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कभी दीवार लेखन किया, पार्टी का झंडा लेकर गांव-गांव घूमे, अब बने मंत्री, ऐसा रहा है सुदिव्य कुमार का सफर - MINISTER SUDIVYA KUMAR

गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार मंत्री बन गए हैं, लेकिन उनका राजनीतिक जीवन काफी संघर्ष से भरा रहा है.

Giridih MLA Sudivya Kumar
ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 6, 2024, 8:45 AM IST

गिरिडीह: झारखंड मुक्ति मोर्चा के दिग्गज नेता सुदिव्य कुमार अब मंत्री बन गए हैं. दिशोम गुरु शिबू सोरेन के अलावा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी सुदिव्य का राजनीतिक सफर काफी संघर्ष भरा रहा है. पार्टी में एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले सुदिव्य ने संगठन को मजबूत करने के लिए काफी काम किया है. राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने के बाद उन्होंने न सिर्फ संगठन के लिए दीवार लेखन किया, बल्कि झंडा लेकर गांव-गांव भी गए.

1989 में झामुमो में हुए शामिल

शंभूनाथ विश्वकर्मा के पुत्र सुदिव्य कुमार उर्फ ​​सोनू ने 1989 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का सदस्य बनकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. वे एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में पार्टी में शामिल हुए. फिर संगठन को मजबूत करने के लिए संगठन के हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे. झारखंड अलग राज्य के लिए आंदोलन हो या गांव-गांव जाकर लोगों को पार्टी के कार्यक्रमों की जानकारी देना, वे हर जगह जाते थे. कभी दीवार लेखन करते थे तो कभी आंदोलन में शामिल होते थे. उस समय सोनू जगह-जगह पार्टी का झंडा भी बांधते थे.

नगर कमेटी के संस्थापक अध्यक्ष थे सुदिव्य

1989 में पार्टी में शामिल होने के बाद सुदिव्य की मेहनत को देखते हुए 1992 में उन्हें झामुमो का नगर अध्यक्ष बनाया गया. सुदिव्य गिरिडीह नगर कमेटी के संस्थापक अध्यक्ष बने. सुदिव्य बताते हैं कि नगर अध्यक्ष बनने के बाद वे युवाओं को संगठन से जोड़ने और झारखंड आंदोलन को धारदार बनाने का काम करते रहे. मंत्री सुदिव्य बताते हैं कि वर्ष 2003 में उन्हें जिला अध्यक्ष बनाया गया. 2003 से 2010 तक वे जिला अध्यक्ष के पद पर रहे और गांव से लेकर शहर तक संगठन को मजबूत करने का काम किया.

2009 में लड़ा पहला चुनाव

इस बीच 2009 में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सुदिव्य कुमार को गिरिडीह विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में सुदिव्य को हार का सामना करना पड़ा. 2009 के चुनाव में सुदिव्य छठे स्थान पर रहे. 2014 में झामुमो ने फिर सुदिव्य कुमार पर भरोसा जताया. इस चुनाव में सुदिव्य ने लंबी छलांग लगाई. उनका सीधा मुकाबला तत्कालीन विधायक और भाजपा प्रत्याशी निर्भय कुमार शाहाबादी से था. सुदिव्य यह चुनाव भी हार गए, लेकिन छठे स्थान से सीधे दूसरे स्थान पर आ गए.

2019 में झामुमो ने उन्हें फिर उम्मीदवार बनाया. इस बार भी उनका मुकाबला भाजपा के निर्भय से हुआ, लेकिन सुदिव्य यहां जीत गए. 2024 के चुनाव में सुदिव्य को झामुमो ने उम्मीदवार बनाया और इस बार सुदिव्य ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. सुदिव्य ने भाजपा को उस सीट पर लगातार दूसरी बार हराया, जहां भाजपा मजबूत मानी जाती थी.

1991 के आम चुनाव में 45 दिनों तक गोड्डा में थे डटे

मंत्री सुदिव्य के राजनीतिक सफर में 1991 का लोकसभा चुनाव भी काफी अहम रहा. 1991 में उन्हें संगठन की ओर से गोड्डा संसदीय क्षेत्र भेजा गया. यहां उन्हें पार्टी प्रत्याशी सूरज मंडल के लिए प्रचार करना था. सुदिव्य अपनी जीप से गोड्डा पहुंचे. देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के समय ही उन्होंने सूरज मंडल के लिए प्रचार करना शुरू कर दिया था. 21 मई 1991 की इस हृदय विदारक घटना के बाद चुनाव स्थगित कर दिया गया था, लेकिन सुदिव्य गोड्डा में ही रहे और मतदान से ठीक पहले वापस लौटे.

