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आकाशदीप की रोशनी से जगमगाए बनारस के गंगा घाट, शहीदों की याद में जलाए गए 101 दीये, जानिए क्या है मान्यता

बांस की टोकरियों में प्रज्ज्वलित किए गए आकाशदीप, महाभारत काल से निभाई जा रही परंपरा

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

आकाशदीप की रोशनी से जगमगा उठे काशी के गंगा घाट
आकाशदीप की रोशनी से जगमगा उठे काशी के गंगा घाट (Photo credit: ETV Bharat)

वाराणसी : कार्तिक का पवित्र महीना भगवान विष्णु का महीना कहा जाता है और भगवान शिव की नगरी काशी में इस पूरे एक महीने का विशेष महत्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि कार्तिक के महीने में गंगा स्नान करने और किसी भी नदी सरोवर या गंगा किनारे दीपदान करने से सारे पापों का नाश होता है और पितृ लोक में मौजूद पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

काशी की अद्भुत परंपरा का निर्माण सदियों से होता रहा है और कार्तिक की शुरुआत के साथ ही वाराणसी में आकाशदीप जलाए जाने की परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. आकाशदीप शहीदों और पितरों की याद में जलाए जाने वाले वह दीपक हैं जो प्रज्ज्वलित करने के बाद बस की बनी टोकरियों में रखकर रस्सी के सहारे लंबे-लंबे बसों से काफी ऊंचाई तक भेजे जाते हैं. इस वजह से इन्हें आकाशदीप के नाम से जाना जाता है. काशी में शहीदों और पितरों की स्मृति में यह परंपरा महाभारत काल से निभाई जा रही है जो आज भी जीवित है.

आकाशदीप की रोशनी से जगमगा उठे काशी के गंगा घाट (Video credit: ETV Bharat)

शहीदों की राह रोशन करने को काशी के नभमंडल में गुरुवार की शाम बांस की टोकरियों में आकाशदीप प्रज्ज्वलित हुए. गंगातट से आकाशदीप जब कतार में गगन की ओर चले तो दिव्य नजारे ने सबको श्रद्धा से अभिभूत कर दिया. एक ओर शरद पूर्णिमा की चांदनी चटख हुई और दूसरी ओर प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर शहीदों की याद में बांस के पोरों पर आकाशदीप जगमगाने लगे. बांस की डलियों में टिमटिमाते दीप चंद्रहार की मानिंद झिलमिला उठे. गंगोत्री सेवा समिति की ओर से यह आकाशदीप लोगों की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले पुलिस एवं पीएसी के 11 शहीदों की स्मृति में जलाए गए. गंगा की मध्यधारा में दीपदान भी किया गया.

प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर पुलिस और पीएसी के शहीद जवानों को नमन करते हुए आकाशदीप जलाने की शुरुआत पांच वैदिक आचार्यों ने मां गंगा के षोडशोचार पूजन से की. इसके बाद 101 दीपों को गंगा में प्रवाहित किया गया. इस दौरान वेद मंत्रों की गूंज होती रही. पीएसी बैंड की धुन के साथ मुख्य अतिथियों ने शहीदों की याद में आकाशदीप प्रज्ज्वलित किए. जिन शहीद जवानों की याद में आकाशदीप जलाए गए, उनमें स्वर्गीय शिवराज सिंह मुख्य आरक्षी, स्व. मनीष यादव मुख्य आरक्षी यातायात, स्व. योगेन्द्र सिंह मुख्य आरक्षी, स्व. ओमवीर सिंह मुख्य आरक्षी, स्व. आकाश तोमर आरक्षी, स्व. संजय कुमार मुख्य आरक्षी, स्व. रवि कुमार आरक्षी, स्व. नरेश नेहरा मुख्य आरक्षी, स्व. वीरेन्द्र कुमार दूबे मुख्य आरक्षी, स्व. प्रकाश कुमार आरक्षी, स्व. अजय कुमार त्रिपाठी उपनिरीक्षक के नाम शामिल हैं.

इस अद्भुत और पौराणिक परंपरा के बारे में गंगोत्री सेवा समिति के सेक्रेटरी दिनेश शंकर दुबे ने बताया कि आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक पुलिस और पीएसी के वीर शहीद जवानों की याद में जलाए जाने वाले आकाशदीप की शुरुआत तीन दशकों से की जा रही है. उन्होंने बताया कि शहीदों की आत्माओं का मार्ग आलोकित करने के लिए गंगा के तट पर आकाशदीप रोशन किए जाते हैं. कार्तिक मास में दीपदान का विधान और विशेष महत्व है. उन्होंने कहा कि गंगा के घाट पर कार्तिक माह में जलता आकाशदीप इस बात का परिचायक है कि हमारे शहीदों के प्रति हमारे मन में श्रद्धा की रोशनी कितनी उज्जवल है.

