लखनऊ : देश में कार्डियक अरेस्ट से होने वाली मौतों का खतरा टालने या कम करने के लिए कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) का प्रशिक्षण सभी के लिए जरूरी है. यह बातें शनिवार को केजीएमयू लारी कार्डियोलॉजी में आयोजित सेमिनार के दौरान प्रो. ऋषि सेठी ने कही.
उन्होंने कहा कि इसके तहत पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस, व्यापारी, फ्रंटलाइन वर्कर, स्कूल-कालेज के छात्र-छात्राओं का अनिवार्य तौर पर प्रशिक्षण जरूरी है. आम जन को यह बात समझना होगा कि सीपीआर सीखकर सिर्फ हार्ट अटैक ही नहीं, बल्कि ब्रेन डेड से भी बचाव संभव है. कार्डियक अरेस्ट होने पर मरीज की सांस रुक जाती है. इससे हृदय, ब्रेन, किडनी और लिवर में आक्सीजन और खून का प्रवाह बाधित होता है. यदि लगातार 3 से 5 मिनट तक खासकर ब्रेन को आक्सीजन नहीं पहुंचे तो इंसान डेड हो सकता है. ऐसे में यदि कार्डियक अरेस्ट होने पर मरीज बाद में बच भी जाए, लेकिन ब्रेन डेड हो चुका हो, तो उसकी जिंदगी किसी काम की नहीं रह जाती. इसलिए सीपीआर देना जरूरी होता है.
मरीज को लिटाकर 100 बार सीने पर दोनों हाथों से दबाव डालें : वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट प्रो. अक्षय प्रधान के मुताबिक जब व्यक्ति खाते, चलते, बोलते, बैठते या अन्य कोई काम करते-करते अचानक गिर जाता है. उसकी धड़कनें खामोश होने लगती हैं, तो इसका मतलब व्यक्ति को कार्डियक अरेस्ट हो चुका है. शरीर को चलाने वाले महत्वपूर्ण अंगों में आक्सीजन का प्रवाह बाधित होने से मल्टी आर्गन फेल्योर का खतरा भी बढ़ता है. ऐसे में मरीज को लिटाकर 100 से 120 बार उसके सीने पर दोनों हाथों से कंप्रेस (दबाव) डाला जाता है. बिल्कुल हवा भरने की तरह, हर 30 कंप्रेस पर मरीज के मुंह में अपने मुंह से सांस देना चाहिए.
इस प्रकार 100 से 120 कंप्रेस में तीन से चार बार मरीज को मुंह से फूंक मारकर सांस देना पड़ता है. इस प्रक्रिया में कम से कम दो व्यक्तियों की मदद की जरूरत पड़ सकती है. ठीक से सीपीआर देने से रुकी धड़कनें फिर चल पड़ती हैं. सभी आर्गन को आक्सीजन पहुंचने लगती है और ब्रेन डेड का खतरा भी टलता है. यह प्रक्रिया करने के साथ ही अन्य लोगों को एंबुलेंस बुलाना चाहिए, ताकि तुरंत मरीज को अस्पताल पहुंचाया जा सके. इन दिनों माल और एयरपोर्ट पर एईडी मशीन (आटोमेटेड एक्सटर्नल डेफिब्रिलेटर) की सुविधा होती है. जिसकी मदद से शाक (Shock) दिया जाता है. इससे धड़कन सामान्य हो जाती है.
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