बालोद: बालोद जिले का गोंदली जलाशय लगभग 70 सालों बाद अब खाली हुआ है. इस बार गेट का पूरा अवलोकन करने के लिए पानी को खाली किया गया है, जिसके बाद अगले साल उसकी मरम्मत की जाएगी. हालांकि जब जलाशय को खाली किया गया, तो बरसों पुराना इतिहास लोगों के सामने आया.
राजपरिवारों का गढ़ रहा है बालोद: दरअसल, एक प्राचीन मंदिर का अवशेष इस जलाशय में पाया गया है, जिसे लोग लगभग ढाई सौ साल पुराना बता रहे हैं. वैसे तो बालोद, राज परिवारों और राजवाड़ों का गढ़ रहा है. अभी तक किसी भी राज परिवार ने इस मंदिर को लेकर कोई दावा नहीं किया है, लेकिन लोगों के लिए ये पहेली बनी हुई है. इस मंदिर को देखने के लिए रोजाना सैकड़ों लोगों की भीड़ यहां पहुंच रही है. मानो ये एक पर्यटन स्थल हो. सहगांव और गैंजी के मध्य इस क्षेत्र में एक पुराना मंदिर दिखाई देने लगा, जो पानी में डूबा हुआ था. इस जगह पर लोहे के संकल, मिट्टी से बनी मूर्तियां और कुएं मिलने से लोगों के मन में कौतूहल बना है. दूर-दूर से लोग यहां पहुंच रहे हैं.
1954 से 1956 के बीच हुआ था जलाशय का निर्माण: आसपास के लोगों से जब इस मंदिर के विषय में जानकारी ली गई तो पता चला कि जब जलाशय का निर्माण नहीं हुआ था, तब इस जगह पर दर्जन भर गांव थे. जब गांव डूबान क्षेत्र में आया तो उन्हें विस्थापित किया गया. उसी गांव का ये मंदिर रहा होगा. उस गांव को दूसरे जगह शिफ्ट कर दिया गया है. पूरा गांव उजड़ गया लेकिन यह मंदिर आज सीना ताने खड़ा है. इसकी दीवारें जस की तस है. बाकी बाउंड्री टूट गई है. लोगों का कहना है कि, "यह महामाया माता का मंदिर है, जिसे पूर्वजों ने स्थापित किया था. बताया जा रहा है कि साल 1954 से 1956 के बीच इस जलाशय का निर्माण किया गया था.
मंदिर के आसपास बनी है बावली: मंदिर के आसपास करीब 3 बावली का अस्तित्व भी सामने आया है. यहां पर पुराने समय की झलक देखने को मिलती है. पुराने समय में यहां पर बावली को बड़े ईंटों और पत्थरों से बांधा गया है. इन बावली में आज भी पानी भरा हुआ है. इसकी बनावट लोगों को आकर्षित कर रही है.
यह है इतिहास: साल 1956-57 में जब गोंदली जलाशय का निर्माण किया गया तो उससे पहले यहां पर गोंदली गांव हुआ करता था. जलाशय निर्माण के समय गांव को खाली कराया गया और ग्रामीण दूसरे जगह जाकर सभी ग्रामीण बस गए. उसके बाद में गांव का मां शीतला मंदिर जलाशय निर्माण के समय, वहीं रह गया. वह पानी में डूब गया था. मंदिर का निर्माण तकरीबन 200 साल पुराना बताया जा रहा है. मंदिर के साथ-साथ कुछ पुरानी मूर्तियां भी मिली है.
पूजा-पाठ कर रहे लोग: यह मंदिर अब एक आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है. पानी कम होने के बाद लोग दूर-दूर से यहां पर पूजा पाठ करने के लिए आ रहे हैं. कुछ पर्यटक जो प्राचीन चीजों को समझने की शौकीन रखते हैं. वह भी पहुंच रहे हैं.