यह भी पढ़ें : बनारस में विश्वनाथ मंदिर के पास कारोबार का सुनहरा मौका; VDA दे रहा दुकानें, 16 से 25 लाख कीमत, जानिए पूरी डिटेल

यह भी पढ़ें : पितृ पक्ष में बनारस में अनोखा पिंडदान, अजन्मी बेटियों को मोक्ष दिलाने के लिए किया श्राद्ध, बेटी बचाने का दिया संदेश - Pitru Paksha 2024

वाराणसी : कार्तिक का पवित्र महीना भगवान विष्णु का महीना कहा जाता है और भगवान शिव की नगरी काशी में इस पूरे एक महीने का विशेष महत्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि कार्तिक के महीने में गंगा स्नान करने और किसी भी नदी सरोवर या गंगा किनारे दीपदान करने से सारे पापों का नाश होता है और पितृ लोक में मौजूद पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

काशी की अद्भुत परंपरा का निर्माण सदियों से होता रहा है और कार्तिक की शुरुआत के साथ ही वाराणसी में आकाशदीप जलाए जाने की परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. आकाशदीप शहीदों और पितरों की याद में जलाए जाने वाले वह दीपक हैं जो प्रज्ज्वलित करने के बाद बस की बनी टोकरियों में रखकर रस्सी के सहारे लंबे-लंबे बसों से काफी ऊंचाई तक भेजे जाते हैं. इस वजह से इन्हें आकाशदीप के नाम से जाना जाता है. काशी में शहीदों और पितरों की स्मृति में यह परंपरा महाभारत काल से निभाई जा रही है जो आज भी जीवित है.

आकाशदीप की रोशनी से जगमगा उठे काशी के गंगा घाट (Video credit: ETV Bharat)

शहीदों की राह रोशन करने को काशी के नभमंडल में गुरुवार की शाम बांस की टोकरियों में आकाशदीप प्रज्ज्वलित हुए. गंगातट से आकाशदीप जब कतार में गगन की ओर चले तो दिव्य नजारे ने सबको श्रद्धा से अभिभूत कर दिया. एक ओर शरद पूर्णिमा की चांदनी चटख हुई और दूसरी ओर प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर शहीदों की याद में बांस के पोरों पर आकाशदीप जगमगाने लगे. बांस की डलियों में टिमटिमाते दीप चंद्रहार की मानिंद झिलमिला उठे. गंगोत्री सेवा समिति की ओर से यह आकाशदीप लोगों की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले पुलिस एवं पीएसी के 11 शहीदों की स्मृति में जलाए गए. गंगा की मध्यधारा में दीपदान भी किया गया.

प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर पुलिस और पीएसी के शहीद जवानों को नमन करते हुए आकाशदीप जलाने की शुरुआत पांच वैदिक आचार्यों ने मां गंगा के षोडशोचार पूजन से की. इसके बाद 101 दीपों को गंगा में प्रवाहित किया गया. इस दौरान वेद मंत्रों की गूंज होती रही. पीएसी बैंड की धुन के साथ मुख्य अतिथियों ने शहीदों की याद में आकाशदीप प्रज्ज्वलित किए. जिन शहीद जवानों की याद में आकाशदीप जलाए गए, उनमें स्वर्गीय शिवराज सिंह मुख्य आरक्षी, स्व. मनीष यादव मुख्य आरक्षी यातायात, स्व. योगेन्द्र सिंह मुख्य आरक्षी, स्व. ओमवीर सिंह मुख्य आरक्षी, स्व. आकाश तोमर आरक्षी, स्व. संजय कुमार मुख्य आरक्षी, स्व. रवि कुमार आरक्षी, स्व. नरेश नेहरा मुख्य आरक्षी, स्व. वीरेन्द्र कुमार दूबे मुख्य आरक्षी, स्व. प्रकाश कुमार आरक्षी, स्व. अजय कुमार त्रिपाठी उपनिरीक्षक के नाम शामिल हैं.

इस अद्भुत और पौराणिक परंपरा के बारे में गंगोत्री सेवा समिति के सेक्रेटरी दिनेश शंकर दुबे ने बताया कि आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक पुलिस और पीएसी के वीर शहीद जवानों की याद में जलाए जाने वाले आकाशदीप की शुरुआत तीन दशकों से की जा रही है. उन्होंने बताया कि शहीदों की आत्माओं का मार्ग आलोकित करने के लिए गंगा के तट पर आकाशदीप रोशन किए जाते हैं. कार्तिक मास में दीपदान का विधान और विशेष महत्व है. उन्होंने कहा कि गंगा के घाट पर कार्तिक माह में जलता आकाशदीप इस बात का परिचायक है कि हमारे शहीदों के प्रति हमारे मन में श्रद्धा की रोशनी कितनी उज्जवल है.

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