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'मेरे बेटे शहाबुद्दीन का शव लौटाओ', बिना पहचान किए पुलिस ने मुस्लिम युवक का कर दिया दाह संस्कार

गया पुलिस ने बिना पहचान किए ही मुस्लिम युवक के शव का दाह संस्कार कर दिया. अब पिता अपने बेटे की लाश मांग रहे हैं.

गया पुलिस की लापरवाही
गया पुलिस की लापरवाही (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 14, 2024, 7:34 AM IST

गयाः बिहार में गया पुलिस की लापरवाही से पदाधिकारी उस वक्त हैरान रह गए जब परैया थाना की पुलिस ने हादसे में मृत युवक का दाह संस्कार कर दिया. युवक की पहचान नहीं की गई थी. बाद में पता चला कि युवक इस्लाम धर्म से ताल्लुक रखता था. इसकी जानकारी मिलने के बाद पुलिस के हाथ-पैर फुलने लगे. परिजन पुलिस से अपने बेटे का शव मांग रहे हैं.

27 सितंबर को हुई थी मौतः घटना जिले के परैया थाना की है. पुरानी करीमगंज, बेल गली के रहने वाले गुलाम हैदर के पुत्र मो. शहाबउ‌द्दीन (32) की 27 सितंबर की सुबह सड़क हादसे में मौत हो गयी. जानकारी के अनुसार युवक अपनी स्कूटी से गुरारू के लिए निकला था. तभी रास्ते में परैया के पास पिकअप वैन से धक्का लगने के कारण घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई थी.

मृतक के पिता ने मांगा डेड बॉडी (ETV Bharat)

पुलिस ने कहा- करा दिया अंतिम संस्कारः घटना के बाद परैया थाना पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए मगध मेडिकल कॉलेज गया भेज दिया था लेकिन पहचान नहीं हो पायी थी. पोस्टमार्टम के बाद शव की पहचान के लिए 72 घंटे तक शीतगृह में रखा गया. 72 घंटे के बाद भी पहचान नहीं होने के बाद पुलिस ने शव का दाह संस्कार करा दिया. घटना के बाद जब परिजनों को पता चला तो उसने बेटे के शव की मांग की लेकिन शव का तो अंतिम संस्कार हो चुका था. इसके बाद पुलिस के हाथ पैर फुलने लगे.

16 दिनों बाद कैंडल मार्च निकालाः घटना के 16 दिनों के बाद शनिवार की शाम पुलिस के प्रति आक्रोश में गांधी मैदान से कैंडल मार्च निकला जाना था. सूचना मिलते ही जिला पुलिस के पदाधिकारी परिजन के घर पहुंच गए. परिजनों से बात की और आग्रह किया कि कैंडल मार्च नहीं निकाला जाए. पुलिस ने दो दिनों का समय मांगा है ताकि अपनी कार्रवाई कर सके. लेकिन स्थानीय लोगों और भाकपा माले के द्वारा कैंडल मार्च निकाला गया. पुरानी करीमगंज में मोहल्ला के अंदर ही कैंडल मार्च निकाल गया.

मृतक के घर पहुंची पुलिस
मृतक के घर पहुंची पुलिस (ETV Bharat)

कहां हुआ अंतिम संस्कार? अब जब पीड़ित परिवार अपने बच्चे का डेडबाॅडी की डिमांड कर रहें हैं तो पुलिस के पसीने छुट रहें हैं. एफआईआर रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने शव का अंतिम संस्कार कर दिया है. लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव कहां गया, किस जगह पर अंतिम संस्कार हुआ पुलिस भी इस बात से अंजान है. पुलिस का कहना है डेडबाॅडी की जिम्मेदारी चौकीदार को दी गई थी. वही बताएगा की बाॅडी का क्या किया गया? जिस चौकीदार को ड्यूटी दी गई थी वह पुलिस का चौकीदार नहीं है बल्कि पिछले चार साल से वह अपने ससूर की जगह पर चौकीदारी कर रहा था.

शव से साथ क्या किया गया? मृतक शहाबुद्दीन के पिता गुलाम हैदर ने बताया कि जब वह थाने में पुलिस से डेडबाॅडी की डिमांड की तो पुलिस ने बताया पोस्टमार्टम के तीन दिन बाद शव को अंतिम संस्कार करने के लिए शव चौकीदार को दे दिया गया था. दूसरे दिन फिर थाने जाकर चौकीदार से बात की तो उसने बताया कि उसने डेडबाॅडी को एक लोकल आदमी को शव डिस्पोज करने के लिए दे दिया था. उसने बाॅडी के साथ क्या किया उसको पता नहीं है.

मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़
मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़ (ETV Bharat)

"पिछले 5 दिनों से हम पुलिस से डेडबाॅडी की डिमांड कर रहें हैं. पुलिस का कहना है शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. चौकीदार ने जिस व्यक्ति को शव दिया उस व्यक्ति को भी चौकीदार पहचानने से इनकार कर रहा है." -गुलाम हैदर, मृतक के पिता

क्यों नहीं की गई पहचान?: इस घटना के बाद करीमगंज मुहल्ले के लोगों में पुलिस के प्रति काफी आक्रोश हैं. पुलिस की कार्यशैली पर भी दुखी हैं. मुहल्ले के लोगों का कहना है कि घटनास्थल पर शहाबुद्दीन का मोबाइल और स्कूटी के नंबर से परिजनों की खोजबीन की जा सकती थी. अगर ऐसा होता तो उसकी शिनाख्त हो जाती लेकिन पुलिस ने अपने काम में लापरवाही बरती है. शहाबुद्दीन को न्याय दिलाने और धर्म के आधार पर अज्ञात शव का अंतिम संस्कार करने के मांग की जा रही है. हालांकि इस मामले में पुलिस के वरीय पदाधिकारी कार्रवाई की बात कर रहे हैं.

"इस घटना में जिस भी पुलिसकर्मी या अधिकारी के द्वारा लापरवाही बरती गई है उन्हें चिह्नित कर कार्रवा की जाएगी. हमलोगों ने मृतक के परिजनों से मुलाकात की है और इनकी मांगों को सुना गया है. इस मामले में हमलोग जांच कर रहें हैं." -सुशांत कुमार चंचल, एसडीपीओ टेकरी, गया

क्या है कानूनी प्रक्रियाः जब कोई लावारिश शव मिलता है तो इसकी जानकारी जिला एसपी को दी जाती है. शव को 3 से 4 दिनों तक पुलिस सुरक्षा में रखा जाता है. इस दौरान आसपास के थानों और कंट्रोल रूप से माध्यम से शव की पहचान की कार्रवाई की जाती है. अखबार में विज्ञप्ति भी निकाला जाता है.

मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़
मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़ (ETV Bharat)

कैसे होता अंतिम संस्कारः 72 घंटों के बाद भी पहचान नहीं होने के बाद शव का अंतिम संस्कार किया जाता है. शव पर किसी भी तरह की कोई धार्मिक चिह्न नहीं मिलने के बाद पुलिस उसे हिन्दू धर्म के अनुसार शव का दाह संस्कार करा देती है. लेकिन शहाबुद्दीन के मोबाइल और गाड़ी नंबर से पुलिस परिजनों के बारे में पता लगा सकती थी. लापरवाही के कारण इस तरह की घटना हुई है जो पुलिस की कार्यशैली को दर्शाता है.

यह भी पढ़ेंः दशहरा देखने गये उद्योगपति अजय अग्रवाल लापता, अररिया रेलवे स्टेशन के पास दिखी थी आखिरी लोकेशन

गयाः बिहार में गया पुलिस की लापरवाही से पदाधिकारी उस वक्त हैरान रह गए जब परैया थाना की पुलिस ने हादसे में मृत युवक का दाह संस्कार कर दिया. युवक की पहचान नहीं की गई थी. बाद में पता चला कि युवक इस्लाम धर्म से ताल्लुक रखता था. इसकी जानकारी मिलने के बाद पुलिस के हाथ-पैर फुलने लगे. परिजन पुलिस से अपने बेटे का शव मांग रहे हैं.

27 सितंबर को हुई थी मौतः घटना जिले के परैया थाना की है. पुरानी करीमगंज, बेल गली के रहने वाले गुलाम हैदर के पुत्र मो. शहाबउ‌द्दीन (32) की 27 सितंबर की सुबह सड़क हादसे में मौत हो गयी. जानकारी के अनुसार युवक अपनी स्कूटी से गुरारू के लिए निकला था. तभी रास्ते में परैया के पास पिकअप वैन से धक्का लगने के कारण घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई थी.

मृतक के पिता ने मांगा डेड बॉडी (ETV Bharat)

पुलिस ने कहा- करा दिया अंतिम संस्कारः घटना के बाद परैया थाना पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए मगध मेडिकल कॉलेज गया भेज दिया था लेकिन पहचान नहीं हो पायी थी. पोस्टमार्टम के बाद शव की पहचान के लिए 72 घंटे तक शीतगृह में रखा गया. 72 घंटे के बाद भी पहचान नहीं होने के बाद पुलिस ने शव का दाह संस्कार करा दिया. घटना के बाद जब परिजनों को पता चला तो उसने बेटे के शव की मांग की लेकिन शव का तो अंतिम संस्कार हो चुका था. इसके बाद पुलिस के हाथ पैर फुलने लगे.