मंत्री सुदिव्य बताते हैं कि जिस दिन राजीव गांधी की हत्या हुई, उस दिन वे गोड्डा के हंसडीहा में थे. वे अपनी जीप से सूरज मंडल के लिए प्रचार कर रहे थे. उन्होंने बताया कि उन्हें 45 दिनों तक गोड्डा में रहना पड़ा था.

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गिरिडीह: झारखंड मुक्ति मोर्चा के दिग्गज नेता सुदिव्य कुमार अब मंत्री बन गए हैं. दिशोम गुरु शिबू सोरेन के अलावा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी सुदिव्य का राजनीतिक सफर काफी संघर्ष भरा रहा है. पार्टी में एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले सुदिव्य ने संगठन को मजबूत करने के लिए काफी काम किया है. राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने के बाद उन्होंने न सिर्फ संगठन के लिए दीवार लेखन किया, बल्कि झंडा लेकर गांव-गांव भी गए.

1989 में झामुमो में हुए शामिल

शंभूनाथ विश्वकर्मा के पुत्र सुदिव्य कुमार उर्फ ​​सोनू ने 1989 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का सदस्य बनकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. वे एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में पार्टी में शामिल हुए. फिर संगठन को मजबूत करने के लिए संगठन के हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे. झारखंड अलग राज्य के लिए आंदोलन हो या गांव-गांव जाकर लोगों को पार्टी के कार्यक्रमों की जानकारी देना, वे हर जगह जाते थे. कभी दीवार लेखन करते थे तो कभी आंदोलन में शामिल होते थे. उस समय सोनू जगह-जगह पार्टी का झंडा भी बांधते थे.

नगर कमेटी के संस्थापक अध्यक्ष थे सुदिव्य

1989 में पार्टी में शामिल होने के बाद सुदिव्य की मेहनत को देखते हुए 1992 में उन्हें झामुमो का नगर अध्यक्ष बनाया गया. सुदिव्य गिरिडीह नगर कमेटी के संस्थापक अध्यक्ष बने. सुदिव्य बताते हैं कि नगर अध्यक्ष बनने के बाद वे युवाओं को संगठन से जोड़ने और झारखंड आंदोलन को धारदार बनाने का काम करते रहे. मंत्री सुदिव्य बताते हैं कि वर्ष 2003 में उन्हें जिला अध्यक्ष बनाया गया. 2003 से 2010 तक वे जिला अध्यक्ष के पद पर रहे और गांव से लेकर शहर तक संगठन को मजबूत करने का काम किया.

2009 में लड़ा पहला चुनाव

इस बीच 2009 में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सुदिव्य कुमार को गिरिडीह विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में सुदिव्य को हार का सामना करना पड़ा. 2009 के चुनाव में सुदिव्य छठे स्थान पर रहे. 2014 में झामुमो ने फिर सुदिव्य कुमार पर भरोसा जताया. इस चुनाव में सुदिव्य ने लंबी छलांग लगाई. उनका सीधा मुकाबला तत्कालीन विधायक और भाजपा प्रत्याशी निर्भय कुमार शाहाबादी से था. सुदिव्य यह चुनाव भी हार गए, लेकिन छठे स्थान से सीधे दूसरे स्थान पर आ गए.

2019 में झामुमो ने उन्हें फिर उम्मीदवार बनाया. इस बार भी उनका मुकाबला भाजपा के निर्भय से हुआ, लेकिन सुदिव्य यहां जीत गए. 2024 के चुनाव में सुदिव्य को झामुमो ने उम्मीदवार बनाया और इस बार सुदिव्य ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. सुदिव्य ने भाजपा को उस सीट पर लगातार दूसरी बार हराया, जहां भाजपा मजबूत मानी जाती थी.

1991 के आम चुनाव में 45 दिनों तक गोड्डा में थे डटे

मंत्री सुदिव्य के राजनीतिक सफर में 1991 का लोकसभा चुनाव भी काफी अहम रहा. 1991 में उन्हें संगठन की ओर से गोड्डा संसदीय क्षेत्र भेजा गया. यहां उन्हें पार्टी प्रत्याशी सूरज मंडल के लिए प्रचार करना था. सुदिव्य अपनी जीप से गोड्डा पहुंचे. देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के समय ही उन्होंने सूरज मंडल के लिए प्रचार करना शुरू कर दिया था. 21 मई 1991 की इस हृदय विदारक घटना के बाद चुनाव स्थगित कर दिया गया था, लेकिन सुदिव्य गोड्डा में ही रहे और मतदान से ठीक पहले वापस लौटे.

मंत्री सुदिव्य बताते हैं कि जिस दिन राजीव गांधी की हत्या हुई, उस दिन वे गोड्डा के हंसडीहा में थे. वे अपनी जीप से सूरज मंडल के लिए प्रचार कर रहे थे. उन्होंने बताया कि उन्हें 45 दिनों तक गोड्डा में रहना पड़ा था.

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