स्थानों के लोग भारतीय संस्कृति में देसी गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उनकी पूजा करते हैं. इस दिन वैष्णव मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन होता है. भगवान को छप्पन भोग अर्पित किया जाता है.