16 दिनों बाद कैंडल मार्च निकालाः घटना के 16 दिनों के बाद शनिवार की शाम पुलिस के प्रति आक्रोश में गांधी मैदान से कैंडल मार्च निकला जाना था. सूचना मिलते ही जिला पुलिस के पदाधिकारी परिजन के घर पहुंच गए. परिजनों से बात की और आग्रह किया कि कैंडल मार्च नहीं निकाला जाए. पुलिस ने दो दिनों का समय मांगा है ताकि अपनी कार्रवाई कर सके. लेकिन स्थानीय लोगों और भाकपा माले के द्वारा कैंडल मार्च निकाला गया. पुरानी करीमगंज में मोहल्ला के अंदर ही कैंडल मार्च निकाल गया.

मृतक के घर पहुंची पुलिस
मृतक के घर पहुंची पुलिस (ETV Bharat)

कहां हुआ अंतिम संस्कार? अब जब पीड़ित परिवार अपने बच्चे का डेडबाॅडी की डिमांड कर रहें हैं तो पुलिस के पसीने छुट रहें हैं. एफआईआर रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने शव का अंतिम संस्कार कर दिया है. लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव कहां गया, किस जगह पर अंतिम संस्कार हुआ पुलिस भी इस बात से अंजान है. पुलिस का कहना है डेडबाॅडी की जिम्मेदारी चौकीदार को दी गई थी. वही बताएगा की बाॅडी का क्या किया गया? जिस चौकीदार को ड्यूटी दी गई थी वह पुलिस का चौकीदार नहीं है बल्कि पिछले चार साल से वह अपने ससूर की जगह पर चौकीदारी कर रहा था.

शव से साथ क्या किया गया? मृतक शहाबुद्दीन के पिता गुलाम हैदर ने बताया कि जब वह थाने में पुलिस से डेडबाॅडी की डिमांड की तो पुलिस ने बताया पोस्टमार्टम के तीन दिन बाद शव को अंतिम संस्कार करने के लिए शव चौकीदार को दे दिया गया था. दूसरे दिन फिर थाने जाकर चौकीदार से बात की तो उसने बताया कि उसने डेडबाॅडी को एक लोकल आदमी को शव डिस्पोज करने के लिए दे दिया था. उसने बाॅडी के साथ क्या किया उसको पता नहीं है.

मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़
मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़ (ETV Bharat)

"पिछले 5 दिनों से हम पुलिस से डेडबाॅडी की डिमांड कर रहें हैं. पुलिस का कहना है शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. चौकीदार ने जिस व्यक्ति को शव दिया उस व्यक्ति को भी चौकीदार पहचानने से इनकार कर रहा है." -गुलाम हैदर, मृतक के पिता

क्यों नहीं की गई पहचान?: इस घटना के बाद करीमगंज मुहल्ले के लोगों में पुलिस के प्रति काफी आक्रोश हैं. पुलिस की कार्यशैली पर भी दुखी हैं. मुहल्ले के लोगों का कहना है कि घटनास्थल पर शहाबुद्दीन का मोबाइल और स्कूटी के नंबर से परिजनों की खोजबीन की जा सकती थी. अगर ऐसा होता तो उसकी शिनाख्त हो जाती लेकिन पुलिस ने अपने काम में लापरवाही बरती है. शहाबुद्दीन को न्याय दिलाने और धर्म के आधार पर अज्ञात शव का अंतिम संस्कार करने के मांग की जा रही है. हालांकि इस मामले में पुलिस के वरीय पदाधिकारी कार्रवाई की बात कर रहे हैं.

"इस घटना में जिस भी पुलिसकर्मी या अधिकारी के द्वारा लापरवाही बरती गई है उन्हें चिह्नित कर कार्रवा की जाएगी. हमलोगों ने मृतक के परिजनों से मुलाकात की है और इनकी मांगों को सुना गया है. इस मामले में हमलोग जांच कर रहें हैं." -सुशांत कुमार चंचल, एसडीपीओ टेकरी, गया

क्या है कानूनी प्रक्रियाः जब कोई लावारिश शव मिलता है तो इसकी जानकारी जिला एसपी को दी जाती है. शव को 3 से 4 दिनों तक पुलिस सुरक्षा में रखा जाता है. इस दौरान आसपास के थानों और कंट्रोल रूप से माध्यम से शव की पहचान की कार्रवाई की जाती है. अखबार में विज्ञप्ति भी निकाला जाता है.

मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़
मृतक के घर के बाहर समर्थकों की भीड़ (ETV Bharat)

कैसे होता अंतिम संस्कारः 72 घंटों के बाद भी पहचान नहीं होने के बाद शव का अंतिम संस्कार किया जाता है. शव पर किसी भी तरह की कोई धार्मिक चिह्न नहीं मिलने के बाद पुलिस उसे हिन्दू धर्म के अनुसार शव का दाह संस्कार करा देती है. लेकिन शहाबुद्दीन के मोबाइल और गाड़ी नंबर से पुलिस परिजनों के बारे में पता लगा सकती थी. लापरवाही के कारण इस तरह की घटना हुई है जो पुलिस की कार्यशैली को दर्शाता है.

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